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पहले देश तोड़ा अब समाज तोड़ेंगेआंदोलनकारी छात्रों ने कहा-आरक्षण से भेदभाव बढ़ेगा-आलोक गोस्वामीजधानी दिल्ली से मुम्बई तक, चेन्नै से बंगलौर तक, हैदराबाद से कोलकाता तक और रोहतक से मेरठ तक आरक्षण विरोधी गुस्से का प्रदर्शन हो रहा है। केन्द्र सरकार के उच्च शिक्षा क्षेत्र में अन्य पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले के विरोध में मेडिकल, आई.आई.टी. सूचना प्रौद्योगिकी व इंजीनियरिंग के छात्रों सहित देश के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से जुड़े लोग न केवल सड़कों पर उतरे हैं बल्कि अपने-अपने संस्थानों में धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन सरकार, जो कभी मुस्लिमों को नौकरियों में 5 प्रतिशत आरक्षण की बात करती है तो कभी जैन समाज को अल्पसंख्यक दर्जा देने की पेशकश करती है, शिक्षा के क्षेत्र में भी बंटवारा करने पर आमादा दिखती है। इतना ही नहीं छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ न होने देने का वायदा करने वाले प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह भी 22 मई को संप्रग सरकार के दो साल पूरे होने पर साफ घोषणा करते हैं कि 2007 से अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण दे दिया जाएगा। राष्ट्रपति भी छात्रों से आंदोलन समाप्त करने की अपील कर चुके हैं। पर धरातल पर कुछ ठोस न होता देखकर मेडिकल व आई.आई.टी. छात्रों ने अपना आंदोलन और तेज कर दिया है और सविनय अवज्ञा का आह्वान किया है।कुछ आंकड़ों पर गौर करें। इस समय दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कालेजों में अलग-अलग पाठ्यक्रमों की कुल 50,800 सीटें हैं जिसमें समान्य वर्ग के छात्रों के लिए कुल 35,306 सीटें हैं। जून, 2007 के बाद सामान्य वर्ग की सीटें घटकर 21,590 हो जाएंगी। इसी तरह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुल 5,000 सीटों में से सामान्य वर्ग के लिए 3,475 सीटें हैं जो जून, 2007 के बाद 2,125 रह जाएंगी। जामिया मिलिया विश्वविद्यालय की कुल 6,500 में सामान्य वर्ग की 4,518 तब 3,737 रह जाएंगी। “एम्स” में वर्तमान कुल 50 सीटों में से सामान्य वर्ग के लिए 34 सीटें हैं जो घटकर 19 रह जाएंगी और आई.आई.टी. (दिल्ली) में कुल 2,225 सीटों में से सामान्य वर्ग की 1,680 सीटें घटकर 1,071 रह जाएंगी। ये आंकड़े उन छात्रों को चौंकाने के लिए काफी हैं जो इन विशिष्ट संस्थानों में दाखिल होने का सपना पाले दिन-रात पढ़ाई कर रहे हैं। आरक्षण के नाम पर सरकार न केवल प्रतिभाशाली छात्रों का रास्ता रोक रही है, बल्कि किसी तरह पास होने भर लायक नम्बर लाने वाले छात्रों को जाति के आधार पर उन पाठ्यक्रमों में भर्ती होने की छूट दे रही है जो कड़ी मेहनत और मेधा की मांग करते हैं। हमने कई ऐसे छात्रों से बात की जो भले तथाकथित अन्य पिछड़े वर्गों से हैं पर अपनी मेहनत के बल पर इस समय एम्स, आई.आई.टी. अथवा मौलाना आजाद मेडिकल कालेज में पढ़ रहे हैं। इन छात्रों तक ने कहा कि आरक्षण के नाम पर सरकार ने जो चिंगारी सुलगाई है वह कितनी ही जिंदगियां तबाह कर सकती है।”एम्स” में भूख हड़ताल और धरने पर बैठे छात्रों को देखकर तो वास्तव में 1990-91 के वे दिन याद आ गए जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह ने अपनी सरकार बचाए रखने की खातिर मंडल कमीशन का शिगूफा छोड़ा था। दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों में छात्रों ने जबरदस्त प्रदर्शन किए थे और सरकार की चूलें चरमरा गई थीं। ठीक वैसा ही नजारा “एम्स” के उस मैदान में दिखा जहां बड़ी संख्या में मेडिकल कालेजों के छात्र-छात्राएं भूख हड़ताल पर बैठे थे। वहां हमारी मुलाकात मौलाना आजाद मेडिकल कालेज के अंतिम वर्ष के छात्र आजाद से हुई, जो 14 मई से यानी भूख हड़ताल के पहले दिन से लेकर लगातार 6 दिन तक उपवास पर रहा था। उसकी आंखों में सरकार के खिलाफ रोष स्पष्ट दिखता था। उसने कहा, “सीटें बढ़ाना समस्या का हल नहीं है। सरकार छात्रों के बीच जो अगड़े-पिछड़े का भाव पैदा कर देगी, उससे बहुत नुकसान होगा।” आजाद ने बताया कि एक मेडिकल छात्र साल में 1310 रुपए शिक्षण शुल्क और 2700 रु. छात्रावास शुल्क देता है। अगर कोई प्रतिभाशाली छात्र गरीब है, भले वह किसी वर्ग से हो, उसे सरकार सीट दे तो कोई बुराई नहीं है लेकिन सरकार पिछड़े वर्ग का ठप्पा लगाकर किसी छात्र को सीट देकर दूसरे छात्रों के मन में उसके प्रति गलत भावना पैदा क्यों करना चाहती है? मौलाना आजाद मेडिकल कालेज के ही अंतिम वर्ष का छात्र विकास ठाकरा पिछड़े वर्ग से है, लेकिन अपनी मेहनत के बल पर डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा है। वह भी आरक्षण के विरुद्ध भूख हड़ताल पर बैठा। उसने कहा, “पिछड़े वर्ग के छात्र भी समर्थ हैं। उनमें गरीब छात्र भी हैं परन्तु वे मेरी तरह संघर्ष करके अन्य छात्रों से बराबरी कर रहे हैं। उन्हें आरक्षण की बैसाखी की जरूरत नहीं है। आरक्षण दे दिया तो पैसे वाला ओ.बी.सी. छात्र बिना पढ़े-लिखे मेडिकल कालेज में भर्ती होगा और एक गरीब प्रतिभाशाली छात्र जगह न पाएगा।””यूथ फार इक्वालिटी” (बराबरी के समर्थक युवा) के बैनर तले धरना देने वाले इन छात्रोंं के चेहरों पर लंबी लड़ाई लड़ने का जोश दिखा। पंडाल में यहां-वहां छितरे छात्रों की कमीजों, टी.शर्ट पर सरकार विरोधी नारे लिखे हुए थे। पंडाल के चारों और विभिन्न व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के समर्थन के पोस्टर-बैनर लगे थे। हड़ताली छात्र-छात्राओं में कुछ सरकार विरोधी पोस्टर बना रहे थे तो कुछ प्रधानमंत्री के नाम अपनी मांगों का पत्र लिख रहे थे। एक कोने में एक बड़े पोस्टर पर “आरक्षण का राक्षस” बनाती मूलत: त्रिपुरा की निवासी नंदिता आचार्य से बात हुई। वह भी पिछड़े वर्ग से थी। नंदिता लेडी हार्डिंग मेडिकल कालेज में तृतीय वर्ष की छात्रा है। वह कहती है, “मैं दूसरे छात्रों की तरह ही कड़ी मेहनत करती हूं लेकिन अगर मेरे ऊपर ओ.बी.सी. का बिल्ला लगा दिया तो मुझे जो इज्जत और प्यार मिलता है, वह नहीं मिलेगा। यह आरक्षण (पोस्टर पर बने राक्षस की ओर इशारा करती है) छात्रों को बांट देगा। जैसे अंग्रेजों ने “बांटो और राज करो” की चाल चली, मनमोहन सरकार “बांटो और वोट लो” की चाल चल रही है।” मौलाना आजाद मेडिकल कालेज में अंतिम वर्ष की छात्रा शैली हालांकि भूख हड़ताल पर नहीं बैठी (माता-पिता ने आज्ञा नहीं दी) पर वह सुबह से शाम तक अपने साथियों का मनोबल बढ़ाने के लिए पंडाल में ही रहती है। कई छात्र तो अपनी किताबें लाकर वहां पढ़ाई कर रहे हैं।”एम्स” की रेजीडेंट डाक्टर्स एसोसिएशन भी हड़ताली छात्रों का समर्थन कर रही है और आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर अन्य सेवाओं से दूर है। इतने में एक छात्र नेता माइक से भूख हड़ताल के 200 घंटे पूरे होने की घोषणा करता है, पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठता है। छात्रों के चेहरों पर एक नया जोश उभरता है। आजाद घूमता हुआ फिर दिखाई दिया तो हमने पूछा, “200 घंटे हो गए, कब हड़ताल खत्म होने की उम्मीद है?” वह बोला, “हड़ताल तो अब तभी खत्म होगी जब सरकार यह हिटलरी आदेश वापस लेगी।” पर दूर तक इस बात का कोई आभास नहीं है कि वोट बैंक की लालची सरकार और इसके सेकुलर मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह इस मुद्दे पर पीछे हटेंगे।11
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