गेशे जम्पा-5
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गेशे जम्पा-5

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Nov 2, 2007, 12:00 am IST
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दिंनाक: 02 Nov 2007 00:00:00

सलोनी देवयानीतिब्बत की स्वतंत्र सांस्कृतिक एवं धार्मिक अस्मिता के प्रश्न पर दुनिया भर के सेकुलर देशों की चुप्पी तोड़ने की दिशा में एक सकारात्मक उपन्यास “गेशे जम्पा” की पांचवीं कड़ी। -सं.-नीरजा माधवमठ में झाड़ू-पोंछा करने पर इतने रुपए ही मिल पाते थे कि वह अपना तथा पेमा और सीरीङ् का पेट भर सके। विवाह के दिन पहले रात में लामा सोनम् डक्पा आए थे उसकी छोटी-सी कोठरी में।”लोब्जंग, इसे बेटी के लिए रखो। उपहार देना।” उन्होंने एक बड़ा-सा ब्राीफकेस उसे पकड़ाया था। वह श्रद्धा और अनुग्रह से विभोर हो उठी थी। झुककर लामाजी के पैरों पर अपना माथा रख दिया था। उस दिन से उनके प्रति उसकी आस्था बढ़ती गई थी और लामा जी के मन में उसके लिए अनुराग। एक दिन बड़े लामा से उन्होंने जाकर निवेदन किया था-“गेला, मैं विवाह करना चाह रहा हूं। अब ब्राह्मचर्य नहीं संभाल सकता।”महायान में कट्टरता न होने के कारण गेला ने सहज अनुमति दे दी थी।”जाओ, गृहस्थ धर्म अपना लो। परन्तु अपने उद्देश्य से मत भटकना।””जी!” और उन्होंने भगवान् बुद्ध के सम्मुख जाकर सादे ढंग से लोब्जंग को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।”क्या सोचने लगी, लोब्जंग?” चाय पीते हुए लामा सोनम् डक्पा ने उसे कुरेदा तो वह वर्तमान में लौट आई।”सोच रही हूं कि विवाह के पंद्रह-सोलह वर्षों में ही कितना कुछ बदल-सा गया। मेरी छाया ही शायद अच्छी नहीं है।””ऐसा क्यों सोचती हो? रोग-शोक तो लगा रहता है मनुष्य के साथ। फिर इन पंद्रह वर्षों में मैं चालीस से पचपन का भी तो हो गया।” उन्होंने हंसने का प्रयास किया।”अरे, तो मैं भी तो चालीस के पास आ गई।” लोब्जंग ने अपनी उम्र बताई तो दावा भी बीच में कूद पड़ा।”मैं भी तो दस वर्ष का हो चुका। तीसरी कक्षा में पहुंच गया हूं।””हां, तुम सबसे वृद्ध हो हमारे परिवार में।” लामा सोनम् डक्पा हंसे थे।”अरे हां, दावा के संस्थान में जो हिंदी की मैडम हैं, देवयानी, वे आई थीं। घर किराए पर चाहिए उन्हें। किसी ने हमारे यहां का पता बताया था।” उन्होंने लोब्जंग को सूचना दी थी।बिना विचारे ही लोब्जंग ने इनकार किया था-“परिचितों को किराएदार नहीं बनाना चाहिए। सम्बंध खराब होने का डर रहता है। फिर वे तो दावा की मैदम भी हैं।””अरे, हर जगह एक ही फार्मूला नहीं लागू होता है। पढ़ी-लिखी महिला हैं। दिन-भर संस्थान में रहना है। केवल एक भाई और मां रहेंगी साथ। फिर दोनों कमरों का दरवाजा बाहर गेट की तरफ है। हम लोगों से कहां मतलब रहेगा? सरकारी नौकरी में हैं तो किराया समय पर मिल जाया करेगा, इसीलिए मैं चाह रहा था।”लामा सोनम् डक्पा ने अपनी पूरी बात रखी तो लोब्जंग को भी उचित लगा।”मैदम का भाई क्या करता है?” लोब्जंग सशंकित हो उठी।”शायद वह भी कहीं नौकरी में है। अभी विवाह नहीं हुआ है।” लामा ने बताया था।”पेमा से भी एक बार पूछना ठीक होगा?” लोब्जंग ने प्रश्न किया।”उसे क्या आपत्ति होगी? फिर भी पूछना है तो पूछ लो।”लामा सोनम् डक्पा के मन में पेमा के प्रति कहीं भी सौतेला भाव नहीं था। दावा उनका अपना बेटा था, परन्तु पेमा को भी वे उतना ही प्यार देते थे। यह सब लोब्जंग को दु:खी न देख पाने के कारण भी था। हालांकि पेमा का व्यवहार दिनोंदिन उनके और स्वयं लोब्जंग के प्रति भी असहिष्णु और लापरवाह होता जा रहा था।”क्या जरूरत है उससे पूछने की। रख लेते हैं मैदम को किराएदार।” लोब्जंग को भी पेमा से पूछना अनावश्यक लगा था। और वह खाली प्याले लिए रसाई की ओर बढ़ गई थी।देवयानी कक्षा में पूर्व मध्यमा के बच्चों को तिब्बत की भौगोलिक स्थिति समझा रही थी-“सम्पूर्ण विश्व में तिब्बत सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित देश है, इसीलिए इसे दुनिया की छत कहते हैं।” क्या कहते हैं?””दुनिया की छत।” बच्चों का समवेत स्वर गूंजा था।”शाबाश। तिब्बत के पूर्व में चीन, दक्षिण में भारत और नेपाल हैं। उत्तर में रूस तथा मंगोलिया और पश्चिम में ईरान है। अब बताइए दक्षिण में कौन देश हैं?””भारत और नेपाल।” बच्चे उत्साह से चिल्ला पड़े।”बहुत अच्छा! भाई, आप लोगों को तो बहुत जल्दी याद हो जा रहा है। अब आइए, नदियों और झीलों के बारे में जानें। तिब्बत के पूरब से निकलने वाली ब्राह्मपुत्र नदी ताछोक खबब और ल्हासा के दक्षिण से निकलने वाली क्युछु नदी से मिलकर भारत होते हुए हिंद महासागर में मिलती है। इसी प्रकार माजा खबब नदी नेपाल होते हुए भारत में गंगा के साथ मिलकर हिंद महासागर में समा जाती है। सेङ्गे खबब नदी लद्दाख, कश्मीर और पाकिस्तान होते हुए अरब सागर में मिलती है। ऐसे ही तिब्बत में हजारों झीलें और तालाब भी हैं। सबसे बड़ी झील नामछो छुमो है। क्या नाम है झील का?” देवयानी ने बच्चों से पुन: प्रश्न किया।गेशे जम्पा के कदम कक्षा के बाहर ही ठिठक गए थे। जबसे देवयानी ने इस संस्थान में पढ़ाना शुरू किया है, तबसे उन्होंने बच्चों में एक सुखद परिवर्तन देखा है। सिरदर्द और अन्य बीमारी का बहाना बना-बनाकर मठ के अपने-अपने कमरों में सिर गाड़े पड़े रहने वाले बच्चों के मन में भी पढ़ने के प्रति एक नया उत्साह जाग उठा है। बच्चे प्रसन्नतापूर्वक उसकी कक्षा में बैठते हैं। तिब्बती भाषा के विशेष ज्ञान के साथ हिंदी की अध्यापिका के रूप में देवयानी को चयन समिति ने चुना था। बी.ए. स्तर तक भूगोल और राजनीति भी विषय होने के कारण उसे इस पद के लिए वरीयता दी गई थी।”अब आइए बच्चों, कुछ अन्य विशेषताओं के बारे में जानें। तिब्बत आर्यों की आध्यात्मिक भूमि मानी जाती है। हिंदुओं के आराध्य देव शिव का निवास कैलास मानसरोवर इसी देश में स्थित है। मुख्य रूप से बौद्ध धर्मी होने के कारण तिब्बती लोग वृक्षों, जंगलों एवं जल को देवता स्वरूप मानते हैं। इस प्रकार उनके आचार-विचार बहुत कुछ हमारे वैदिक धर्म के आसपास भी हैं, जिसमें सम्पूर्ण प्रकृति को परम् सत्ता की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है।””क्या सचमुच देवयानी?” गेशे जम्पा के मन में एक कोमल से प्रश्न ने धीरे-से सिर उठाया। न जाने कितने मधुर अर्थ इस प्रश्न को आ-आकर घेरने लगे थे। गेशे जम्पा ने इन अर्थों में मृग-छीने की तरह भटकते मन को बलात् खींचा था और एक उड़ती-सी दृष्टि कक्षा में खड़ी देवयानी पर डालते हुए आगे बढ़े। देवयानी बाहर उनकी उपस्थिति से अनभिज्ञ थी। हाथ में खुली पुस्तक लिए उसकी दृष्टि सामने बच्चों पर थी। पीली साड़ी पर खुले लंबे बाल उसकी कमर के ऊपर तक एक सीध में बिखरे थे। तांबई रंग का सलोनापन उसकी बड़ी-बड़ी आंखें में लगे पतले काजल से और भी निखर उठा था। शायद देवयानी को अच्छी तरह पता था कि उसके पूरे व्यक्तित्व में उसकी बड़ी-बड़ी उनींदी आंखें और लम्बे काले बाल ही विशिष्ट थे, तभी वह उन्हें हमेशा उभारकर संवारती थी अपने-आपको। बिना अन्य किसी साज-श्रृंगार के ही उसका सरल सौंदर्य दिपदिपा उठता। क्रमश:29

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