आचार्यश्री विजय रत्नसुंदरसूरि एवं श्री कुप्.सी. सुदर्शन के बीच ऐतिहासिक वार्तालाप
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आचार्यश्री विजय रत्नसुंदरसूरि एवं श्री कुप्.सी. सुदर्शन के बीच ऐतिहासिक वार्तालाप

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Dec 8, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Dec 2007 00:00:00

यौन शिक्षा के विरुद्धसंत-संगठनगत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन एवं प्रख्यात जैन संत आचार्यश्री विजय रत्नसुंदरसूरि के मध्य अनेक ज्वलंत विषयों पर मंत्रणा हुई। आचार्यश्री विजय जी इन दिनों यौन शिक्षा के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी अभियान में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। यहां हम इन दो महान विभूतियों के बीच राष्ट्रीय मुद्दों पर हुए वार्तालाप के मुख्य अंश प्रकाशित कर रहे हैं। सं.आचार्यश्री : आज देश के सामने कई विचारणीय मुद्दे हैं। इनमें से कुछ मुद्दों पर तत्काल ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। इनमें से पहला मुद्दा है-स्कूली बच्चों को भोजन में अण्डे दिये जाने की सरकारी योजना। मूंगफली में मांस, मछली और अण्डे की तुलना में अधिक प्रोटीन होता है। यदि सरकार को पोषण के लिए कुछ देना ही है तो वह कोई ऐसा भोज्य पदार्थ क्यों नहीं देती जो शाकाहारी भी खा सकें और मांसाहारी भी? मूंगफली ऐसा ही एक आहार है।दूसरा मुद्दा है मांस के निर्यात का। 1990-91 के आर्थिक संकट की दशा में विदेशी मुद्रा के भण्डार को बढ़ाने के लिए सरकार ने मांस निर्यात को अनुमति प्रदान की थी, परंतु 1990-91 की तुलना में आज देश की आर्थिक स्थिति अच्छी है और विदेशी मुद्रा भण्डार भी पर्याप्त है। फिर भी सरकार ने इस निर्यात को प्रतिबंधित नहीं किया है। वर्तमान में मांस निर्यात से जितनी विदेशी मुद्रा अर्जित हो रही है वह हमारे विदेशी मुद्रा भण्डार का एक प्रतिशत भी नहीं है, फिर प्रतिवर्ष दो करोड़ पशुओं का कत्ल क्यों किया जा रहा है?तीसरा मुद्दा है-धर्मार्थ न्यासों (चेरिटेबल ट्रस्ट) पर कर लगाने का। एक तरफ मांस निर्यातकों को 13 प्रकार की रियायतें (सब्सिडी) दी जा रही हैं तो दूसरी तरफ गोशाला एवं पिंजरापोल पर 30 प्रतिशत कर लगाया जा रहा है। अर्थात् काटने वाले को इनाम और बचाने वाले को कर रूपी सजा। ये कहां का न्याय है? सरकार को कम से कम गोशाला, पिंजरापोल, अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम, विकलांग स्कूल इत्यादि को तो इस कर के दायरे से मुक्त रखना चाहिए।चौथा और तात्कालिक रूप से सर्वाधिक ज्वलंत और महत्वपूर्ण मुद्दा है- यौन शिक्षा। भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि यह “किण्डर-गार्डन” से यौन शिक्षा प्रदान करेगी। हमारे देश में 18 वर्ष के पूर्व विवाह अवैध है, फिर अल्पायु के बालकों को यौन विषयों की जानकारी क्यों दी जा रही है? विवाह की आयु 18 और 21 वर्ष है तथा यौन शिक्षा 10-12 वर्ष की आयु में दी जाएगी। ऐसी दशा में निश्चित है कि वह बच्चा व्यभिचार की ओर आगे बढ़ेगा। विश्व के जिन देशों में यह शिक्षा दी जा रही है वहां ऐसे व्यभिचार के विविध और अत्यधिक मामले सामने आ रहे हैं। ब्रिटेन, अमरीका जैसे देशों में किशोर आयु में गर्भ-धारण, समूह सेक्स, समलैंगिक सम्बंध इत्यादि कई विकृतियां समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी हैं। इतने भयंकर दुष्परिणाम देने वाली इस शिक्षा को हमें रोकना ही होगा।सुदर्शनजी : मेरी दृष्टि में हमारी एक बहुत बड़ी समस्या उपभोक्तावाद भी है, जो अमरीका पूरे विश्व में प्रसारित कर रहा है। ये आसुरी शक्तियां हैं और आसुरी शक्ति का दैवी शक्ति से विरोध होता ही है। आज ये शक्तियां हम पर आक्रमण कर रही हैं। अभी मैंने एक पुस्तक पढ़ी, जिसका नाम है इकोनोमिक हिटमेन। इस पुस्तक में लिखा है कि अमरीका विकासशील देशों में अपने विशेषज्ञों को भेजता है। ये विशेषज्ञ विकासशील देशों की सरकारों को प्रेरित करते हैं कि वे अपने यहां आधारभूत संरचना को विकसित करें। जहां तक विकास के लिए धन का सवाल है, वह हम देंगे। इस आर्थिक सहायता के आधार पर अमरीका इन देशों को ऋण-जाल में फांसता है तथा इस जाल से निकलने के लिए अमरीका इन देशों पर तीन शर्ते आरोपित करता है-पहली, अपने देश में अमरीका को सैनिक अड्डे बनाने दें। दूसरी, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अपने यहां मुक्त प्रवेश दें। और तीसरा, अमरीका को कच्चा माल प्रदान करें तथा तैयार माल उनसे खरीदें। अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और वल्र्ड बैंक जैसी संस्थाएं भी इस अमरीकी चाल में साथ-साथ है।आचार्यश्री : मेरी मान्यता है कि यौन शिक्षा शुरू हुई तो कई भयंकर परिणाम सामने आएंगे। यौन शिक्षा के ब्रिटेन में कई दुष्परिणाम सामने आये हैं। वहां पर स्कूलों में भी गर्भपात केन्द्र खोलने पड़े हैं। वहां प्रतिवर्ष 15 वर्ष से कम आयु की 10,000 लड़कियां गर्भपात करवाती हैं। आप ही बताइये कि यौन शिक्षा शुरू होने के बाद क्या हमारे सरस्वती मंदिर, सेक्स मंदिर नहीं बन जाएंगे? यदि ब्रिटेन में ऐसा हुआ है तो भारत में भी ऐसा ही होगा।सुदर्शनजी : एक बात यह भी है कि जो शिक्षक बच्चों को पढ़ाएंगे, वे विवाहित होंगे या अविवाहित?आचार्यश्री : किशोर बच्चे यह सब पढ़ेंगे तो घर में आकर इन विषयों पर प्रयोग भी कर सकते हैं। यह भी आशंका है कि इस तरह के प्रयोग भाई-बहन के बीच हो। बी.बी.सी. -गार्जीयन के एक समाचार के अनुसार ब्रिटेन में माता-पिता के काम पर जाने के बाद बच्चे घर में “ग्रुप सेक्स” जैसा पशु-समान कार्य करते हैं। मुझे इस बात की अत्यन्त पीड़ा है कि आग लगाने वालों ने तो आग लगा दी है परन्तु “फायर ब्रिगेड” वाले सोये हुए हैं। मेरी इच्छा है कि आप इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाएं।दिल्ली में “युवा” के नाम से जो कुछ पढ़ाया जा रहा है उसमें अत्यन्त अश्लील बातें और चित्र दिये गए हैं। कुछ दिन पहले इस युवा कार्यक्रम में शामिल होने वाली एक लड़की मेरे पास आई। उसने मुझे अपनी व्यथा बताते हुए कहा कि इस तरह की बातें कक्षा में जब अध्यापक ने हमें बताईं तो मुझे लगा कि आखिर मैं क्या करूं। जब छात्रों ने अध्यापक से इस विषय को न पढ़ाने का निवेदन किया तो अध्यापक ने कहा कि आप सभी बच्चे मिलकर स्कूल के प्रधानाचार्य से मिलो और उनसे कहो कि यह न पढ़ाया जाए। अर्थात अध्यापक भी इसे पढ़ाना नहीं चाहते। उस अध्यापक, प्रधानाचार्य और उस स्कूल के प्रबंधन से मैंने बात की तो उन सभी ने भी इसे पढ़ाने के प्रति अनिच्छा जतायी। स्पष्ट है कि माता-पिता, छात्र, अध्यापक, प्रधानाचार्य और प्रबंधन- ये पांचों नहीं चाहते कि यौन शिक्षा प्रदान की जाए। एक शिक्षक ने तो मुझे यहां तक कहा कि यौन शिक्षा की संगोष्ठी में मैंने इसे पढ़ाने से मना किया तो मुझे यह पढ़ाने के लिए बाध्य किया गया।सुदर्शनजी : हां, अभी तो हमें सभी से यह जानना है कि क्या आपको यह शिक्षा देने के लिए बाध्य किया जा रहा है?आचार्यश्री : नहीं, अभी इसे पढ़ाना शुरू नहीं किया गया है। केवल प्रशिक्षण ही दिया जा रहा है।सुदर्शनजी : तो प्रशिक्षण ले रहे शिक्षकों को यह कहते हुए प्रशिक्षण का बहिष्कार कर देना चाहिए कि यह हमारी संस्कृति के खिलाफ है।आचार्यश्री : 250 शिक्षकों के पास हमारे एक संत गये थे। शिक्षकों ने उनको बताया कि न तो हम इसे नकार सकते हैं और न ही स्वीकार सकते हैं।सुदर्शनजी : शिक्षकों को दृढ़तापूर्वक बता देना चाहिए कि हम इसे नहीं स्वीकार करेंगे। यदि हम पर दबाव डालोगे तो हम नौकरी छोड़ देंगे। हमारे लिए इसे पढ़ाने से अधिक बेहतर है कि हम नौकरी छोड़ दें।आचार्यश्री : परन्तु एक साथ इतने शिक्षक कैसे नौकरी छोड़ सकते हैं?सुदर्शनजी : हमें लोगों को इस दृष्टि से तैयार करना ही होगा, विद्रोह के लिए तैयार करना होगा। अन्याय के खिलाफ विद्रोह करना धर्म है। हमें लोगों को बताना होगा कि यदि आपने विद्रोह नहीं किया तो आपकी स्थिति भी भीष्म और गुरु द्रोण जैसी होगी।अमरीका जैसे देश जानते हैं कि भारत की सबसे बड़ी शक्ति इनकी परिवार व्यवस्था है। यदि इसे नष्ट कर दिया जाए तो फिर भारत का उपयोग मन-मुताबिक ढंग से किया जा सकता है। अमरीका में तो पारिवारिक मूल्य नष्ट हो चुके हैं, अब वह हमारे पारिवारिक मूल्यों पर प्रहार कर रहा है। ऐसे समय में हमें परिवार को बचाने का पूरा प्रयास करना चाहिए। हमें यौन शिक्षा को आरम्भ होने से पहले ही रोक देना चाहिए। इसके लिए हमें जागरूकता अभियान चलाना होगा।आचार्यश्री : इस सम्बंध में आप ही कुछ सुझाव दें। आर्य समाज के एक सम्मेलन में मैं गया तो वहां 25 हजार लोगों में से एक को भी इसके बारे में जानकारी नहीं थी। इसके बाद मैं भारती योग संस्थान तथा विराट हिन्दू सम्मेलन में भी गया, वहां भी ऐसी ही दशा थी। ऐसी दशा में किस तरह जनता को जागृत किया जाए?सुदर्शनजी : हमारी राष्ट्रीय जीवन-शक्ति का रहस्य हमारी परिवार व्यवस्था है। भारत में उत्थान-पतन के कई दौर आये हैं, फिर भी भारत टिका रहा। इसका मूलभूत कारण हमारी परिवार व्यवस्था ही है। शरीर, मन और बुद्धि का आधार परिवार ही होता है। आज अफ्रीका में हो रहे नर-संहार, पर्यावरण-विनाश आदि का मूल कारण पश्चिमी संस्कृति है जो पूरी तरह संवेदनहीन है। यह एक आसुरी शक्ति है जिसका विरोध किया जाना चाहिए।आचार्यश्री : मेरे मतानुसार यौन शिक्षा से बच्चों का केवल “केरेक्टर” ही खत्म नहीं होगा बल्कि “केरियर” भी खत्म हो जाएगा। इससे अंतत: पूरा हिन्दुस्तान ही खत्म हो जाएगा।सुदर्शनजी : ये तो स्वाभाविकतया होगा, क्योंकि एक बार आसुरी संस्कृति के प्रभाव में आ गये तो फिर कुछ भी नहीं बचेगा। आज-कल ऐसा ही हो रहा है। एक तरफ रोजगार नहीं हैं और दूसरी तरफ युवा वर्ग मौज-मस्ती में डूबा हुआ है। इसी कारण पैसों के लिए लूट-पाट, हत्या-बलात्कार जैसे अपराध बढ़ रहे हैं ताकि वे मौज-मस्ती के लिए आवश्यक रुपए जुटा सकें।आचार्यश्री : मैं तो जैन साधु हूं, मेरी कई मर्यादाएं हैं। आपसे मैं एक विनती करता हूं कि आप ये प्रयास कीजिए कि भारत में सभी सज्जन संगठित हो जाएं। ये संगठित सज्जन सक्रिय हो जाएं तो कई समस्याएं एक साथ सुलझ सकती हैं। एक और विनती है कि कम से कम भाजपा-शासित राज्यों में यौन शिक्षा को आरम्भ न किया जाए।सुदर्शनजी : जी, अवश्य। यह संतोष की बात है कि आप जैसे संतों के प्रयासों और संघ के कार्यकर्ताओं की पूरी कोशिशों के फलस्वरूप कई राज्यों ने अपने यहां यौन शिक्षा की इस घृणित योजना को क्रियान्वित करने से इनकार कर दिया है। इनमें केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उड़ीसा, गुजरात, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।39

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