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रोगी का हित सर्वोपरि-स्वामी रामदेवश्रीगुरुजी जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में गत 16 व 17 सितम्बर को नागपुर में “निरामय-2006, अखिल भारतीय वैद्यक परिषद” की दो दिवसीय बैठक सम्पन्न हुई। बैठक का आयोजन विश्व आयुर्वेद परिषद, नेशनल मेडिकोज आर्गेनाइजेशन, आयुर्वेद व्यासपीठ एवं होमियोपैथिक एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। इसका उद्घाटन प्रख्यात योग गुरु स्वामी रामदेव ने किया। इस अवसर पर रा.स्व. संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन भी उपस्थित थे। अपने सम्बोधन में स्वामी रामदेव ने कहा कि चिकित्सा पद्धति कोई भी हो, रोगी का हित सर्वोपरि रहना चाहिए। विभिन्न उपचार पद्धतियों में परस्पर विरोधाभास के पीछे अज्ञानता और स्वार्थ को प्रमुख कारण बताते हुए स्वामी जी ने कहा कि चिकित्सा पाठक्रम में विश्व की सभी प्रमुख चिकित्सा पद्धतियों का एक अध्याय अवश्य होना चाहिए। योग को अखिल मानवता के लिए उपयोगी बताते हुए स्वामी जी ने बताया कि अनवर नामक व्यक्ति ने अपनी हज यात्रा के दौरान मक्का और मदीना में भी एक योग शिविर का आयोजन किया। उन्होंने शिक्षा और चिकित्सा नि:शुल्क दिए जाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि आयुर्वेद का जो प्रचलन देश में स्वतंत्रता के बाद होना चाहिए था, वह नहीं हुआ।इस अवसर पर रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने कहा कि अनुकूल संवेदना से सुख और प्रतिकूल संवेदना से दु:ख उपजता है। पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति ने मन और शरीर को अलग-अलग माना, जबकि भारतीय चिन्तन के अनुसार मनुष्य का व्यक्तित्व शरीर-मन-बुद्धि-आत्मा का समन्वित रूप है। इसमें एक की असंतुष्टि दूसरे को भी प्रभावित करती है। श्री सुदर्शन ने चिकित्सकों से भारतीय चिंतन को समझते हुए रोग निवारण एवं नवीन अनुसंधानों पर काम करने का आह्वान किया।परिषद में अनेक विषयों पर विख्यात विशेषज्ञों ने भी अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए। रा.स्व.संघ के सह सरकार्यवाह श्री भैया जी जोशी एवं आरोग्य भारती के अध्यक्ष डा. राघवेन्द्र कुलकर्णी ने समापन समारोह को सम्बोधित किया। वि.सं.के., नागपुर31
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