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जनजागरण से रुकेगा मतांतरण-आर.एल. फ्रांसिसअध्यक्ष, पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंटगुजरात उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों राज्य सरकार द्वारा मतान्तरण अध्यादेश- 2003 के तहत दर्ज किए गए पहले मामले को ही रद्द कर दिया है। न्यायालय का कहना है कि अभी तक इस अध्यादेश ने कानूनी रूप नहीं लिया है। गुजरात के आणंद जिले में दायर इस मामले में अल्फा चैरीटेबल ट्रस्ट मिशन के निदेशक को आरोपित किया गया था। गुजरात विधानसभा ने 2006 के मानसून सत्र में इसे पारित करके राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा था परन्तु राज्यपाल ने अभी तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। इसी कारण यह अध्यादेश अभी तक कानूनी रूप नहीं ले पाया है।मतान्तरण पर रोक लगाने के उद्देश्य से राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने भी पिछले वर्ष विधानसभा में एक विधेयक पेश किया था। सरकार द्वारा विधेयक पास करवाए जाने के समय कांग्रेस द्वारा इसका सदन के भीतर एवं बाहर जोरदार विरोध किया गया। चर्च नेतृत्व ने विदेशों से केन्द्र सरकार एवं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी पर दबाव बनाया, राजस्थान की कांग्रेस इकाई ने भी राज्यपाल पर दबाव बनाया, इस कारण वहां भी मतांतरण विरोधी विधेयक कानून का रूप नहीं ले पाया। आज वहां की राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बन चुकी हैं। चर्च के देशी-विदेशी रखवाले उनकी सफलता के लिए कथित मुहिम चलाए हुए थे।हालांकि कांग्रेस नेतृत्व भी अच्छी तरह जानता है कि किस प्रकार ईसाई मिशनरी भोले-भाले लोगों को छल, लोभ, कपट के जाल में फंसाकर उनकी आस्थाओं को बदलने का खेल-खुलकर खेल रहे हैं और इस कार्य के लिए किस प्रकार धन को पानी की तरह बहाया जा रहा है। कांग्रेस नेतृत्व व उसकी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी चर्च नेतृत्व को खुश रखने के उद्देश्य से ही गैर-कांग्रेसी सरकारों द्वारा किए गए मतान्तरण विरोधी प्रयासों का विरोध करती हैं। अगर राज्यों में उनके राज्यपाल हैं तो वह विधानसभाओं द्वारा पारित प्रस्तावों को टाले रखते हैं ताकि वह अंतत: बेअसर हो जाएं। इसी वर्ष कांग्रेस की हिमाचल प्रदेश सरकार ने “धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2002” पारित किया, जिसे वहां के राज्यपाल ने तुरंत अपनी मंजूरी भी दे दी एवं उसने कानून का रूप ले लिया। इस विधेयक का न तो कांग्रेस नेतृत्व ने और न ही चर्च नेतृत्व ने उस तरह से विरोध किया जिस तरह का विरोध राजस्थान एवं गुजरात के मामले में देखने को मिला था। कांग्रेस शासित एक राज्य सरकार द्वारा मतान्तरण विरोधी कानून बनाना यह साबित करता है कि मतान्तरण का “कारोबार” हमारे देश में तेजी से फल-फूल रहा है। इसके विरुद्ध राजनीति को अलग रखकर राष्ट्रहित में आम सहमति बनाए जाने की जरुरत है। आज मतान्तरण के लिए देश में विभिन्न संगठनों द्वारा विशाल आयोजन किये जा रहे हैं, जिनमें दलितों को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया जा रहा है। कौन नहीं जानता कि ऐसे अधिकतर आयोजनों के पीछे चर्च नेतृत्व की योजना एवं उनका पैसा लगा होता है।चर्च शुरू से ही साम्राज्यवादी मानसिकता का रहा है। पूरी दुनिया में अपना राज्य स्थापित करना उसका लक्ष्य है। भारत और यहां के वंचित वर्ग हमेशा उसके निशाने पर रहे हैं। पिछले तीन दशकों से उसने हिन्दू वंचितों के बीच अपनी गहरी पैठ बना ली है। अब उसका मकसद पहले वंचितों को हिन्दुओं से दूर कर “धम्म की दीक्षा” दिलाना है और जैसे ही सरकार मतांतरित ईसाइयों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करे, वैसे ही चरणबद्ध तरीके से उनको अपने पाले में लाना है। चर्च इस तरह का खेल खेलने में महारथ हासिल कर चुका है। आज सरकारी आंकड़ों में भले ही चर्च के अनुयायियों की संख्या दो करोड़ हो, पर वास्तव में लगभग छह करोड़ होंगे। यहां हिन्दू वंचित वर्ग से आये लोगों की स्थिति “दो पंथ एक जाति” वाली ही है। चर्च के रिकार्ड में वे बपतिस्मा लिए हुए ईसाई हैं और सरकारी जनगणना के रिकार्ड में उनका नाम महार, वाल्मीकि, मजहबी सिख, रविदासिया आदि दर्ज होता है।”पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट” पिछले लम्बे समय से मतांतरित ईसाइयों के समान अधिकारों के लिए चर्च नेतृत्व से संघर्ष कर रहा है। यह “पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट” स्वतंत्रता के छह दशक बाद उन्हें अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की चर्च नेतृत्व की मांग का समर्थक नहीं है। “मूवमेंट” का मानना है कि वंचित लोगों ने समता एवं समानता के लोभ में ही चर्च नेतृत्व का दामन थामा था और यह चर्च नेतृत्व की नैतिक जिम्मेदारी थी कि वह इन मतांतरित वंचितों को समाज में बराबरी पर खड़ा करता। लेकिन चर्च नेतृत्व का उद्देश्य वंचितों का जीवन स्तर सुधारना नहीं बल्कि अपने साम्राज्य का विस्तार करना है। हाल ही में न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय, भाषायी और अल्पसंख्यक आयोग ने मतांतरित ईसाइयों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने की सिफारिश केन्द्र सरकार से की है।”मूवमेंट” का मानना है कि मतांतरित ईसाइयों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने से उनका विशेष लाभ नहीं होगा। हां, चर्च नेतृत्व को वंचितों को अपने खेमे में लाने में जरूर आसानी होगी। आज जो वंचित धम्म की दीक्षा ले रहे हैं, वे सीधे ईसाइयत का रास्ता अपनाकर चर्च का नेतृत्व स्वीकार करेंगे। “पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट” मतांतरित ईसाइयों के बीच इन सारे मुद्दों को लेकर जनजागरण पैदा करने के कार्य में लगा हुआ है। “मूवमेंट” चर्च नेतृत्व पर इस बात के लिए भी दबाव बना रहा है कि वह पंथ-प्रचार-मतान्तरण के कार्य को रोककर उस पर खर्च होने वाले धन को पहले से चर्च नेतृत्व की शरण में आए वंचितों के उद्धार पर खर्च करे।आज पूरे देश में चर्च नेतृत्व के काम करने के तरीके पर अंगुलियां उठ रही हैं। बहुसंख्यक जनसंख्या उन्हें शक की नजर से देखती है। कई स्थानों पर अनचाहे टकराव भी होते रहते हैं। राजस्थान के जयपुर एवं महाराष्ट्र में नाराज हिन्दुओं द्वारा कुछ ईसाई मिशनरियों पर हमला किया गया, जिसे देश भर के टेलीविजन चैनलों द्वारा कई दिन तक दिखाया गया। इस हमले के दृश्य विश्व भर में चलने वाली हजारों वेबसाइटों पर आज भी मौजूद हैं। “मूवमेंट” इस तरह के हमलों का कड़ा विरोधी है और उसका मानना है कि इस तरह के हमले करने से मतान्तरण का कारोबार नहीं रुकने वाला, बल्कि ऐसे कार्यों से इसमें और तेजी आती है एवं धन की आवक बढ़ जाता है। आज हजारों बेरोजगार ईसाई युवक तीन से चार हजार रु. मासिक के अनुदान पर बड़े चर्च संगठनों के लिए प्रसार का कार्य कर रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए दूसरे कामों से रोजगार उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।चर्च नेतृत्व की कुत्सित रणनीति पर लगाम लगाने के लिए सभी राष्ट्रनिष्ठ संगठनों एवं राष्ट्रवादी सोच के लोगों को सामने आना चाहिए। “पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट” अपने समाज के अंदर ईसा के सच्चे संदेश यानी प्रेम में लगा है। आशा की जानी चाहिए कि चर्च नेतृत्व मतांतरण के कारोबार पर लगाम लगाकर ईसा के दिखाए रास्ते पर चलेगा।19
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