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जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे ने दारा शिकोह और स्वामी विवेकानंदके भाव-विश्व को स्पर्श कर भारतीयों का ह्मदय जीतादो महासागरों का सामरिक मिलनतरुण विजयभारत और जापान के बीच सांस्कृतिक और सभ्यता-मूलक संबंध चौदह सौ वर्षों से भी अधिक पुराने हैं। सामान्य भारतीय के मन में जापान साहसी और देशभक्त समाज के नाते प्रतिष्ठित है। जापान का स्मरण आते ही रासबिहारी बोस, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, रवीन्द्र नाथ ठाकुर और न्यायमूर्त्ति राधा विनोद पाल जैसे महापुरुषों के नाम याद आते हैं। लेकिन जापान के साथ हमारा सबसे बड़ा मैत्री-सेतु बुद्ध और लोकतंत्र के कारण सशक्त है, इसलिए वहां के प्रधानमंत्री श्री शिंजो एबे की भारत यात्रा वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में बहुत महत्वपूर्ण रही। श्री शिंजो एबे अपने साथ एक पृथक विमान में जापान के 210 शीर्षस्थ उद्योगपति और 12 महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों के कुलपति भी लाए। इसी से स्पष्ट है कि उन्होंने अपनी भारत यात्रा को कितना अधिक महत्व दिया। श्री शिंजो एबे के दादा श्री नोबुसुके किशी भी जापान के प्रधानमंत्री थे। वे 1957 में भारत यात्रा पर आए थे और प्रधानमंत्री नेहरु से उनकी गहरी मंत्रणा हुई थी। श्री नोबुसुके किशी के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पं. नेहरु को समाजवादी पथ यानी रुस और चीन का अनुगामी न होने की सलाह दी थी। श्री शिंजो एबे ने पचास वर्ष पहले अपने दादा श्री नोबुसुके किशी और पं. नेहरु की भेंट का स्मरण करते हुए कांग्रेस के एक दूसरे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से मुलाकात की। यद्यपि उनकी यह यात्रा भारत-जापान संबंधों की दृष्टि से ही नहीं बल्कि भारतीय उप महाद्वीप और पूर्वी एशिया में सामरिक दृष्टि से भी विशेष रही, लेकिन राजनीतिक शक्ति के जिस धरातल पर पचास साल पहले पं. नेहरु और शिंजो एबे के दादा श्री नोबुसुके किशी खड़े थे आज मनमोहन सिंह और एबे दोनों ही उसके काफी कमजोर स्थिति में हैं। एक ओर जहां मनमोहन सिंह भारत-अमरीका परमाणु संधि पर भाजपा और वामपंथियों के निशाने पर हैं तथा सरकार अगर जा नहीं रही है तो भी लड़खड़ा तो गई ही है, दूसरी ओर जापान में शिंजो एबे की पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी जुलाई के अंत में हुए चुनावों में वहां के वरिष्ठ सदन में बहुमत खो चुकी है। शिंजो एबे की लोकप्रियता में भी काफी क्षरण हुआ है। इसलिए कहा जा सकता है कि दोनों ही प्रधानमंत्री अपने-अपने देश में कमजोर राजनीतिक धरातल पर खड़े हैं। इसके बावजूद दोनों देशों के बीच बातचीत और मैत्री संबंध इन राजनीतिक उतार-चढ़ावों से परे ही रहे हैं, और यहां कोई भी सरकार किसी भी विचारधारा की रही, उसने जापान के साथ संबंध बढ़ाने में रुचि दिखाई है।वस्तुत: भारत-जापान संबंधों की प्रगाढ़ता का नया अध्याय वाजपेयी सरकार के समय 2000-2001 में लिखा गया था। अगस्त, 2000 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरी भारत यात्रा पर आए थे और दिसम्बर, 2001 में श्री वाजपेयी जापान यात्रा पर गए थे। इस यात्रा में भारत और जापान के बीच सामरिक संबंधों का विशेष समझौता लागू किया गया था और व्यापार, मीडिया विनिमय, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा ढांचागत सुविधाओं के निर्माण के लिए व्यापक समझौते हुए थे।श्री शिंजो एबे की भारत यात्रा से तुरंत पहले दिल्ली-मुम्बई तथा दिल्ली-हावड़ा विशेष भारवाहक रेल गलियारे के निर्माण को मंत्रिमंडल ने स्वीकृति दी है। यह गलियारा भारत के आर्थिक विकास का नक्शा बदल देगा, यह विश्वास किया जा रहा है। वैसे ही जैसे जापान की सुजुकी कंपनी के साथ समझौते के फलस्वरुप मारुति कारों ने भारत के सड़क मार्गों का नक्शा बदल दिया। लगभग 100 अरब डालर की लागत से बनने वाला दिल्ली-मुम्बई और दिल्ली-हावड़ा भारवाहक रेल गलियारा इस मार्ग में पड़ने वाले 6 राज्यों में आर्थिक विकास की नई धारा पहुंचाएगा। अट्ठाइस सौ किमी. से अधिक यह नया रेल पथ वर्तमान सामान ढोने वाली रेलगाड़ियों के लिए भी इस्तेमाल किया जाएगा और इस गलियारे के दोनों ओर तेज एक सौ पचास किमी. की दूरी तक जमीन अधिगृहित कर उद्योग तथा व्यापार केन्द्र बनाए जाने का भी प्रावधान किया गया है। ये राज्य हैं-दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र। ऐसे ही रेलवे गलियारे और उनके इर्द-गिर्द आर्थिक विकास के क्षेत्र दिल्ली-हावड़ा दिशा में भी विकसित किए जाएंगे। दिल्ली मुम्बई रेल गलियारा 2012 तक चालू किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके निर्माण और इसके इर्द-गिर्द बनने वाले विशेष आर्थिक क्षेत्रों में 9 से 12 अरब डालर तक की जापानी सहायता का अनुमान लगाया गया है। इसके अतिरिक्त ढांचागत सुविधाओं और शिक्षा तथा विज्ञान के क्षेत्र में काफी बड़े सहयोग का आधार भी तैयार किया गया है। उल्लेखनीय है कि जापान विश्व के सबसे बड़े और श्रेष्ठतम असैन्य परमाणु रिएक्टर की आपूर्त्ति करने वाला देश है। भारत-अमरीका परमाणु संधि लागू होने की स्थिति में जापान से ये रिएक्टर भी प्राप्त हो सकेंगे।भारत-जापान संबंधों में प्रगाढ़ता भारतीय उप महाद्वीप में चीन के एकतरफा बढ़ रहे प्रभाव विस्तार को भी संतुलित करने के लिए आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि पूर्वी एशिया से लेकर मध्य पूर्व और अफ्रीका तक चीन की व्यापारिक एवं सामरिक गतिविधियां तीव्रता से बढ़ी हैं। भारत ने भी अपनी पूर्वोन्मुखी विदेश नीति के अंतर्गत आसियान की सदस्यता तो प्राप्त कर ही ली है, साथ ही पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन का भी वह सदस्य बन गया है। भारत को इन दोनों गुटों की सदस्यता न मिले इसके लिए चीन ने भरसक प्रयास किया था, लेकिन जापान, सिंगापुर और मलेशिया ने भारत की सहायता की। इसी वर्ष अप्रैल में प्रशांत महासागर में जापान की नौसेना के साथ भारतीय नौसेना युद्धाभ्यास भी बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस युद्धाभ्यास में अमरीका और आस्ट्रेलिया की नौसेनाओं ने भी भाग लिया था। ऐसा ही एक युद्धाभ्यास अब सितम्बर में बंगाल की खाड़ी में नियोजित है। भारत, अमरीका, जापान एवं आस्ट्रेलिया के मध्य लोकतांत्रिक ध्रुव के अन्तर्गत बढ़ रहे सामरिक और व्यापारिक संबंध चीन को चिंतित किए हुए हैं। इस प्रगाढ़ता और लोकतांत्रिक ध्रुव को चीन अपने विरुद्ध एक पहल मानता है। हालांकि भारत और जापान ने हर बार चीन को आश्वस्त किया है कि उनकी मैत्री चीन के विरुद्ध नहीं देखी जानी चाहिए। लेकिन फिर भी भारत के प्रभाव में वृद्धि चीन हमेशा संदिग्ध दृष्टि से ही देखता रहा है।जापान के प्रधानमंत्री ने भारतीय संसद को भी संबोधित किया। गत वर्ष नवम्बर में चीन के राष्ट्रपति हू जिन ताओ भारत यात्रा पर आए थे तो माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की पुरजोर कोशिशों के बावजूद श्री हू जिन ताओ को भारतीय संसद को संबोधित करने का सम्मान नहीं मिल पाया था। इसका कारण उनकी यात्रा की समाप्ति और संसद के सत्र का श्रीगणेश होने में तालमेल का न बैठ पाना बताया गया था। जापान के प्रधानमंत्री श्री एबे ने भारतीय संसद में एक प्रेरक और हिन्दू मन को आह्लादित करने वाला भाषण दिया। उन्होंने उपनिषदों और वेदों के अध्ययेता दारा शिकोह को उद्धृत किया। उल्लेखनीय है कि दारा शिकोह को कट्टरपंथी वहाबी किस्म के मुसलमान पसंद नहीं करते। दारा शिकोह की समाधि भी जामा मस्जिद के पास एकदम उपेक्षित और अनुल्लेखनीय ढंग से स्थित है। श्री एबे ने स्वामी विवेकानंद के उस वाक्य का भी उल्लेख किया जिसमें उन्होंने सभी धर्मों में समन्वय देखने वाली हिन्दू दृष्टि का वर्णन किया है। उनके भाषण के प्रमुख अंश इसी अंक में पृष्ठ 5 पर दिए जा रहे हैं। वे इंडिया सेंटर द्वारा आयोजित भारतीयता की ऊष्मा से आच्छादित एक विशेष कार्यक्रम में भी सम्मिलित हुए। यह कार्यक्रम इंडिया सेंटर के संस्थापक अध्यक्ष और भारत-जापान मैत्री के लिए वर्षों से कार्यरत श्री विभव कांत उपाध्याय ने आयोजित किया था। इसमें गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया, माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य श्री सीताराम येचुरी, राजग के संयोजक श्री जार्ज फर्नांडीस, केन्द्रीय योजना राज्य मंत्री श्री एम.वी. राजशेखरन, फिक्की के सचिव श्री अमित मित्रा, राष्ट्रीय सूचना आयोग के प्रमुख श्री वजाहत हबीबुल्ला, सांसद एवं हितवाद पत्र समूह के अध्यक्ष विजय दरडा, जागरण समाचार पत्र के संपादक श्री संजय गुप्ता, “गांधी मेरे पिता” फिल्म के निर्देशक श्री फिरोज खान, पूर्व प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी के पूर्व विशेष कार्याधिकारी श्री सुधीन्द्र कुलकर्णी, ओएनजीसी के पूर्व अध्यक्ष श्री सुबीर राहा सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित हुए। इस संक्षिप्त लेकिन भावभीने कार्यक्रम में श्री एबे ने भारत के प्रति अपने प्रेम और भारतीयों के प्रति अपने देश के विशेष झुकाव को बहुत आत्मीयता से प्रकट किया। श्री विभव कांत उपाध्याय ने श्री एबे के साथ अपनी मैत्री का भी जिक्र करते हुए (जिसका श्री एबे ने भी अपने भाषण में उल्लेख किया) भारत-जापान संबंधों के विकास में उनके महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित किया। लेकिन कार्यक्रम का मुख्य रंग श्री नरेन्द्र मोदी ने जमाया। उन्होंने सभी उपस्थित अभ्यागतों की ओर से प्रधानमंत्री श्री एबे का स्वागत किया और गुजरात के विकास का रोमांचक वर्णन करते हुए बताया कि दिल्ली-मुम्बई रेल गलियारे का 38 प्रतिशत हिस्सा गुजरात से गुजरने वाला है और लगभग एक तिहाई पूंजी निवेश भी गुजरात के क्षेत्र में होगा। उन्होंने गुजरात में जापानी निवेश का अभिनंदन करते हुए प्रधानमंत्री एबे को भाषण के लिए भी आमंत्रित करने का दायित्व निभाया। अंत में मंच के दोनों ओर इलेक्ट्रॉनिक पर्दों पर श्री सुधीन्द्र कुलकर्णी द्वारा पिछले वर्ष प्रधानमंत्री एबे के साक्षात्कार का वह अंश दिखाया गया जिसमें उन्होंने कहा था कि वे भारत-जापान संबंधों को विकास और दोस्ती के रंग से रंगना चाहते हैं और फिर प्रधानमंत्री श्री एबे से मंच के बायीं ओर एक बड़े सफेद कैनवस पर कूची और रंग से कुछ चित्रित करने का आग्रह किया गया। उन्होंने सूर्य का चित्र बनाया जो जापान का राष्ट्रीय चिन्ह भी है और उदीयमान प्रभा का द्योतक है। श्री सीताराम येचुरी ने भी उसी सूर्य को लाल रंग से और गाढ़ा किया मानो बाल रवि का प्रतीक बना रहे हों। श्री नरेन्द्र मोदी ने सूर्य की किरणें बनार्इं और सभा में उपस्थित सभी लोगों ने उस कैनवस पर हस्ताक्षर किए तथा अपनी-अपनी तरफ से उस चित्र में कुछ जोड़ा। यह रंग और उत्सवी तथा उत्साहवर्धक रुप में खिले इसी कामना के साथ आयोजन संपन्न हुआ। जापान के प्रधानमंत्री की यह यात्रा अब तक के सभी जापानी नेताओं की यात्राओं से अधिक महत्व की मानी गई और इसीलिए इस यात्रा को अखबारों में भी अधिक सुर्खियां मिलीं। भारत के सांस्कृतिक, सभ्यता मूलक और सामरिक हितों की दृष्टि से भी भारत-जापान संबंध बढ़ने चाहिए, यह हम दोनों के हित में है।7
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