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पाठकीय

by
Aug 10, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Aug 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 10 सितम्बर, 2006

पञ्चांग

संवत् 2063 वि. –

वार

ई. सन् 2006

कार्तिक कृष्ण 1

रवि

8 अक्तूबर

,, 3

सोम

9 ,,

,, 4

मंगल

10 ,,

श्री गणेश चतुर्थी व्रत (करवा चौथ)

,, 5

बुध

11 ,,

,, 6

गुरु

12 ,,

,, 7

शुक्र

13 ,,

,, 8

शनि

14 ,,

फतवों का बाजार

परदे के पीछे लगा, फतवों का बाजार

जैसी जिसकी मांग है, वैसा है तैयार।

वैसा है तैयार, मुझे ऐसा मिल जाए

जिससे मेरे दुश्मन पर कालिख पुत जाए।

कह “प्रशांत” जो पैसे के आगे झुकते हैं

उन मुल्लों के हाथों ये फतवे बिकते हैं।।

-प्रशांत

सूक्ष्मिका

दिल्ली को बचाइये

कठोर निर्णय

आने लगे हैं

देशवासियों को

सताने लगे हैं।

सीलिंग के कहर से

दिल्ली को बचाइये

दया याचिका, राष्ट्रपति तक

जरूर पहुंचाइये।

यथास्थिति सर्वोत्तम है

जुर्माना जरूर लीजिये

और यदि हटाएं भी

तो पुनर्वास भी दीजिये।

-डा. श्याम अटल21,

मून्दड़ा कालोनी, उज्जैन (म.प्र.)

इनके दिल में भारत ढूंढो

पाकिस्तान में बलूच नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या के सन्दर्भ में रक्षा विश्लेषक मे.ज. (से.नि.) अफसिर करीम एवं प्रो. सुजीत दत्ता के विचार पढ़े। बुगती की हत्या के बाद बलूचवासियों ने जबर्दस्त आक्रोश दिखाया। विश्लेषकों ने ठीक ही कहा है कि यदि इस आक्रोश को पाकिस्तान की सरकार नहीं समझी तो पाकिस्तान का 1971 की राह पर बढ़ना तय है। आखिर क्या कारण हैं कि जिस पाकिस्तान का निर्माण मजहब के आधार पर हुआ था उसके अनेक प्रान्तों में विद्रोह की आग भड़क रही है। वहीं भारत, जहां अनेक मजहबों के लोग रहते हैं, वह हर दृष्टि से पाकिस्तान से आगे है। पाकिस्तानी शासकों को अपनी नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए।

-शशि भूषण

जमनीपहाड़पुर, गोड्डा (झारखण्ड)

नवाब अकबर बुगती की हत्या पाकिस्तानी सेना की बर्बरता की पराकाष्ठा है। 80 वर्षीय बुगती की हत्या से बलूचिस्तान का अशान्त और उग्र होना स्वाभाविक है। दमन द्वारा बलूचवासियों के उत्साह को कम नहीं किया जा सकता। भारत सरकार को बलूचों पर हो रहे अत्याचारों का विरोध करना चाहिए।

-शिव शंकर

बनवरिया, जहानाबाद (बिहार)

वन्दे मातरम् पर श्री आरिफ मोहम्मद खान और अन्य लेखकों के विचार पढ़े। ऐसा लगा कि हम मुसलमानों को यह समझाने में सफल हो जाएंगे कि इस गीत में कोई मूर्ति पूजा है ही नहीं। परन्तु इन्डियन एक्सप्रेस (7 सितम्बर) में यह पढ़कर मन विचलित हुआ कि बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा लिखित उपन्यास आनन्द मठ में मुस्लिमों के खिलाफ जहर भरा है। और वन्दे मातरम् में भारत मां को मुस्लिम राज से मुक्ति दिलाने का संकल्प है। ऐतिहासिक सच तो यह है कि मीरजाफर की गद्दारी के कारण पलासी के युद्ध में अंग्रेजों ने नवाब सिराजुद्दौला को हरा कर पूरे बंगाल पर अधिकार कर लिया और मीरजाफर को नाममात्र का नवाब बना दिया। राजसी कर अंग्रेज वसूलते थे। नवाब को केवल पेंशन ही मिलती थी। प्रशासन की बागडोर अंग्रेजों के हाथ थी। बंकिम चन्द्र चटर्जी ने अपने उपन्यास में यह दर्शाया है कि बेरहमी से अंग्रेज मीरजाफर के साथ पेश आ रहे थे और क्रूरता से गरीब किसानों से लगान वसूल कर रहे थे, जबकि सारे देश में अकाल पड़ा था। ऐसे में आनन्द मठ के संन्यासी और ब्राह्मचारी अंग्रेजी जुल्म के खिलाफ संघर्षरत थे, उनका प्रेरणादायक गीत था वन्दे मातरम्।

-हरिसिंह महतानी

89/7, पूर्वी पंजाबीबाग (नई दिल्ली)

मुखपृष्ठ पर वन्दे मातरम् का उर्दू अनुवाद पढ़ा। आशा है सिर्फ उर्दू जानने वाले भी इस अनुवाद से वन्दे मातरम् की भावना को समझ पाएंगे। परन्तु वन्दे मातरम् को उसकी मूल भाषा में ही गाया जाना चाहिए। पाकिस्तान के बारे में निरन्तर मिल रहे समाचारों से लगता है कि महर्षि अरविन्द की भविष्यवाणी शीघ्र सच होने वाली है। डा. सतीश शर्मा के लेख “अपनी हिन्दी, सबकी हिन्दी” से पता चला कि 180 देशों में हिन्दी बोली जाती है। “समरसता के सूत्र” ग्रन्थ का लोकार्पण इस अंक का आकर्षण रहा। मराठी के प्रसिद्ध कवि श्री नामदेव ढसाल की पीड़ा वास्तविक है।

-डा. नारायण भास्कर

50, अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)

वन्दे मातरम् के सन्दर्भ में श्री आरिफ मोहम्मद खान के विचारों से सेकुलर नेताओं, पत्रकारों एवं लेखकों को निराशा ही हुई होगी। यह अच्छी बात है कि आज श्री खान जैसे अनेक मुसलमान भारत माता की वन्दना करते हैं। दिनों-दिन इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। श्री नामदेव ढसाल के उद्बोधन प्रेरक हैं। सामाजिक समरसता के प्रति उनकी छटपटाहट को समझा जा सकता है।

-क्षत्रिय देवलाल

उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)

“समरसता के सूत्र” ग्रंथ के लोकार्पण का समाचार पढ़ा। ग्रंथ के सम्बंध में जो जानकारी मिली है उससे कथित सवर्ण एवं दलित समाज के भेद मिट सकते हैं, बशर्ते इसको अधिक से अधिक लोग पढ़ें।

-सुशील सिंह माहौर

फतेहपुर सीकरी, आगरा (उ.प्र.)

ज्ञानवद्र्धक लेख

मंथन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप का लेख “पूना पैक्ट ने राजनीति की दिशा बदल दी” ज्ञानवद्र्धक है। गोलमेज सम्मेलन का आयोजन करके ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं को एक मंच पर लाकर राजनीति की चौकड़ी बैठानी शुरू की थी। किन्तु 1915-1917 तक गांधी जी ने बिहार में किसानों की समस्याओं पर ध्यान दिया। सविनय अवज्ञा आदि आन्दोलनों के कारण भी पूरे देश में उनकी प्रसिद्धि बढ़ रही थी। अत: अंग्रेजों ने उनके कद को कम करने की कवायद शुरू की। हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए उन्होंने डा. अम्बेडकर को लुभाया।

-दिलीप शर्मा

114/2205, एम.एच.वी. कालोनी, समतानगर, कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)

ये नेता

नई दिल्ली में आन्तरिक सुरक्षा पर आयोजित मुख्यमंत्रियों की बैठक में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने मुस्लिमों में व्याप्त असुरक्षा की भावना पर चिन्ता व्यक्त की। यह एक गंभीर विषय है। किन्तु यह असुरक्षा क्यों है, इसका निदान क्या है? इस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। गत दिनों जर्मनी, आस्ट्रेलिया एवं स्पेन के मुसलमानों ने अपनी-अपनी सरकारों को आतंकवादी हमलों के विरुद्ध सहयोग देने का आश्वासन दिया था। किन्तु भारत में क्या स्थिति है? यहां आतंकवादी घटनाएं खूब हो रही हैं। दुर्भाग्य से इन घटनाओं के पीछे कोई न कोई कट्टरपंथी मुसलमान ही होता है। पर मुस्लिम नेता उन आतंकवादियों की खुलकर निन्दा नहीं करते। किन्तु जब आरोपियों को पकड़ने के लिए सुरक्षा बल किसी मुस्लिम परिवार के यहां छापा मारते हैं, तो नेता बढ़-चढ़ कर बोलने लगते हैं कि मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है। काश ये नेता मजहब से ऊपर उठकर आतंकवादी को सजा देने की मांग करते, उसका समाज से बहिष्कार करते, तो परिदृश्य कुछ और ही होता।

-विमल चन्द्र पाण्डे

पंचायत संचार सेवा केन्द्र, चारपान, गोरखपुर (उ.प्र.)

हमारी न्याय-व्यवस्था!

1993 के मुम्बई बम काण्ड के आरोपियों को 13 साल बाद अभी भी दोषी ही ठहराया जा रहा है। सजा तो बाद में सुनाई जाएगी। इसी से पता चलता है कि हमारी न्याय-व्यवस्था कैसी है। किसी मामले का इतने दिनों बाद निपटारा होने से पीड़ितों के साथ न्याय नहीं हो पाता है। इसलिए कुछ मामलों के लिए ऐसी व्यवस्था की जाए कि उनका निपटारा यथाशीघ्र हो।

-कपिल

3डी-56 बी, एन.आई.टी. फरीदाबाद (हरियाणा)

पुरस्कृत पत्र

धन से छोटा, मन से बड़ा

लगभग सायं के साढ़े सात बजे होंगे। मैं अपने घर के बाहर दरवाजे पर खड़ा था। साथ में मेरी पत्नी भी थी। तभी 60 वर्ष का बहुत कमजोर-सा दिखने वाला हाथ में थैला लिये एक व्यक्ति हमारे पास आया। रामधारी नामक उस व्यक्ति ने पहले मेरी धर्मपत्नी के पैरों पर अपना माथा टेका, फिर मुझे प्रणाम किया। मैं कुछ समझ पाता या उसका नाम-पता पूछता, उससे पहले ही उसने थैले से 5 किलो चीनी, एक किलो चायपत्ती और 120 रुपए नकद निकाला और मुझे देते हुए कहा कि यह सब अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए लाया हूं। मैं उसकी दयनीय स्थिति को देखकर असमंजस में पड़ गया। मैंने उससे कहा कि सेवा भारती पर तो प्रभु की अपार कृपा है, यह सामान अपने बच्चों के लिए घर वापस ले जाओ। इस पर उसने हाथ जोड़कर कहा कि “एक साल पहले मैं सड़क दुर्घटना के कारण सरकारी अस्पताल, यमुनानगर में दाखिल था। अस्पताल में सेवा भारती के कार्यकर्ताओं ने मेरी 20-25 दिन तक खूब सेवा की थी। तब से मेरे मन में सेवा भारती के प्रति बड़ी श्रद्धा उत्पन्न हो गई है। मैंने अस्पताल में बिस्तर पर लेटे-लेटे ही संकल्प किया था कि ठीक होने पर मैं भी सेवा भारती की कुछ सेवा करूंगा, परन्तु ठीक होने पर मैं अपने घर बिहार चला गया था। अब फिर 4 महीने पहले यमुनानगर वापस आया हूं। मैं कभी मजदूरी, तो कभी रेहड़ी पर सब्जी आदि बेचता हूं। अभी कुछ दिन हुए मैं आपके मोहल्ले में सब्जी की रेहड़ी लेकर आया था। आपके घर के दरवाजे पर “सेवा भारती” लिखा देखकर आपकी धर्मपत्नी से पूछा कि अब भी सेवा भारती वाले सुबह अस्पताल में जाते हैं तो उन्होंने कहा हां। इसलिए मैं यह सामान लेकर आया हूं, मना मत कीजिएगा।”

उल्लेखनीय है कि सेवा भारती के कुछ कार्यकर्ता पिछले अनेक वर्षों से सुबह के समय यमुनानगर स्थित सरकारी अस्पताल में जाते हैं। वहां भर्ती रोगियों को दूध, चाय, गर्म पानी आदि नि:शुल्क वितरित करते हैं। विशेष बात यह है कि ये सभी कार्यकर्ता 60 साल के ऊपर के हैं। यही लोग स्वयं पहले दूध खरीदते हैं, उसे उबालते हैं, चाय बनाते हैं, फिर अस्पताल पहुंचते हैं।

-कृष्ण गोपाल दत्ता

2122, रघुनाथपुरी,

यमुनानगर (हरियाणा)

हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।-सं.

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