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फिर पड़ी संप्रग सरकार को न्यायालय की फटकार

by
May 2, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 May 2006 00:00:00

बेशर्म बूटाविपक्ष ने मांगा प्रधानमंत्री का भी इस्तीफा- दिल्ली ब्यूरो के साथ पटना से संजीव कुमारबूटा सिंहभारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल को इन दिनों चारों ओर से फटकार झेलनी पड़ रही है। कांग्रेस ने जिन नेताओं को राज्यपाल बनाया था वही इसकी फजीहत के कारण बन गए हैं। कांग्रेस ने इस मंशा से इन्हें राज्यपाल बनाया था कि इन्हें मुख्यधारा की राजनीति से अलग कर दिया जाए तथा इनके माध्यम से गैरकांग्रेस शासित राज्यों में अपनी हुकूमत कायम की जा सके। लेकिन यह दांव अब उल्टा पड़ गया। झारखण्ड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी हों या गोवा के एस.सी. जमीर अथवा बिहार के बूटा सिंह, सबकी कहानी एक जैसी ही है। बिहार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने जिस प्रकार से कड़ी टिप्पणी की है, वह कांग्रेस की नीति और नीयत पर सीधा प्रहार है।पिछले वर्ष 23 मई को जिस प्रकार आनन-फानन में बिहार विधानसभा भंग की गयी थी उसे सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया। न्यायालय ने इस कार्रवाई के लिए राज्यपाल और केन्द्र सरकार दोनों को फटकार लगायी है। न्यायालय के अनुसार बूटा सिंह ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश करके केन्द्र को गुमराह किया था और कहा कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल को भी राज्यपाल की रपट को शब्दश: सही मानने के पूर्व तथ्यों की पुष्टि कर लेनी चाहिए थी। उल्लेखनीय है कि 22 मई को बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह ने एक रपट केन्द्र सरकार को भेजी थी, जिसमें इस बात का जिक्र था कि बिहार में विधायकों के खरीद-फरोख्त की प्रबल आशंका है। रपट के आधार पर दिल्ली में 22 मई की देर शाम राजनैतिक गतिविधियां तेज हुर्इं और 23 मई को रातों-रात कैबिनेट की बैठक में बिहार विधानसभा को भंग करने का निर्णय लिया गया। राष्ट्रपति उस समय रूस के दौरे पर थे, रात 2 बजे उनको फैक्स भेजकर सहमति प्राप्त की गयी थी।उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने 3:2 के बहुमत से इस बात को कहा है कि राज्यपाल का निर्णय पूर्वाग्रह से प्रेरित था तथा इसका उद्देश्य एक विशेष राजनैतिक गठजोड़, जद(यू) एवं भाजपा, को सत्ता हासिल करने से रोकना था। राज्यपाल के पास ऐसा कोई सबूत नहीं था जिसके आधार पर कहा जा सके कि विधायकों को प्रलोभन और आकर्षण के माध्यम से पथभ्रष्ट कर उन्हें एक खास राजनैतिक गठजोड़ में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। इस प्रकार के षडंत्रों के प्रति, जिससे लोकतंत्र को खतरा हो, न्यायालय मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकता। न्यायालय ने केन्द्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए लगता है कि राज्यपाल ने इस पूरे प्रकरण में अहम भूमिका निभायी परन्तु केन्द्र सरकार को भी आनन-फानन में निर्णय लेने से पूर्व तथ्यों को बारीकी से जांच लेना चाहिए था। धारा 356 जैसे प्रबल और अन्तिम उपाय का प्रयोग केवल राज्यपाल की सुनी-सुनायी बातों पर नहीं करना चाहिए। अपने निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दल-बदल कानून में सम्बंधित संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कार्रवाई का अधिकार सिर्फ विधानसभा अध्यक्ष को प्राप्त है, राज्यपाल की इसमें कोई भूमिका नहीं होती है।उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद जिस प्रकार की प्रतिक्रिया राज्यपाल बूटा सिंह ने व्यक्त की, वह भी कम शर्मनाक नहीं है। पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या वे इस्तीफा दे रहे हैं तब उनका टका-सा जवाब था कि वे 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर सलामी लेंगे। बूटा सिंह के पद पर बने रहने की जिद्द पर कांग्रेस-राजद को छोड़ सभी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। राजग के एक प्रतिनिधिमण्डल ने तो राष्ट्रपति से मिलकर राज्यपाल को वापस बुलाने तक की गुहार लगायी। बाद में पत्रकारों से बात करते हुए विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि न केवल राज्यपाल बल्कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को भी त्यागपत्र देना चाहिए क्योंकि उनके मंत्रिमण्डल ने ही रातों-रात विधानसभा भंग करने का निर्णय लिया था। इस पूरे प्रकरण में केन्द्र सरकार की भूमिका को कम करके नहीं देखा जा सकता। जद(यू) के प्रदेश अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यदि बूटा सिंह में थोड़ी भी नैतिकता बची होती तो उन्हें तुरन्त अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था। पर बूटा सिंह का बर्ताव एक राजनैतिक दल के एजेंट से अधिक नहीं था, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। इनके चलते राज्यपाल पद की गरिमा गिरी है। केन्द्र सरकार में कांग्रेस के सहयोगी वामदलों ने भी निर्णय आने के बाद भी बूटा सिंह के पद पर बने रहने की घटना को शर्मनाक बताया। 25 जनवरी को राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से मिलने गए राजग के प्रतिनिधिमंडल ने साफ कहा था कि बूटा सिंह को पटना में होने वाली गणतंत्र दिवस परेड की सलामी लेने से रोका जाए। या तो वे तुरंत त्यागपत्र दे दें अन्यथा राष्ट्रपति को राज्यपाल पद से बूटा सिंह को बर्खास्त कर देना चाहिए। राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद श्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद भी यदि बूटा सिंह बतौर राज्यपाल परेड की सलामी लेते हैं तो यह एक मजाक बन जाएगा। उन्होंने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से भी इस्तीफा देने की मांग करते हुए कहा कि उन्होंने ही राष्ट्रपति को गुमराह किया था। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से स्पष्ट है कि बिहार विधानसभा भंग करने के फैसले की पूरी जिम्मेदारी केन्द्रीय मंत्रिमंडल की है, और उसके नेता प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने ही राष्ट्रपति को गुमराह करके विधानसभा भंग करने के निर्णय पर मुहर लगवाई।समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह ने भी साफ कहा कि बिहार विधानसभा को भंग करने के अपराध से प्रधानमंत्री को मुक्त नहीं किया जा सकता। प्रधानमंत्री यह नहीं कह सकते कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। अगर प्रधानमंत्री यह कहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय शिरोधार्य है तो उन्हें भी नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए।पर इसके बावजूद दिल्ली में राजनीतिक सरगर्मी चलती रही। सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने राज्यपाल बूटा सिंह को त्यागपत्र देने के लिए भी कहा, पर बूटा सिंह नहीं माने। साफ कह दिया कि परेड की सलामी लेकर ही पद छोड़ूंगा। कहा जाता है कि उन्होंने तुरंत त्यागपत्र देने के लिए ज्यादा दबाव देने पर “सारी पोल” खोल देने की बात भी कह दी। उन्होंने तो यहां तक भी कह दिया कि उनसे जो कहा गया वही उन्होंने अपनी रपट में लिखकर भेज दिया, निर्णय तो आप लोगों ने ही किया। फिर मुझे ही बलि का बकरा क्यों बनाया जा रहा है। बूटा सिंह के इस अड़ियल रुख के बाद दिल्ली में गृहमंत्री शिवराज पाटिल दिनभर इधर-उधर भागने-दौड़ने की कवायद करते दिखे। और अन्तत: देर शाम यह कहते हुए बूटा सिंह को सलामी लेने की मोहलत दे दी कि, “सभी मंत्रिमंडलीय सहयोगियों से बात करके एक-दो दिन में निर्णय लेंगे क्योंकि अभी कई मंत्रिमंडलीय सहयोगी 26 जनवरी के कारण दिल्ली से बाहर हैं।”बूटा को राहत मिली तो वे नैतिकता को ताक पर रखकर झण्डा फहराने और परेड की सलामी लेने की तैयारी में जुट गए। 26 जनवरी को विरोध और प्रदर्शन के बावजूद उन्होंने झण्डा फहराया, सलामी ली। और उसके बाद ही पत्रकार वार्ता में अपने इस्तीफे की घोषणा की। पर राजग अभी भी प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग पर अड़ा है। वह पूछ रहा है कि “संत”, “सीधे”, “सादे” प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह में क्या नैतिकता बची है? अगर हां तो वे अपने पद पर कैसे बने हुए हैं?9

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