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वर्ष 10, अंक 36, सं. 2013 वि., 25 मार्च, 1957 , मूल्य 3आने
सम्पादक : तिलक सिंह परमार
प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म प्रकाशन लि.,
गौतमबुद्ध मार्ग, लखनऊ (उ.प्र.)
1957-58 का अंतरिम बजट
“आज” की दृष्टि में साधन और संधान
(निज प्रतिनिधि द्वारा)
“बजट संबंधी श्वेत पत्रक विकास पर गौर करने से पता चला है कि एक तरफ जहां उपलब्ध साधनों के समुचित उपयोग के फलस्वरूप देश की आर्थिक स्थिति में अपेक्षित दृढ़ता आ रही है वहीं दूसरी ओर विकास कार्यों के लिए आवश्यक विशाल धन राशि के, विशेष रूप से विदेशी मुद्रा के, जुटाने में कठिनाई पैदा हो रही है। इससे विकास कार्यों की गति उतनी तीव्र नहीं हो रही जितनी होनी चाहिए और देश के आर्थिक ढांचे पर भी दबाव बढ़ रहा है।
पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष व्यय के मद में वृद्धि का अनुमान किया गया है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना के द्वितीय वर्ष के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए व्यय में वृद्धि होनी स्वाभाविक है। इस्पात के तीन बड़े कारखानों और रेलवे विस्तार के लिए अधिक रकम निर्धारण करने के कारण व्यय के मद में विशेष वृद्धि हुई है। सुरक्षा सेवा के लिए भी गत वर्ष की तुलना में लगभग 50 करोड़ रुपए की वृद्धि की गई है। नागरिक कल्याण और सामाजिक सुविधाओं की व्यवस्था में वृद्धि के लिए भी गत वर्ष की तुलना में अधिक रकम निश्चित की गई है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना के द्वितीय वर्ष के महत्वपूर्ण लक्ष्यों की पूर्ति और साधारण नागरिक सेवा की व्यवस्था के लिए अनुमानित व्यय के कारण वित्तमंत्री ने 1957-58 के वित्तीय वर्ष में 365 करोड़ रुपए की कमी होने की आशंका प्रकट की है। यह राशि गत वर्ष की अपेक्षा तो कम है लेकिन चालू वित्तीय वर्ष के लिए विदेशी मुद्रा की अधिक आवश्यकता के कारण चिन्ता का विषय है।
कश्मीर में जनमत-संग्रह का कोई प्रश्न नहीं
ब्रिटिश पत्र “ट्रिब्यून” द्वारा
भारतीय पक्ष का समर्थन
श्री एन्यूरिन बेवन का ब्रिटेन के राजनीतिक क्षेत्र में ऊंचा स्थान है। समझा जाता है कि यदि मजदूर दलीय सरकार बनी तो वे विदेश मंत्री होंगे। उनके साप्ताहिक पत्र ट्रिब्यून ने कश्मीर के बारे में जो कुछ लिखा है उससे सुरक्षा परिषद की आंखें खुल जानी चाहिए। इस पत्र ने जनमत-संग्रह के विचार की निन्दा की है। पत्र ने लिखा है- “यदि पाकिस्तान जनमत संग्रह में विजयी हो गया और उसने कश्मीर राज्य का शासन भी उसी असहिष्णु तथा भ्रष्ट तरीके से किया, जिस प्रकार वह शेष “इस्लामी गणराज्य” का कर रहा है तो इस व्यवहार से कटुता उत्पन्न होगी और इस वर्ष पूर्व की सी स्थिति हो जाएगी।
“समाजवादियों को उन लोगों के बहकावे में नहीं आना चाहिए जो आवाज लगा रहे हैं कि जनता को फैसला करने दिए जाए। ये लोग जनता को कोई निर्णय नहीं करने देते। इनमें यह विचार करना चाहिए कि भारत तथा पाकिस्तान में लोकतंत्र की भाषा का प्रयोग करने का अधिकारी कौन है?
पत्र ने कश्मीर-प्रश्न पर अपनी सम्मति इस प्रकार व्यक्त की है:-
मजदूर दलों में भी कितने ही लोग भारत की निन्दा करने को तैयार हैं कि उसने कश्मीर के सम्बंध में ंसयुक्त राष्ट्र व सुरक्षा परिषद् के निर्णय के प्रति आपत्ति प्रकट की है। लेकिन पत्र का विश्वास है कि कश्मीर के बारे में भारतीय पक्ष को कभी ठीक तरह जनता के सामने नहीं रखा गया। भारत उन देशों में से नहीं है जो अपने प्रचार का भौंपू दिन-रात बजाता रहे बल्कि उसने बहुत-सी सामाजिक सफलताएं प्राप्त की हैं जो अधिकांशत: प्रकाश में नहीं आईं है।
अमरीकी हथियार-पाकिस्तान को आधुनिक अमरीकी अस्त्र उदारतापूर्वक दिए गए हैं जिस प्रकार अरब शासक कहते हैं कि साम्यवाद से रक्षा करने के लिए प्रेषित “हथियार” इस्रायल के विरुद्ध काम में लाए जाएंगे, उसी प्रकार पाकिस्तानी राजनीतिक पत्रकारों से स्पष्ट कहते हैं कि उनके साम्यवाद विरोधी शस्त्र उचित अवसर पर भारत के विरुद्ध प्रयुक्त होंगे।
पाकिस्तानी फौजें- नेहरू जी इस निर्णय पर बिल्कुल अड़े नहीं रहे हैं किन्तु वे इस बात के लिए सहमत हैं कि कुछ पाकिस्तानी सैनिक रहने दिए जा सकते हैं। लेकिन वे पाकिस्तान की इस मांग को स्वीकार नहीं कर सकते कि भारतीय सेना की संख्या के समान पाकिस्तानी सेना भी रहे।
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