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शक्तिपीठ हिंगलाज की तीर्थयात्रा (बलूचिस्तान, पाकिस्तान)-(9)

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Jul 5, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jul 2006 00:00:00

हर ओर बिखरी हैं भारत की यादें

पाकिस्तान में हिन्दू हैं लेकिन अदृश्य धारा के रूप में

तरुण विजय

क राची में आना और महमूद शाम से मिले बिना जाना संभव नहीं। वे पाकिस्तान के सबसे बड़े उर्दू अखबार दैनिक जंग के समूह सम्पादक हैं और प्रतिष्ठित शायर भी। दुनिया भर के मुशायरों में उनकी धूम रहती है और भारत से दोस्ती के लिए उनका एक खास दृष्टिकोण रहा है जिसे तमाम आलोचनाओं के बावजूद उन्होंने बदला नहीं। पिछले भूकम्प के वक्त उन्होंने कुछ पंक्तियां लिखकर मुझे भेजी थीं जो उनके भावुक मन, गहराई को बताते हैं-

डगमगाते हैं मेरे पांव, जमीन हिलती है।

मेरा बस्ता मेरे हाथों से गिरा जाता है।

आसमान मुझको बुलाता है,

अकेला ही चला जाऊं मैं।

मेरा कराची आना इतना अचानक हुआ कि पहले खबर नहीं कर सका। पर वहां पहुंचकर जैसे ही फोन किया वे हमारे होटल में मिलने आए और यूं गले मिले कि तमाम सरहदें दरकती दिखीं। फिर तो कड़ी सुरक्षा व्यवस्था को भेद हम उनके दफ्तर गए, उन्होंने अपने सहयोगियों और मित्र भी मजीद अब्बासी से मिलवाया और फिर शाम को सिंध विधानसभा के विधायक मुकेश कुमार चावला के घर सिंध के प्रसिद्ध राजनेताओं और पत्रकारों से भेंट हुई। मुकेश कुमार सुप्रसिद्ध सिंधी नेता भगवादान चावला के बेटे हैं और समाज में उनकी काफी प्रतिष्ठा है। हमारी बातचीत में कोई ऐसा पड़ाव नहीं आया जिसमें तिक्कता उभरती हो। हम भी सावधान थे और आपसी मेलजोल, भाईचारे तथा मोहब्बत के अंदाज में ही सिलसिला चलता रहा। शाम साहब के दफ्तर में जाते समय सीढ़ियों से उतरतीं एक महिला से उन्होंने परिचय कराया- यह रीमा हैं, कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं, और रीमा जी से हमारा परिचय कराया। रीमा भारत का नाम सुनते ही उत्साहित होकर आपसी रिश्तों को और मजबूत बनाने की जरूरत पर जोर देने लगीं और कहा हम तो सिर्फ अमन चाहते हैं। भारत और पाकिस्तान के लोग एक जैसे ही हैं, सरहदों पर तनाव खत्म हो, दहशद गर्दी खत्म हो और हम बिना पाबंदियों के एक दूसरे से मिले तो कितना अच्छा होगा। मैंने कहा जरूर आप भारत आइए, वहां तो पाकिस्तान के कई कलाकार प्रसिद्ध हो रहे हैं। बाद में शाम साहब ने बताया कि ये पाकिस्तान की सबसे सुप्रसिद्ध नायिका हैं जिन्हें यहां की ऐश्वर्या राय कहा जाता है।

कराची में सिंध क्लब अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया गया था और अब भी उसकी बनावट और लहजा ब्रिटिश गंध से व्याप्त है। यहां पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष मखदूम खलीकुज्जमा ने श्री जसवंत सिंह, उनके साथ आए मेजर जनरल सूरज भाटिया और पुत्र व सांसद मानवेन्द्र सिंह, उ.प्र. के पूर्व मंत्री भारतेन्द्र सिंह तथा भारतीय उच्चायुक्त के सम्मान में रात्रि भोज दिया। पाकिस्तान में भारतीय उच्चायुक्त शंकर मेनन पुराने मित्र हैं, उन्होंने मुझे भी साथ में चलने का आग्रह किया और सिंध के नेताओं से परिचय कराया। यहां कई प्रमुख पत्रकार और सम्पादक भी थे। सिंध क्लब में प्रवेश करते ही खलीकुज्ज्मा और बाकी नेताओं ने हाथ जोड़कर “राम-राम साईं”, नमस्ते साईं कहकर हमारा स्वागत किया। सिंध के स्वभाव में ही यह आत्मीयता और विनम्रता है। यहां पूरा माहौल परवेज मुशर्रफ के तीव्र विरोध में था और वे स्पष्ट रूप से कह रहे थे कि भारत के साथ रिश्ते परवेज मुशर्रफ के दौर में नहीं सुलझ सकते। यहीं पीपुल्स पार्टी के कराची में मीडिया प्रभारी श्री पेसुमल से भी मुलाकात हुई। वे इंजीनियर हैं। सिंध में हिन्दू लड़कियों के अपहरण और उनको जबरन मुस्लिम बनाने की घटनाओं पर उनसे चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं होती हैं, कई बार लड़की के घरवाले ही हिम्मत नहीं करते और पुलिस में रपट नहीं लिखाते। परन्तु पीपुल्स पार्टी ने ऐसी घटनाओं को गंभीरता से उठाया है और पुलिस के साथ भी इन समस्याओं को सुलझाने के लिए कोशिशें की हैं।

कराची में हुए श्री जसवंत सिंह के स्वागत समारोह में भी पाकिस्तान के प्रसिद्ध राजनेता, पत्रकार और संस्कृतिकर्मी आए। बलूचिस्तान के नेता सरदार शाहबाज भजारी व्योवृद्ध हैं, लेकिन बलूचिस्तान के साथ पाकिस्तान सरकार की नाइंसाफी और पाकिस्तानी फौजों की दहशतगर्दी से अत्यन्त दुखी हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान की केन्द्र की सरकार बलूचिस्तान को खत्म कर रही है और वहां के लोगों की जायज मांगों को ठुकराकर उन्हें अपने ही घरों में कैदी और गुलाम जैसा अहसास करा रही है।

अगले दिन हम बाजार गए, वह भी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच। शाम साहब ने उर्दू बाजार में एक बड़ी किताबों की दुकान का पता बताया था जो एक जैदी साहब की है। पूरा बाजार सिर्फ किताबों का है। यहां आकर लगा कि अगर हम उर्दू जानते तो ज्यादा अच्छी तरह से किताबें चुन सकते थे। अंग्रेजी की किताबें ज्यादातर अमरीका और ब्रिटेन के लेखकों या उनके किए गए शोध पर आधारित है। पाकिस्तानी लेखकों की पुस्तकों में दर्जन से ज्यादा ऐसी दिखीं जिनमें पाकिस्तान के “सपने” के खत्म होने, राजनेताओं द्वारा पाकिस्तान के “विचार” के साथ विश्वासघात जैसे विषयों पर तीखी आलोचनाएं की गयी थीं। पाकिस्तान की पाठ्यपुस्तकों में जिहादी और कट्टर इस्लामियत जबरन पढ़ाने के विरोध में भी एक रपट मिली, जिस पर विस्तार से बाद में चर्चा करेंगे। भारत के लेखकों की भी काफी किताबें हैं जिनमें कुलदीप नैयर, खुशवंत सिंह, एम.जे. अकबर, अरुंधती राय, विक्रम सेठ जैसे लेखकों की ही पुस्तकें दिखीं। मेरे साथ पुस्तकों में गहरी रूचि रखने वाले राजस्थान भाजपा के उपाध्यक्ष श्री ओंकार सिंह लाखावत भी थे। उन्हें भी जो पुस्तकें रूचीं खरीदीं। हमारी गाड़ी की पूरी डिक्की किताबों से भर गई। पर एक बात ध्यान आई कराची के सुप्रसिद्ध पुस्तक बाजार में एक भी किताब हिन्दुओं पर नहीं थी। हमने लगभग हर दुकान में जाकर पूछा कि पाकिस्तान के हिन्दू मंदिरों पर कोई किताब है? क्या पाकिस्तान में हिन्दुओं के बारे में कोई किताब है? क्या पाकिस्तान में हिन्दुओं की “इतनी शानदार कामयाब और बिना किसी भेदभाव के जिन्दगी बसर करने” पर कोई सामाजिक सांस्कृतिक रिसाला है? क्या पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या और उनकी सामाजिक स्थिति या राजनीतिक सहभागिता पर कोई किताब है? क्या पाकिस्तान में किसी भी गैर इस्लामी मजहब को मानने वाले लोगों के तीर्थ स्थान या उपासना स्थल या उनके जीवन के किसी भी पहलू के बारे में कोई किताब है? क्या पाकिस्तान की किसी भी पाठ पुस्तक में पहली से दसवीं बारहवीं या बी.ए., एम.ए. तक कोई ऐसा अध्याय है जिसमें सिंध के राजा दाहिर या गैर इस्लामी महापुरुषों, नायकों, समाज सुधारकों, कलाकारों के बारे में कुछ लिखा और बताया गया हो? क्या आपके पास कोई ऐसा पिक्चर पोस्ट कार्ड या पाकिस्तान में पर्यटकों के लिए तैयार किया गया साहित्य या पैम्फलेट है, जिसमें पाकिस्तान की गैर इस्लामी तीर्थों या ऐतिहासिक स्थलों का जिक्र हो?

इनमें से प्रत्येक प्रश्न का उत्तर इनकार में ही मिला। हमें बताया गया था कि कराची में 20 से 25 लाख हिन्दू हैं और पूरे पाकिस्तान में लगभग 50 लाख हिन्दू बचे हैं। इनके बच्चे पाकिस्तान के ही स्कूलों में पढ़ने जाते हैं और वहां उन्हें अनिवार्यत: इस्लामियत के पाठ पढ़ने पढ़ते हैं। हिन्दू संस्कार या रामायण या महाभारत, जितना घर में बुजुर्ग बता सकें या जब वे भारत आए तो यहां से खरीद कर ले जा सकें, वहीं तक सीमित रहता है। वहां के हिन्दुओं में भी अब हिन्दी पढ़ने वाले बचे-खुचे रह गए हैं। क्योंकि हिन्दी किसी काम की भाषा नहीं रह गई है। वहां के हिन्दुओं को अल्पसंख्यक संस्थान, अल्पसंख्यक विद्यालय, या अल्पसंख्यक के लिए आरक्षण का भी अवसर प्राप्त नहीं है। वे जैसे हैं वैसे रहते हुए थोड़ी बहुत कहीं से सुविधा पा जाते हैं जैसे राजनीतिक चुनावों में 57 साल बाद उन्हें सीधे वोट देने का हक मिला तो उसी में वे निहाल हुआ मानते हैं। वे हिन्दू बने रहे और चुपचाप बिना शोर किए, बिना अधिकारों की मांग किए अपना नौकरी, व्यापार, धंधा चलाते रहे यही उनके लिए सुरक्षा का उपाय है। वहां की मुख्य धारा में उनका कोई दखल, पहचान या आवाज नहीं है। हम जिनसे भी मिले वे अपने-अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध, धनी, प्रभावशाली हिन्दू थे। उनसे यह उम्मीद भी करना कि वे अपनी स्थिति के बारे में हमसे कुछ दु:ख व्यक्त करेंगे अन्यायपूर्ण और नाजायज था। क्योंकि उनकी स्थिति में किसी भी प्रकार की बेहतरी के लिए अमरीका से तो उम्मीद हो सकती है लेकिन उस भारत सरकार से तो कभी भी नहीं जो भारत में ही हिन्दू संवेदनाओं का ध्यान नहीं रखती।

पाकिस्तान में जहां भी जाएं भारत की यादों की सुगन्ध हर कोने में दिखती है। पान वाले से हमने पूछा भाईजान आप कहां के रहने वाले हैं तो बोले-आगरा के, कपड़े वाले ने कहा मुरादाबाद के, हमारा टैक्सीवाला मथुरा का था। कराची में बनारस, दिल्ली, लखनऊ के नाम पर दुकानें हैं। हैदराबाद की सबसे प्रसिद्ध बेकरी का नाम है बाम्बे बेकरी जिसके मालिक अभी भी हिन्दू हैं। शाम साहब पटियाला के पास राजपुरा के रहने वाले हैं और उन्होंने अपने दफ्तर में एक हिन्दू युवा पत्रकार से भी मुलाकात करवाई। फिर नफरत क्यों है? यह सवाल उठते ही या तो लोग कतरा जाते हैं या राजनीति पर दोष डालते हैं।

शाम को हमसे मिलने दैनिक डॉन की फीचर सम्पादक हूमा युसुफ आईं। वे आधुनिक प्रगतिशील विचारों की पत्रकार हैं और लंदन स्कूल आफ इकानामिक्स में कुछ समय के लिए अध्ययन हेतु जा रही हैं। उन्होंने पूछा कराची कैसा लगा। मैंने कहा बहुत अच्छा क्योंकि कोई भी शहर वहां के लोगों की वजह से ही अच्छा या खराब होता है, इमारतों से नहीं। वे हंस पड़ी, बोलीं यहां कुछ आपको चाहिए तो बताइए। मैंने कहा यहां दुनिया के हर विषय पर किताबें देखने को मिलीं, लेकिन पाकिस्तान में हिन्दू हैं भी या नहीं हैं इसके बारे में एक पंक्ति भी कहीं नहीं मिली। हुमा चुप हो गईं और बोलीं अच्छा मैं तलाश करूंगी और अगली बार भारत आई तो ऐसी कोई किताब आपके लिए ढूंढकर लाऊंगी।

कराची में सिंध के मुख्यमंत्री अरबाब गुलाम रहीम ने पूरे यात्री दल के स्वागत में शानदार दावत दी थी। स्वागत करते-करते उन्हें ध्यान आया कि अगले दिन 5 फरवरी है जो पाकिस्तान में कश्मीर दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे कश्मीर मसले पर बोले और श्री आडवाणी का बिना नाम लिए उनके जिन्ना सम्बंधी वक्तव्य पर भारत में मचे बवाल की आलोचना की। एक पाकिस्तानी पत्रकार ने हैरान होकर कहा कि तार्थयात्रियों के सामने यह नितांत गैर राजनयिक और घरेलू राजनीतिक फायदे के लिए किया भाषण था। इस भाषण के उत्तर में श्री जसवंत सिंह अरबाब गुलाम के सवालों को टाल गए और सीधा दोस्ताना भाषण ही दिया। इस रात्रि भोज में पाकिस्तान में चीन के राजदूत भी खासतौर पर आए हुए थे। अरबाब गुलाम के भाषण के बाद अचानक ऐसा लगा मानो दोस्ती की गर्मजोशी पर राजनीति का ठण्डा पानी पड़ गया। साधारण लोग जो भी कहें, निर्णायक तौर पर जो तलखियां और “मैं न बदलूं” वाला भाव है वह इसी तरह वातावरण बदलता भी रहता है और भरोसा भी पैदा नहीं करने देता।

यहीं हमारी भेंट कराची उच्च न्यायालय में वकील श्रीमती कल्पना देवी से हुई। उन्होंने कहा बहुत कुछ हमारे आत्मविश्वास और हिम्मत पर भी निर्भर करता है। जो होगा देखेंगे लेकिन डरेंगे नहीं। जब तक हम यह सोचकर न चले तो जिन्दा रहना भी मुश्किल हो जाएगा। मुझे अपने व्यवसाय में हिन्दू होने के नाते कोई दिक्कत नहीं होती अगर कभी कोई दिक्कत हुई भी तो जमकर मुकाबला करती हूं। अगले दिन हमें सिंध हैदराबाद और सेवन शरीफ में लालशाहबाज कलंदर की दरगाह जाना था। अपने को एक बड़ा आकर्षण था कि वहां सिंधु नदी के दर्शन हो सकेंगे। ईश्वर ने निराश नहीं किया और वहां सिंध के एक प्रसिद्ध सम्पादक महेश कुमार से भी मुलाकात हुई। शेष अगली बार

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