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चन्दावत और शक्तावत समूहों नेमुगलों से जीता अंतला दुर्गवचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”जहांगीर के शासनकाल में महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने देवीर और रणपुर के युद्ध जीत लिए तो जहांगीर ने कुपित होकर संवत् 1665 की वसंत ऋतु में तीसरी बार युद्ध करने की योजना बनाई। चित्तौड़ को मुगलों से स्वतंत्र कराने के बाद राणा अमर सिंह ने मुगलों के अधीन राजस्थान के 80 दुर्ग स्वतंत्र कराकर अपना भगवा ध्वज फहराया था। इनमें एक अन्तला नामक दुर्ग भी था जिसे मुगलों से स्वतंत्र कराने के लिए राणा अमर सिंह ने सैनिक अधिकारियों के समक्ष शर्त रखी थी कि हमारी सेना का जो सरदार इस दुर्ग पर अधिकार कर लेगा वही सेना की अग्रिम पंक्ति का अधिकारी माना जाएगा। इस सेना में चन्दावत और शक्तावत नामक दो राजपूत सैनिक समूह थे। दोनों सरदारों की सेनाएं दुर्ग पर विजय प्राप्त करने चल पड़ीं। चन्दावत समूह के सैनिक अपने साथ लम्बी सीढ़ी भी ले गए थे। जब सैनिक उस सीढ़ी की सहायता से दुर्ग पर चढ़ने लगे तो वहां घात लगाकर बैठे एक मुगल सरदार ने तोप से एक गोला चन्दावत सरदार पर छोड़ दिया जिससे वह वहीं गिर पड़ा। फिर भी चन्दावत और शक्तावत दुर्ग पर चढ़ने में लगे रहे और शक्तावत सरदार ने एक हाथी को दुर्ग के फाटक को तोड़ने के लिए हूल दिया। हाथी ने अपना सर फाटक पर मटका मगर वह टूटा नहीं क्योंकि फाटक में लोहे की मोटी-मोटी कीलें लगी थीं।चन्दावतों ने हाथी को पुन: ललकारा। इसी बीच एक शक्तावत कीलों की सहायता से फाटक पर भी चढ़ने लगा और दूसरे प्रयास में हाथी के शक्तिशाली आघात से फाटक तो चरमराकर टूट गया लेकिन फाटक पर चढ़ा हुआ शक्तावत महावत नीचे गिर कर वहीं शहीद हो गया। फाटक खुलते ही सैनिक मृत शक्तावत सैनिक के शरीर पर पैर रखते हुए किले पर चढ़ गए। लेकिन वहां चन्दावत सरदार का मृत शरीर पहले से ही देखकर वे चकित हो गए। बाद में शक्तावतों की समझ में आया कि चन्दावत सरदार के गिरने पर जो जयनाद चन्दावत सैनिकों के गुंजाने पर सुनाई दिया वह वास्तव में उनके द्वारा दुर्ग पर विजय का ही प्रमाण था। परन्तु यह रहस्य शक्तावतों की समझ में न आया कि चन्दावत सरदार की नीचे आ गिरी लाश दुर्ग पर कैसे पहुंच गई। वस्तुत: चन्दावत सरदार के शहीद होने पर उसका सहायक, जिसका नाम चन्दा ठाकुर था, जल्दी से अपने सरदार की मृत देह उठाकर अपने उत्तरीय से कमर में बांध कर मुगलों से मारकाट करता हुआ आगे बढ़ता गया और उसने अपने सरदार का मृत शरीर दुर्ग पर रख दिया।इस विजय के कारण राणा अमर सिंह ने सेना में प्रथम पंक्ति में रहने का अधिकार चन्दावतों को ही दे दिया क्योंकि उन्होंने ही युद्ध करके दुर्ग को मुगलों से मुक्त कराकर भगवा ध्वज फहरा दिया था। इस विजय में शहीद हुआ योद्धा महाराणा प्रताप के भाई शक्ति सिंह का पुत्र बल्ल था। शक्ति सिंह के पुत्रों ने ही अपने गोत्र का नाम शक्तावत रखा। शहीद बल्ल के 16 भाई और भी थे जिन्होंने शक्तावत नाम चलाया।19
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