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प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान के प्रसार का आह्वानकोलकाता के निकट बेलूर स्थित रामकृष्ण मिशन विवेकानंद विश्वविद्यालय में गत 23-24 फरवरी, 2007 को एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। विवेकानंद विश्वविद्यालय और विज्ञान भारती के संयुक्त तत्वावधान में सम्पन्न इस संगोष्ठी में देश के प्रतिष्ठित संस्थानों और संगठनों से जुड़े 700 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। विवेकानंद विश्वविद्यालय के कुलपति स्वामी आत्मप्रियानंद सहित संगोष्ठी में विभिन्न विद्वानों ने प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान पर अपने विचार रखे। आर्यभट्ट, ब्राह्मगुप्त, नीलकांता के योगदान सहित प्राचीन भारतीय गणितीय सूत्रों से लेकर खगोलीय व धातु विज्ञान के क्षेत्र में उपलब्धियों की चर्चा हुई। 20वीं सदी के पहले भाग में भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान पर चर्चा हुई तो सत्येन्द्र नाथ बोस, श्रीनिवास रामानुजन, हरिश चंद्र के महत्वपूर्ण कार्यों से युवा पीढ़ी को परिचित कराने का आह्वान हुआ। देश के प्रसिद्ध अनुसंधान संस्थानों से आए विद्वानों ने अपने वक्तव्य रखे। इस दो दिवसीय संगोष्ठी में जिन विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए उनमें प्रमुख थे- बंगलौर के प्रो. के.आई. वासु (अध्यक्ष, विज्ञान भारती), प्रो. एम.डी. श्रीनिवास (इंस्टीटूट आफ पालिसी स्टडीज, चेन्नै), डा. ए.के. दत्ता (इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीटूट, कोलकाता), डा. के. रामसुब्राह्मण्यम (इंडियन इंस्टीटूट आफ टेक्नोलाजी, मुम्बई), डा. एस. राहा (बोस इंस्टीटूट, कोलकाता), प्रो. आर. बालसुब्राह्मण्यम (इंस्टीटूट आफ मैथेमेटिकल साइंसिस, चेन्नै), डा. एस.सी. बागची (इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीटूट, कोलकाता), श्री नृपेन आचार्य (सिविल इंजिनियर, अमरीका)। सभी वक्ताओं ने समाज के विभिन्न वर्गों के युवाओं, शिक्षकों और व्यवसायियों में भारत की अमूल्य धरोहर और शताब्दियों से चली आ रही ज्ञान-परंपरा को जीवंत रखने का आह्वान किया।इस अवसर पर विवेकानंद विश्वविद्यालय ने भारतीय वैज्ञानिक धरोहर के अध्यापन के लिए एक पद की घोषणा की और इसका एक विभाग आरम्भ करने हेतु कुलपति स्वामी आत्मप्रियानंद ने एक करोड़ रु. निर्धारित करने की भी घोषणा की। प्रतिनिधि24
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