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जो जैसा व्यवहार करता है, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करने वाला पुरुष न तो अधर्म को प्राप्त होता है और न अमंगल का ही भागी होता है।
-वेदव्यास (महाभारत, उद्योगपर्व, 178/53)
काठमाण्डू में माओवादी शक्ति प्रदर्शन
काठमाण्डू में आगामी 2 जून को माओवादियों द्वारा हर साधन और तरीके इस्तेमाल करते हुए विशाल शक्ति प्रदर्शन का आयोजन किया जा रहा है। इसके लिए विभिन्न उद्योगों और कर्मचारियों से जबरन धन वसूली तो की ही जा रही है, साथ ही नेपाल के सभी वाहन व्यापारियों से उनके वाहन लेकर कोने-कोने से लोगों को काठमाण्डू लाने में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। इस रैली में आने से मना करने का साहस कौन करे, क्योंकि माओवादियों का बंदूक की नोक पर दिया जाने वाला आदेश मानना उनकी मजबूरी है।
माओवादियों द्वारा तानाशाही के बल पर किए जा रहे इस शक्ति प्रदर्शन का उद्देश्य है कि इससे दुनिया को यह दिखाया जा सकेगा कि वे नेपाली जनता का “समर्थन” प्राप्त कर चुके हैं और वे ही नेपाल के राजकर्ता होने के अधिकारी हैं। इस शक्ति प्रदर्शन के समय हिंसा और तोड़फोड़ की आशंका भी व्यक्त की जा रही है। काठमाण्डू में आशंकाएं हैं कि शक्ति प्रदर्शन के समय भारी भीड़ अचानक शाही महल में भी घुस सकती है और बाजार तथा आवासीय क्षेत्रों में उन लोगों पर हमला कर सकती है जिन्हें माओवादी अपना शत्रु मानते हैं। इन्ही आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए नेपाल के सेनाध्यक्ष जनरल पियार जंग थापा प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला से मिले और उनसे 2 जून को सेना की भूमिका के बारे में स्पष्ट निर्देश मांगे। आशा है कि श्री कोइराला की सरकार व्यवस्था बनाए रखने में कारगर सिद्ध होगी।
प्रचार की भूख ने “कोका कोला आमिर” को
नर्मदा में गोता लगवाया
आमिर खान खुद को सेकुलर बताते हैं और हमेशा चर्चा में बने रहने की भूख उनसे तरह-तरह के करतब करवाती रहती है। नर्मदा बांध का मामला समझे बिना फोटो खिंचवाने और सुर्खियों में आने की गरज से मेधा पाटकर के साथ धरने पर बैठने वाले आमिर को भले ही यह पता तक न हो कि नर्मदा बहती कहां है और उस पर बांध बनाने का अर्थ क्या है, पर वे बांध के विरोध में बोल गए और उसकी प्रतिक्रिया झेलने को तैयार नहीं हुए। उन्हें मालूम होना चाहिए कि राजनीतिक बयानबाजी की राजनीतिक प्रतिक्रिया होगी ही। गुजरात के मानस को छेड़ने का नतीजा यह निकला कि वहां न केवल फिल्म वितरक बल्कि कांग्रेस और भाजपा भी आमिर की नई फिल्म “फना” से मुंह मोड़ बैठे। पर आमिर को इसमें भी प्रचार का लाभ दिख रहा होगा। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व गुजरात कांग्रेस से सकपका गया है, लेकिन उसके विरोध में कुछ कह नहीं पा रहा है। “द विंची कोड” फिल्म पर पाबंदी जायज मानने वाले “फना” के प्रदर्शन का झंडा उठाएं तो यह एक चुटकुला ही है। आमिर के पाखंड के विरोध में पर्यावरणविद् भी बोले हैं, जिनका कहना है कि अगर आमिर को पर्यावरण और पुनर्वास जैसे मुद्दों की चिंता है तो वह कीटनाशक मिश्रित कोका कोला का प्रचार क्यों करते हैं? अगर वे विस्थापितों के बारे में चिन्तित हैं तो बांध के विस्थापितों के साथ कश्मीरी हिन्दुओं के विस्थापन का दर्द उन्हें क्यों महसूस नहीं हुआ? अगर वे दलीय राजनीति से परे हैं तो विस्थापन और पर्यावरण के विषयों पर दलीय नफरतवादियों के झोले में क्यों गिरे? असलियत शायद यह है कि आमिर खुद नहीं जानते कि उनका असली चेहरा कौन सा है।
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