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उत्तर प्रदेशचौतरफा घिरे मुलायम-शशी सिंहउत्तर प्रदेश का चुनावी महाभारत शुरु होने को है और पक्ष-विपक्ष का पाला भी खिंच चुका है। एक तरफ हैं प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, जो पूरी तरह नि:शस्त्र दिख रहे हैं, साथी साथ छोड़ चुके हैं, चुनाव आयोग तीखी नजर रखे है, मुस्लिम समर्थक संशय में हैं। कुल मिलाकर वे अकेले पड़ गए हैं।दूसरे छोर पर खड़ी है भाजपा। वही भाजपा जो पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर पहुंच चुकी थी। उसे जनता दल (यू) तथा पिछड़े वर्ग में मजबूत पैठ वाले अपना दल का समर्थन मिल चुका है और उनके बीच पूरे तालमेल के साथ सीटों का बंटवारा भी हो चुका है। तीसरे छोर पर जनता की नजर में “अविश्वसनीय” मायावती और उनकी बसपा है जो पिछली बार की तरह अकेले मैदान में हैं और चुनाव बाद सत्ता में आने के लिए अपने किसी नए सहयोगी की तलाश में हैं। वह बिना किसी तालमेल के सभी 403 उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी हैं। इसके अलावा उ.प्र. में वी.पी. सिंह का जनमोर्चा, कांग्रेस, अजित सिंह का रालोद, महेन्द्र सिंह टिकैत की भारतीय किसान यूनियन, अहमद बुखारी का यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और राजा भैया जैसे निर्दलीय हैं।इन सबमें सबसे बुरी गति तीन सालों से अधिक समय से सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की है। प्रदेश में उनके खिलाफ सत्ताविरोधी रूझान चरम पर है। साढ़े तीन साल के भ्रष्टाचार, गुण्डाराज और कानूनहीनता की स्थिति सर चढ़कर बोल रही है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सी.बी.आई. का कसता शिकंजा तथा चुनाव आयोग रह-रह कर मुलायम को सता रहे हैं। उ.प्र. में भ्रष्टाचार की स्थिति यह है कि जिलों से लेकर मुख्यमंत्री सचिवालय तक सपा के प्रमुख नेता ही हर तरह का काम करा रहे हैं। जो सपा कार्यकर्ता कभी मोटर साइकिल के मोहताज थे वही अब सपा का झंडा लहराती बड़ी गाड़ियों में दिख रहे हैं।सी.बी.आई. के सामने सवाल है कि सामान्य किसान के रूप में राजनीति शुरु करने वाले मुलायम सिंह यादव, उनके पुत्र अखिलेश यादव व दूसरे पुत्र प्रतीक के नाम करोड़ों की सम्पत्ति कहां से आई। अभी पिछले चुनाव में अपने शपथ-पत्र के माध्यम से इन तीनों ने अपनी सम्पत्ति का जो ब्यौरा दिया था, उससे तीन साल के शासन में वह सम्पत्ति 10-12 गुना कैसे हो गयी?प्रदेश में गुण्डाराज कायम है और कानून व्यवस्था की स्थिति बेहद खराब है। उ.प्र. में प्रतिदिन औसतन 12 हत्याएं हो रही हैं, सड़क पर चलना मुस्किल हो गया है, दिनदहाड़े हत्या, वह भी राजधानी लखनऊ में, अब सामान्य बात हो गयी है।इन सब विपरीत संकेतों के बीच मुलायम सिंह के लिए सबसे बुरी खबर यह है कि उनके पुराने साथी साथ छोड़कर जा रहे हैं। उनके मंत्री हाजी याकूब तो अहमद बुखारी की यू.डी.एफ. से चुनाव का ऐलान कर चुके हैं। सत्ता में हिस्सेदार रहे अजीत सिंह पहले ही साथ छोड़ चुके हैं। भारतीय किसान यूनियन और वी.पी. सिंह के जनमोर्चा का मोर्चा अलग है। माकपा साथ है तो भाकपा अलग। राजा भैया, हरिशंकर तिवारी, श्याम सुन्दर शर्मा जैसे मंत्री तथा उनके समर्थन अब छिटक चुके हैं। सर्वोपरि मुलायम सिंह के पुराने साथी बेनी प्रसाद वर्मा तक ने विद्रोह कर दिया है। उन्होंने बहराइच और बाराबंकी की 14 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए हैं। सपा में अपने पुराने विरोधी मंत्री वकार अहमद शाह के खिलाफ उन्होंने आरिफ मोहम्मद खां की पत्नी रेशमा आरिफ को प्रत्याशी बना दिया है। लखनऊ, बाराबंकी, बहराइच और आस-पास के जिलों में बेनी प्रसाद का विद्रोह मुलायम सिंह के लिए खतरा साबित होगा।इन सबसे अलग चुनाव आयोग की सख्ती अलग सांसत पैदा कर रही है। मुख्यमंत्री के चहेते पुलिस महानिदेशक बुआ सिंह और मुख्य सचिव नवीन चन्द्र वाजपेयी जैसे दो दर्जन अधिकारियों को हटाया जा चुका है। सात चरणों में चुनाव की घोषणा कर चुनाव आयोग ने सपा के बाहुबल की कमर तोड़ने का इन्तजाम कर दिया है। हर चरण में औसतन 58 से 60 सीटों पर चुनाव होगा और बूथ के अन्दर अद्र्ध सैनिक केन्द्रीय बल तैनात होंगे, बाहर की व्यवस्था उ.प्र. की पुलिस संभालेगी। ऐसी स्थिति में भाजपा की एकजुट चुनौती अब मुलायम सिंह की भारी पड़ने वाली है।10
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