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नागपुर में रा.स्व.संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक में मोहनराव भागवत ने कहा-प्रतिनिधिविजया एकादशी के शुभ दिन श्री गुरुजी जन्म शताब्दी वर्ष का श्रीगणेश हुआ और इसी दिन रा.स्व. संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा भी प्रारंभ हुई। प्रतिनिधि सभा के पहले सत्र में परंपरागत रूप से पिछले वर्ष का प्रतिवेदन पढ़ा गया, जिसका उपस्थित प्रतिनिधियों ने ओम की ध्वनि से अनुमोदन किया। वर्ष 2005-2006 के प्रतिवेदन को प्रस्तुत करते हुए सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि देश में चारों ओर संकटों के बादल अधिक गहरा रहे हैं तथा आतंकवादी हिंसाचार की दु:साहसी घटनाएं आए दिन सुनने को मिल रही हैं, लेकिन सरकार न तो दृढ़ है और न ही उसके पास स्पष्ट नीति है। उसकी ढिलाई के कारण आतंकवाद ज्यादा ताकतवर हो रहा है तथा जनता का मनोबल गिर रहा है।श्री भागवत ने कहा कि कश्मीर के बारे में वहां के दोनों राजनीतिक दल- पी.डी.पी. तथा नेशनल कांफ्रेंस भारत के साथ अभिन्न एकात्मता निर्मित करने में बाधा बनने वाली नीतियां अपना रहे हैं। दूसरी ओर शांति वात्र्ता के नाम पर पाकिस्तानी दावे को अधिक वैधता प्रदान करने की सरकारी नीति पाकिस्तान के असली उद्देश्य और अपनी सीमा की सुरक्षा के प्रति सजगता का अभाव दर्शाती है।श्री भागवत ने नेपाल के बारे में कहा कि भारत सरकार को खोखली वैचारिकता की दृष्टि छोड़कर सीमा की सुरक्षा, सामरिक महत्व और अमिट सांस्कृतिक संबंधों का ध्यान रखते हुए ऐसी नीति अपनानी चाहिए जिससे नेपाल भारत का अधिक अच्छा और समर्थ मित्र बने।श्री मोहन राव भागवत ने भारत के पूर्वांचल एवं उत्तरी सीमावर्ती राज्यों में बंगलादेशी घुसपैठियों की अनदेखी एवं वोट बैंक की राजनीति के लिए उसे सहारा और बढ़ावा देने की राजनीतिक दलों की नीतियों की कड़ी आलोचना की और कहा कि जहां इन गंभीर परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय व सांझी नीति बनाने की आवश्यकता है वहीं दुर्भाग्य से राजनीतिक नेता अपने दलगत स्वार्थों में डूबे हुए हैं।श्री भागवत ने कहा कि देश की सर्वोच्च न्यायपीठ के संविधान-सम्मत निर्णयों का सम्मान करने की बजाय उन निर्णयों की उद्दंडता से शाब्दिक अवहेलना की जाती है। न्यायपालिका के प्रतिकूल निर्णय के बाद भी सांप्रदायिक आधार पर आरक्षण देने के लिए नए रास्ते खोजने वाली निर्लज्ज सोच व्यक्त होती है। देश की संवैधानिक परंपरा और निकषों के रक्षक ही उनको अपने स्वार्थ के लिए चाहे जैसा तोड़ते-मरोड़ते हैं। प्रजातंत्र, संविधान आदि को घोषित रूप से तत्वत: नकारने व व्यवहारत: ठुकराने वाले उसके रक्षक बनने का स्वांग रचकर अपनी सुविधा से उसको झुका रहे हैं। हिन्दुओं के श्रद्धास्थानों पर आघात करने के साधन के रुप में सत्ता का उपयोग किया जाता है। शिक्षा व प्रसार माध्यमों का दुरुपयोग राष्ट्रभक्तों व राष्ट्रीय विचारधारा की मनगढ़ंत बदनामी करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आर्थिक क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियों और विदेशी अर्थनीति का प्रभाव बढ़ाने वाली नीतियां देश के किसानों, मजदूरों आदि के हितों की निर्लज्ज अनदेखी करके लागू की जा रही हैं। उद्योग बंद होने से मजदूर बेरोजगार होते चले जा रहे हैं तथा कर्ज के बोझ तले दबकर किसान आत्महत्या कर रहे हैं। भ्रष्टाचार रूपी दीमक उच्च स्थानों पर पहुंच रहे हैं अथवा वहीं से उसका उद्गम है-यह एक विचारणीय प्रश्न बन गया है। भ्रष्टाचार का नियंत्रण करने वालों की भ्रष्टता का कोई निराकरण सामने नहीं आता।श्री भागवत ने प्रतिवेदन में कहा कि परंतु दूसरी ओर यह दिखता है कि देश में सामान्यजनों के मन में इन सारे प्रश्नों का विचार व उहापोह भी जन्म ले रहा है। सामान्य जनता परिस्थिति को केवल समझ ही नहीं रही है वरन् उसके प्रतिकार हेतु अग्रसर भी होना चाहती है।इस प्रकार का उद्यम व कर्तृत्व व्यापार से लेकर विज्ञान तक के क्षेत्रों में दिखाई देता है। सज्जन शक्ति के नेतृत्व की समाज को प्रतीक्षा है।प्रतिवेदन में सबसे पहले देश के लोकमान्य एवं श्रेष्ठ व्यक्तियों के निधन पर श्रद्धाञ्जलि अर्पित की गई। श्री भागवत ने भावुक स्वर में कहा कि प्रतिनिधि सभा की यह पहली बैठक है जिसमें मा. शेषाद्रि जी उपस्थित नहीं हैं। बैठक में जिन दिवंगत महानुभावों को श्रद्धाञ्जलि दी गई उनमें प्रमुख नाम हैं -इन्दौर, ग्वालियर के वरिष्ठ प्रचारक श्री लक्ष्मण राव तराणेकर, स्वस्तिका (बंगला साप्ताहिक) के श्री भवेन्दु भट्टाचार्य, असम के श्री सुधाकर राव वैद्य, श्री मनोहर राव डोंगरे, हिन्दू चेतना पत्रिका का वर्षों तक सम्पादन करने वाले श्री भैयाजी कस्तूरे, वरिष्ठ प्रचारक श्री माणिकचंद्र वाजपेयी, असम के पूर्व कार्यवाह एवं संघचालक श्री भूमिदेव गोस्वामी, आर्यमगढ़ विभाग संघचालक रहे श्री श्याम नारायण सिंह, सुन्दरगढ़ विभाग संघचालक डा. कान्हू नायक, रामचरित मानस के कन्नड अनुवादकर्ता एवं वैदिक विद्वान श्री भारती रमणाचार्य, विश्व हिन्दू परिषद् के प्रांत धर्माचार्य श्री नरसिंह मूर्ति, विश्व हिन्दू परिषद् के वरिष्ठ कार्यकर्ता श्री ख्याली लाल गोधा, संस्कार भारती के अध्यक्ष श्री शैलेन्द्र नाथ श्रीवास्तव, पूर्व राष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष श्री पी.एम. सईद, वरिष्ठ साहित्यकार श्री निर्मल वर्मा तथा वरिष्ठ लेखिका श्रीमती अमृता प्रीतम।यहां प्रस्तुत हैं श्री भागवत द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन के प्रमुख अंश-बीते सत्र के प्रारम्भ में सम्पन्न संघ शिक्षा वर्गों में प्रथम वर्ष के 12,017 शिक्षार्थी 7,794 स्थानों से आए। द्वितीय वर्ष में 2,548 स्थानों से 3,300 शिक्षार्थियों ने भाग लिया। तृतीय वर्ष में 851 स्थानों से 945 शिक्षार्थी प्रशिक्षित हुए। प्रौढ़ वर्गों में प्रथम वर्ष में 429, द्वितीय वर्ष में 220 तथा तृतीय वर्ष में 164 शिक्षार्थी रहे।पिछले तीन वर्षों से जारी कार्यवृद्धि के प्रयासों का फल अब धीरे-धीरे दिखाई देने लगा है। 2 फरवरी को प्राप्त वृत्त से ही पता चलता है कि देशभर में 35,790 स्थानों पर 51,201 शाखाएं चल रही हैं। 9,093 स्थानों पर साप्ताहिक मिलन तथा 2,018 स्थानों पर संघ मंडली के कार्यक्रम चल रहे हैं। लगभग 1500 स्थानों तथा 2500 शाखाओं की यह वृद्धि श्री गुरुजी जन्मशती के कार्यक्रमों के उत्साहपूर्ण वातावरण की पृष्ठभूमि की ओर इशारा करती है।राहत तथा अन्य सेवा कार्यसमाज पर आए आकस्मिक संकटों की चुनौती में स्वयंसेवकों ने हमेशा सबसे पहले पहुंचकर सहायता की है। इस वर्ष भी महाकौशल प्रांत के दमोह व बालाघाट जिलों, पन्ना जिले की अमानगंज तहसील तथा कटनी में बाढ़ से राहत पहुंचाने के लिए 357 स्वयंसेवकों ने 5 दिन से लेकर एक महीने तक कार्य किया। दमोह जिले में प्रथम 2 दिन 10 शिविरों में 10,000 व्यक्तियों के भोजन व आवास की व्यवस्था की गई। वस्त्र, भोजन सामग्री व बर्तनों की 5,000 संचिकाओं का वितरण किया गया। बालाघाट जिले की लाजी व किरनापुर तहसीलों के 16 ग्रामों में वस्त्र व भोजन सामग्री के वितरण के साथ-साथ 150 झोपड़ियों का निर्माण भी स्वयंसेवकों ने किया। पन्ना जिले की अमानगंज तहसील में 10 राहत शिविर चलाए गए। 75 ग्रामों में चले इस कार्य में 85 व्यक्तियों की प्राणरक्षा का कार्य भी हुआ। कटनी नगर में भी 500 व्यक्तियों की तात्कालिक व्यवस्था राहत शिविर के द्वारा की गई। तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले में तथा तिरुच्चि शहर में 5,250 स्वयंसेवकों ने राहत शिविरों में सेवा भारती के माध्यम से तथा अन्यत्र राहत सामग्री वितरण तथा भोजन व्यवस्था के कार्य के साथ ही 7 व्यक्तियों की प्राणरक्षा का भी कार्य किया। कडलोर जिले में 3 राहत केन्द्रों के माध्यम से राहत-कार्य संचालित हुआ। चेन्नै नगर के कोट्टुपुरम क्षेत्र में स्वयंसेवकों ने 1,500 व्यक्तियों को बाढ़ग्रस्त क्षेत्र से निकालकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। मुंबई सहित कोंकण प्रान्त में स्वयंसेवक भी बाढ़ राहत में अपेक्षाकृत कर्तव्यपूर्ति की कसौटी पर खरे उतरे। टिटवाला में अन्न की कालाबाजारी रोकने के लिए स्वयंसेवकों ने सस्ते दामों पर अनाज की दुकान चलाई। उल्लासनगर के तहसील कार्यवाह ने अपने प्राणों पर खेलकर एक मां व उसके दो छोटे बच्चों की जान बचाई।असम के कार्बी-आंग्लांग तथा कछार जिले में हिंसा की घटनाओं के बाद प्रारम्भ से ही स्वयंसेवक, सेवा भारती, आरोग्य भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, विद्याथी परिषद्, विश्व हिन्दू परिषद् आदि के कार्यकर्ता राहत कार्य तथा शांति व सद्भाव स्थापना के प्रयासों में लगे।सुनामी पीड़ितों के पुनर्वास कार्य की दृष्टि से केरल के अलप्पुझा जिले में 22 घरों का लोकार्पण पूज्य सरसंघचालक जी के द्वारा 1 नवम्बर, 2005 को किया गया। तमिलनाडु में भी 200 घरों के निर्माण का कार्य चल रहा है, अगले एक-दो महीनों में लोकार्पण होगा।बंग-भंग विरोधी आंदोलन की शताब्दीमंगलौर की प्रतिनिधि सभा में पारित प्रस्ताव के अनुसार देशभर में बंग-भंग विरोधी आंदोलन का शताब्दी वर्ष मनाया गया। सम्पूर्ण वन्देमातरम् के गायन से लेकर विशाल जनसभा, जुलूसों तक सभी प्रकार के कार्यक्रमों व उपक्रमों का आयोजन कार्यकर्ताओं ने अपनी कल्पकता और प्रतिभा के अनुसार किया। देश भर में कल्पनाशीलता 18,255 स्थानों पर सम्पन्न हुए 26,317 सार्वजनिक तथा 3,621 शाखाओं के कार्यक्रमों में 2,16,361 स्वयंसेवकों व 2,28,226 महिलाओं सहित एक करोड़ 64 लाख 5 हजार 226 नागरिकों ने भाग लिया।गोवा में हुतात्मा पूर्वजों का स्मारकमुंबई के सभी स्वयंसेवकों के लिए 11 दिसम्बर, 2005 को प्रसिद्ध शिवाजी पार्क में पू. सरसंघचालक जी के बौद्धिक का आयोजन था। 11 जनवरी, 2006 के दिन गोवा के पणजी में हुए इसी प्रकार के कार्यक्रम में गोमांतक विभाग के दोनों जिलों से 5,600 तरुण तथा 2,100 माता-बहनें उपस्थित रहीं।12 जनवरी, 2006 को गोवा में एक विशेष कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, जब पू. सरसंघचालक ने कुंकलली जाकर हुतात्मा स्मृति स्तंभ पर पुष्पमाला अर्पण कर हुतात्माओं का अभिवादन किया। मडगांव के पास बसे कुंकलली ग्राम के इस स्तंभ का विशेष इतिहास है। वहां वर्तमान ईसाई मतावलम्बी ग्रामीणों ने 475 वर्ष पूर्व मिशनरियों के क्रूर अत्याचार व मतान्तरण के विरुद्ध स्वधर्म व स्वराज्य की रक्षा के लिए कड़ा संघर्ष किया था। उसमें पांच मिशनरी मारे गए थे। अंत में संघर्ष का नेतृत्व करने वाले 16 नायकों को छल-कपट से मार दिया गया था। गांव का श्री शांता दुर्गा मंदिर ध्वस्त करके उसके सामने पांच मिशनरियों का तथाकथित “हुतात्मा मंदिर” खड़ा किया गया और उन जुझारू ग्रामीणों को हत्यारा कहा गया।यद्यपि वहां का हिन्दू मतान्तरित हुआ, तो भी समाज उपर्युक्त अपमान की टीस पीढ़ी-दर-पीढ़ी मन में संजोकर रखता गया और अंत में 26 नवम्बर, 1999 को 16 नायक हुतात्माओं के नामों से अंकित “हुतात्मा स्मृति स्तंभ” ठीक उस तथाकथित “हुतात्मा मंदिर” के सामने खड़ा कर दिया। गांव के आबालवृद्ध ग्रामीणों सहित संघ के स्वयंसेवक बड़ी संख्या में उस स्तंभ के लोकार्पण कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे। 12 जनवरी, 2006 को कुंकलली नगर परिषद के अध्यक्ष श्री वाझ तथा स्थानीयजनों ने पू. सरसंघचालक जी का स्वागत किया। गांव के वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी डा. यूक्लिड डिसूजा के घर पर पू. सरसंघचालक जी के साथ ग्रामीणजनों की बातचीत हुई। डा. डिसूजा की प्रसन्नता साफ झलक रही थी। घर के प्रवेश द्वार पर नाम पट्टिका के नीचे बड़े देवनागरी अक्षरों में उनकी पूर्व परम्परा का गौरवमयी उल्लेख है- “शेषगिरि सूर्यवंशी”। हुतात्मा स्तंभ निर्माण के अग्रणी डा. वेरिसिमो कुतिन्हो ने विदेश में होने के कारण दूरभाष पर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं- “हम स्वधर्म और स्वराज्य के पक्ष में हैं। हमारे पूर्वज समान हैं। हम अपने इतिहास को सही रूप में रखने का प्रयास करें।”आन्ध्र में नवीन जागरण25 दिसम्बर, 2005 को पू. सरसंघचालक जी के प. आन्ध्र प्रवास के दौरान भाग्यनगर में विभाग में हुए कार्यक्रम 29,580 स्वयंसेवकों ने भाग लिया। विभाग में शाखाओं का विस्तार हुआ और शाखा संख्या 310 से 357 पहुंची। कार्यक्रम में निर्धारित वेश में तथा पूर्ण गणवेश में 850 स्वयंसेवक थे। प्रमुख अतिथि के नाते पिछड़ा वर्ग कल्याण संस्थान (बैकवर्ड कास्ट्स वेलफेयर एसोसिएशन) के श्री आर. कृष्णय्या पधारे। कई वामपंथी संगठनों ने प्रचार माध्यमों द्वारा संघ के कार्यक्रम में उनके आने पर विरोध का दबाव बनाया था। श्री कृष्णय्या ने अपने भाषण में वामपंथियों के इन कुप्रयासों की कड़ी भत्र्सना की तथा हिन्दू समाज के सभी वर्गों के एकत्रित होकर प्रयास करने की आवश्यकता पर बल दिया।केरल में राष्ट्रविरोधी हतबल हुएकेरल प्रान्त में अल्पसंख्यक वोटों की राजनीति, पुलिस बल के राजनीतिकरण व अधूरी सुरक्षा व्यवस्था के कारण उग्रवादी व राष्ट्रविरोधी गतिविधियां बढ़ रही हैं। राष्ट्ररक्षा संचलन के कार्यक्रम ने जनता की दबी हुई भावना को वाणी दी। 5 जनवरी, 2006 से कासरगोड जिले के प्रसिद्ध “बेकल” किले से यह संचलन प्रारम्भ हुआ। तिरुअनन्तपुरम के प्रसिद्ध पद्मनाभ स्वामी मंदिर प्राचीर तक का 696 कि.मी. का यह प्रवास 24 जनवरी, 2006 को प्रात: 6 बजे पूर्ण हुआ। 36 घोष दलों के 3,957 वादकों ने इसमें भाग लिया। एक लाख 35 हजार आमजन सहभागी बने।गोरक्षा का अनूठा प्रयोगस्वयंसेवकों के द्वारा सम्पन्न उपक्रम मात्र संघ का कार्यक्रम बनकर नहीं रहता, सारे समाज का प्रवाह बन जाता है। विदर्भ के अकोला जिला स्थित म्हैसपुर में स्वयंसेवकों द्वारा चलाई गई गोशाला की कथा ऐसी ही है। म्हैसपुर की गोशाला सफलतापूर्वक चलने लगी व लगभग स्वावलम्बी बन गई। उसके पश्चात अकोला जिले की प्रत्येक तहसील के परिचित दस गांवों में से कुल 100 युवक तहसीलश: एक-एक दिन गोशाला पर निवास हेतु लाए गए। हरिभक्त परायण श्री संजय महाराज एवं श्री हुकुमचन्द जी सांवला के मार्गदर्शन से 7-8 माह में यह कार्यक्रम पूरा किया गया। उसके पश्चात इन 100 कार्यकर्ताओं के माध्यम से तहसील स्थानों पर कुल एक हजार कार्यकर्ताओं के दिनभर के वर्ग लिये गए। श्री दायमा महाराज, महात्मा गांधी इंस्टीटूट आफ रूरल इंडस्ट्रियलाइजेशन, वर्धा की डा. (कुमारी) प्रीति जोशी, किसान संघ के श्री कुंवर जी भाई जाधव, अखिल भारतीय गोसेवा संघ के श्री केसरी चन्द जी मेहता व श्री गोधा इन वर्गों में यथासंभव उपस्थित रहे।7
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