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बंगलादेश के हिन्दू

by
Sep 7, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Sep 2006 00:00:00

हमलों के बीच धर्मनिष्ठा

कोमिल्ला के चंचल घोष पर

मुस्लिम जिहादियों का हमला

-बंगलादेश से लौटकर तरुण विजय

ढाका से कोमिल्ला 97 किलोमीटर के लगभग है। सड़क अच्छी है लेकिन “ट्रैफिक” इतना ज्यादा है कि गाड़ी गति ही नहीं पकड़ पाती। पहुंचते-पहुंचते दो घंटे लग गए। हमारे साथ बंगलादेश के मानवाधिकारवादी संगठन ह्रूमन राइट्स कांग्रेस फार बंगलादेश माइनोरिटीज, ढाका के अध्यक्ष श्री रबीन्द्र घोष थे। श्री घोष को बंगलादेश के हिन्दू “वन मैन बटालियन” कहते हैं। वे भी बंगलादेश सर्वोच्च न्यायालय में एडवोकेट हैं। लेकिन उनका पूरा समय बंगलादेशी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की लड़ाई में बीतता है। उनकी आर्थिक स्थिति और संगठन के कामकाज में होने वाले खर्च की तुलना में उपलब्ध साधन प्रथम दृष्टतया: ही दयनीय कहे जा सकते हैं। लेकिन वे कभी शिकायत नहीं करते और कहते हैं, “जब तक चलता है, चलाऊंगा।”

कोमिल्ला में 20 जून की रात्रि 11 बजे स्थानीय व्यवसायी चंचल घोष की मिठाई की दुकान और जलपान गृह पर मुसलमानों ने हमला किया। पूरी दुकान तोड़ दी। मिठाई और सामान फेंक दिया तथा दुकान में जितनी नगदी थी, सब लूटकर ले गए। कुल मिलाकर दस लाख से अधिक का नुकसान हुआ। हम चंचल घोष के यहां 23 जून को पहुंचे थे, तब तक सारा समान वैसे ही का वैसा बिखरा पड़ा था। कुर्सी और मेजें टूटी हुईं, शोकेस के शीशे टूटे हुए, देवी-देवताओं के चित्र फटे हुए और भयाक्रांत चंचल घोष और उनके पिता आंखों में आंसू लिए हमारे सामने खड़े थे। मैं अब तक बंगलादेश के हिन्दुओं के बारे में होने वाले अत्याचारों की खबरें अखबारों और इंटरनेट पर ही पढ़ता आया था। यह पहला मौका था कि एक घटना के भुक्तभोगी के सामने मैं खड़ा था। चंचल घोष भारत से आए एक पत्रकार और ढाका के प्रसिद्ध मानवाधिकारवादी को सामने देखकर कुछ ज्यादा ही डर गया। हमने पूछा, “आपने पुलिस में रपट लिखवाई”, तो वह चुप रहा। रबीन्द्र घोष ने पूछा तो उन्होंने बंगला में जवाब दिया, “क्या करेगी सरकार? होना क्या है? अभी कुछ दिन पहले यहां गांव में एक मुस्लिम की एक झगड़े में हत्या हुई थी। मुझे संकेत दिया गया, ज्यादा चूं चपड़ करुंगा तो वह “मर्डर केस” लगा देंगे।” श्री रबीन्द्र घोष हारने वाले नहीं थे। उनकी हिम्मत और हौसले की जितनी तारीफ की जाए कम है। उन्होंने चंचल घोष को हौसला दिलाया। वे अपने साथ वीडियो कैमरा भी ले गए थे। शुरू से अंत तक जितनी भी बातचीत हुई वह वीडियो पर अंकित की। वे चंचल घोष को अपने साथ बिठाकर पुलिस थाने ले गए। पुलिस थाना चंचल घोष की दुकान के सामने मुश्किल से सौ कदम की दूरी पर है, लेकिन तीन दिन बीतने के बाद भी चंचल घोष की दुकान पर कोई पुलिस वाला नहीं आया। हालांकि इस हमले की खबर स्थानीय समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपी थी। पुलिस थाने में केवल सिपाही थे। प्रभारी पुलिस निरीक्षक, हमें बताया गया, कहीं गए हुए थे। रबीन्द्र घोष ने कहा, “मैंने सुबह अपने आने की सूचना दे दी थी और पुलिस अधीक्षक अनवर मन्नान से फोन पर बात की थी। उन्होंने कहा था कि आप पुलिस थाने में आ जाइए, आपको प्रभारी भी मिलेंगे और मैं भी मिलूंगा।” रबीन्द्र घोष वहां से पुलिस अधीक्षक के दफ्तर पहुंचे पर वे दफ्तर में भी नहीं थे। फिर हम पुलिस अधीक्षक के घर गए। सिपाही ने रबीन्द्र घोष से उनका परिचय जानने के बाद भीतर जाने दिया। भीतर पुलिस अधीक्षक शर्ट और लुंगी में बागीचे में घूम रहे थे। हमें देखते ही वे चिल्लाए, “कौन हो तुम लोग? तुम्हें भीतर किसने आने दिया?” रबीन्द्र घोष ने अपना वीडियो कैमरा बंद नहीं किया था। वे भी उतनी तीव्रता से चिल्लाए, “आमी रबीन्द्र घोष, ह्रूमन राइट्स एक्टीविस्ट, सुबह आपसे फोन पर बात हुई थी पर न आप थाने में मिले न दफ्तर में। इस आदमी की वहां दुकान लूट ली गई, इस पर जानलेवा हमला किया गया। तीन दिन हो गए, अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।” अनवर मन्नान थोड़ा ढीले पड़े, बोले, “तो मैं क्या करूं। पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई है क्या?” रबीन्द्र घोष ने कहा, “ये लोग डरे हुए हैं। पुलिस सहयोग नहीं देती तो रपट लिखवाने में भी इन्हें डर लगता है।” मैंने अनवर मन्नान से कहा, “आप यहां के पुलिस अधीक्षक हैं। अखबारों में इस घटना का प्रमुखता से समाचार छपा है, आपको इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है क्या?” अनवर मन्नान बोले, “मुझे कुछ नहीं मालूम। मैंने कहीं नहीं पढ़ा। और अगर अखबार में छपा भी हो तो हम क्या करें। अखबार में खबर छप जाए तो हम कार्रवाई कर लें? हमारे पास रपट लिखवाएं। उसके बाद ही हम कुछ करेंगे।” हमारे साथ चंचल घोष भी था। वह थर-थर कांप रहा था। उसने हाथ जोड़ लिए, पुलिस अधीक्षक के पांव पकड़ लिए और कहा, “मालिक मुझे बचाएं, मुझे कुछ नहीं करना। आप जैसा कहेंगे वैसा करुंगा।” चंचल घोष के मन में यह डर था कि वह एक मानवाधिकारवादी और पत्रकार के साथ आया है। पुलिस अधीक्षक उनके साथ उसे देखकर चिढ़ गया है इसलिए अब उसकी खैर नहीं। उसने कहा, उसको और उसके परिवार को कोई पुलिस रपट नहीं लिखवानी। उसे किसी के खिलाफ कुछ नहीं कहना। बाहर आने पर वह हमसे कहने लगा, “मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए। जब आप चले जाएंगे तो बाद में मेरा क्या होगा?”

कोमिल्ला में ही रबीन्द्र घोष के सहयोगी और अवामी लीग के नेता मोहम्मद अनवर हुसैन मिले। वास्तव में चंचल घोष को थोड़ा बहुत सहारा मोहम्मद अनवर हुसैन और उनके सहयोगी ने ही दिया। चंचल घोष हिन्दू होने के नाते अवामी लीग के समर्थक माने जाते हैं। उनका कहना है कि आसपास की किसी भी दुकान पर हमला नहीं हुआ। केवल चंचल घोष की दुकान पर इसलिए हमला किया गया क्योंकि वह हिन्दू है। और हमलावरों ने चंचल घोष से कहा, “तूम्मी इंडिया जाओ।” इसका क्या मतलब है? ये लोग साम्प्रदायिक जहर फैला रहे हैं। हिन्दू- मुस्लिम एकता को तोड़ रहे हैं। चंचल घोष उतने ही बंगलादेशी हैं जितना कोई मुस्लिम, पर बीएनपी के सत्ता में आने के बाद स्थानीय जिहादी और जमात के लोग हर हिन्दू को भारत जाने के लिए ताने मारते हैं और उन्हें यहां से निकालने की कोशिश कर रहे हैं। पुलिस और प्रशासन हमलावरों के साथ मिला रहता है। हर किसी के वश में होता नहीं कि वह ढाका की अदालत के धक्के खाए और बहुत अधिक खर्च करे, फिर न्याय के लिए प्रतीक्षा करे। एक साधारण से न्याय के लिए भी बरसों लग जाते हैं, तब तक सब कुछ बर्बाद हो चुका होता है। खालिदा सरकार अल्पसंख्यक विरोधी है।

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