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27 जुलाई से 5 अगस्त तक हो रही है बूढ़ा अमरनाथ यात्रा

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Jun 8, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jun 2006 00:00:00

बाबा औघड़ वरदानी-खजूरिया एस. कांतजम्मू शहर के उत्तर-पश्चिम में 290 कि.मी. दूर स्थित पुंछ जिले में बसा है राजपुरा गांव। यहीं की लोरेन घाटी में समुद्र तल से 4,500 फीट की ऊंचाई पर बाबा बूढ़ा अमरनाथ विराजमान हैं। बाबा का यह विग्रह श्वेत-बिल्लौरी (स्फटिक) पत्थर के स्वरूप में प्रकट है और बाबा बूढ़ा अमरनाथ चट्टानी के नाम से प्रसिद्ध है। गत 28 जुलाई को जम्मू से यात्रियों का एक दल बाबा बूढ़ा अमरनाथ की यात्रा के लिए रवाना हुआ। इससे पहले 27 जुलाई की शाम को जलाभिषेक कार्यक्रम हुआ, जिसमें बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक श्री प्रकाश शर्मा आदि उपस्थित थे। बाबा बूढ़ा अमरनाथ पहुंचने के लिए जम्मू से सुंदरबनी, नौशहरा, राजौरी, स्वर्णकोट (सुरनकोट) और चण्डक होते हुए मण्डी (पुंछ) पहुंचा जा सकता है। यह सम्पूर्ण मार्ग अत्यंत दुर्गम और आतंकवाद से ग्रस्त है। सायंकाल 4 बजे के बाद मार्ग पर यातायात रोक दिया जाता है और प्रात: 7 बजे तभी खुलता है जब सेना का बम निरोधक दस्ता पूरे मार्ग का निरीक्षण कर लेता है। यह मार्ग पाकिस्तान सीमा से सटकर जाता है। यह क्षेत्र आतंकवादियों का अड्डा है। नौशहरा, राजौरी और पुंछ से भी हिन्दुओं को भगाने का षड्यंत्र चल रहा है। ऐसी कठिन परिस्थिति में यह यात्रा लगभग समाप्त सी हो गयी थी, लेकिन अब यात्रा को पुनप्र्रतिष्ठित करने का दायित्व हिन्दू समाज के सहयोग से बजरंग दल ने लिया है।कथाओं में चट्टानी बाबाइस पवित्र तीर्थ स्थान की यात्रा के सम्बंध में बहुत सी कथाएं प्रसिद्ध हैं, जिनमें से एक रावण के दादा पुलत्स्य ऋषि की है, जो प्रतिवर्ष बाबा अमरनाथ के दर्शन करने कश्मीर घाटी जाते थे। एक वर्ष वे अत्यंत वृद्ध होने के कारण नहीं जा सके तो हिमस्वरूप बाबा अमरनाथ ने स्वयं प्रकट होकर उन्हें इसी स्थान पर दर्शन दिए जोकि उनकी तपस्थली है। कालान्तर में सुन्दर लोरेन घाटी की महारानी की कथा भी इसमें जुड़ गई। बताया जाता है कि महारानी चन्द्रिका भगवान की अनन्य भक्त थीं, लेकिन कश्मीर में हिम के कारण परिस्थितियां यात्रा के अनुकूल नहीं थीं। यात्रा का समय समीप आ रहा था। महारानी यह सोचकर कि प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते उनका अमरनाथ यात्रा करना सम्भव नहीं है, विक्षुब्ध और उदास रहने लगीं। महारानी चन्द्रिका ने अमर व्रत रखा और प्रतिपल भगवान अमरनाथ का नाम जपने लगीं। तपस्या में लीन महारानी को एक बूढ़े साधु ने, जिनके हाथ में एक पवित्र छड़ी थी, दर्शन दिए और बताया कि लोरेन से ढाई कोस नीचे पुलस्ती नदी के तट पर श्री अमरनाथ के पवित्र और दिव्य दर्शन हो सकते हैं। महारानी इस साधु के नेतृत्व में अपने साथियों को साथ लेकर बताए स्थान पर गईं और श्री अमरनाथ महादेव की पूजा में तल्लीन हो गईं। कहते हैं कि वह वृद्ध श्वेतवर्णीय साधु उसी स्थान पर अदृश्य हो गए। बहुत ढूंढने के पश्चात भी साधु का कहीं पता नहीं चला। सभी को विश्वास हो गया कि वह महादेव ही थे। साधु के लोप होने के स्थान पर सफाई व खुदाई की गई तो श्वेत मरमरी शिवलिंग स्वरूप चट्टान प्रकट हुई। तभी से यह पवित्र स्थान बूढ़ा अमरनाथ बाबा चट्टानी के नाम से प्रसिद्ध है।राष्ट्र रक्षा संकल्पश्री अमरनाथ यात्रा की ही भांति बाबा बूढ़ा अमरनाथ की यात्रा भी परम्परागत रूप से सावन मास में होती थी, क्योंकि मान्यता है कि बूढ़ा अमरनाथ की यात्रा किए बिना बाबा अमरनाथ भी कृपा नहीं करते। किन्तु आतंकवादियों के कहर ने इस राष्ट्रीय यात्रा को तहसील और जिले तक ही सीमित कर दिया और समय सीमा भी दो तीन दिन तक ही सिमट गई। यात्रा का उद्देश्य नौशहरा, राजौरी, पुंछ के हिन्दुओं की सुध लेने और मनोबल बढ़ाने का है ताकि पलायन रुक सके।31

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