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दिशादर्शन

by
Oct 6, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Oct 2007 00:00:00

संस्कृत अमरीका से भारत आएगी?-तरुण विजयजब सौम्या जॉयस अंग्रेजी बोलती हैं तो वह किसी भी जन्मना अमरीकी, लेकिन मूल से भारतीय जैसी लगती हैं। आम तौर पर भारतीय मूल के लोग जो अमरीका में ही जन्मे, पले-बढ़े हैं जरा ज्यादा ही फर्राटे से अंग्रेजी बोलते हैं और उस पर अमरीकी उच्चारण। बड़ा कठिन हो जाता है कई बार समझ पाना। लेकिन सौम्या और उसकी जैसी अनेक अमरीकी भारतीय लड़कियां हिन्दी नहीं जानतीं, जो समझ में आ सके ऐसा संवाद संस्कृत में ही करना पड़ता है। संस्कृत में? क्या यह सच है? जी हां अमरीका में तो यह सच है।सौम्या का जन्म सियटल में हुआ और जब वह पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय में नर्सिंग कोर्स में स्नातक उपाधि की पढ़ाई कर रही थीं तो संस्कृत में रुचि बढ़ी और वहां संस्कृत भारती द्वारा चलाई जा रही कक्षाओं में जाने के साथ-साथ संस्कृत सिखाने के आवासीय शिविरों में भी शामिल हुईं। इस साल मई में यानी इन्हीं दिनों जबकि यह स्तंभ लिखा जा रहा है सौम्या ने तय किया कि वह अपना एक वर्ष अमरीका में संस्कृत भारती की पूर्णकालिक कार्यकत्र्ता के नाते समर्पित करेगी। सौम्या जैसी अनेक युवक-युवतियां अमरीका में जन्मीं भारतीय या अमरीकी युवा पीढ़ी में संस्कृत में ही बातचीत करने का गहरा रुझान पैदा कर रही हैं। सौम्या के अगले तीन महीने पूरी तरह से योजनाबद्ध हैं। वह जून में वेस्टकोस्ट से फ्लोरिडा जाएंगी जहां उन्हें एक संस्कृत प्रशिक्षण वर्ग में पढ़ाना है और जून के अंत में वह केवल किशोरों के लिए संस्कृत आवासीय शिविर व्यवस्था संभालेंगी। इस पांच दिवसीय शिविर का नाम है श्रद्धा। जिसमें संस्कृत पढ़ाने की जिम्मेदारी उन चार भारतीय मूल के युवा अमरीकियों को दी गई है जो संस्कृत में ही संवाद करते हैं। उनके नाम हैं-वारिजा, कार्तिक, मुथ्यु और प्रकृति। दो कार्यकत्र्ता उनसे वरिष्ठ हैं वसुवाज और शांति मुथु। वे उनका मार्गदर्शन करेंगे। इस शिविर में संस्कृत रटने, फिर रटने और रटते ही जाने की पद्धति के बजाय बातचीत, मस्ती, खेलकूद, पोकोनो पहाड़ियों पर पर्वतारोहण, खजाने की खोज और दूसरे मजेदार खेलों के जरिए सिखाई जाएगी। ये सभी खेल संस्कृत में ही निष्पादित किए जाएंगे।सवाल उठता है कि संस्कृत के जिस मूल देश में हिन्दू शिखा धारी, वास्तविक योग्यता से छल कपट रहित ब्राह्मण धर्म निभाने वाले त्याज्य और हेय माने जाते हैं और जन्म से लेकर अन्त्येष्टि तक जिस भाषा में हिन्दू संस्कार किए जाने आवश्यक हैं उसी भाषा को मृत कहकर अर्जुन सिंह जैसे उसका पठन पाठन रुकवाते हैं या कम करवाते हैं, उस संस्कृत के प्रति अमरीका जैसे देश में अभिरुचि बढ़ने का क्या कारण हो सकता है? एक कारण तो संभवत: यह है कि अमरीका में संस्कृत का प्रचार प्रसार बहुत आनंदी तरीके से उत्सवी वातावरण में किया जा रहा है- उबाऊ, बोझिल और भारी अलंकारों की सौ-दो सौ साल पुरानी पद्धति से नहीं। इस कारण किशोरों और तरुणों को संस्कृत सीखने में मजा आता है। हाल ही में वहां इसलिए जो संस्कृत श्लोक उच्चारण स्पर्धा का आयोजन किया गया था, जिसमें केवल विद्यालयों के बच्चे ही भाग ले सकते थे। इसमें 6 अमरीकी शहरों से साढ़े तीन सौ छात्रों ने हिस्सा लिया। एक समय था जब कहा जाता था कि हरेकृष्ण आंदोलन के माध्यम से श्रीकृष्ण भक्ति की भावधारा भारत में पुन: आई। तो क्या अब संस्कृत का अमृतोपम प्रवाह अमरीका से भारत आएगा?7

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