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पाठकीय

by
Mar 12, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Mar 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 5 नवम्बर, 2006

पञ्चांग

संवत् 2063 वि. –

वार

ई. सन् 2006

मार्गशीर्ष शुक्ल 13

रवि

3 दिसम्बर

“” 14

सोम

4 “”

(व्रत पूर्णिमा)

पौष कृष्ण 1

मंगल

5 “”

“” 2

बुध

6 “”

“” 3

गुरु

7 “”

“” 4

शुक्र

8 “”

(श्री गणेश चतुर्थी व्रत)

“” 5

शनि

9 “”

शीतल जल को खींच

धरती मां के पेट से, शीतल जल को खींच

व्यर्थ बहाते हम उसे, दोनों आंखें मींच।

दोनों आंखें मींच, किस तरह काम चलेगा

चर्चा है, अब उस पर कुछ प्रतिबन्ध लगेगा।

कह “प्रशांत” प्रकृति से लें हम केवल उतना

धन्यवाद के साथ कर सकें वापस जितना।।

-प्रशांत

वोट की सियासत सब

विशेष सम्पादकीय “हरिद्वार में यह क्या हुआ!!” उद्वेलित करने वाला था। जो कुछ मुलायम सिंह यादव के कथित निर्देशन में हरिद्वार की पवित्र भूमि पर किया गया उसका दण्ड दोषियों को मिलेगा या नहीं, इसमें संशय है। मुलायम सिंह यादव जैसे सेकुलरों को कब समझ आएगी। सेकुलर नेता कहते हैं कि “हर की पैड़ी पर रोजा, इफ्तार इसलिए गलत नहीं है क्योंकि गंगा तो हर किसी की है।” मैं इन नेताओं से पूछना चाहता हूं कि क्या ये लोग हजरत बल या मक्का में यज्ञ-हवन करवा सकते हैं?

-नितिन पुण्डीर

एस-139, पल्लवपुरम फेस-2, मोदीपुरम,

मेरठ (उ.प्र.)

द्र मुलायम सिंह यादव सत्ता की खातिर हिन्दुओं पर गोली चलवा सकते हैं, तथ्यों के बावजूद “सिमी” को विभिन्न आरोपों से बरी कर सकते हैं। हरिद्वार में भी उन्होंने जो कुछ किया, जानबूझकर किया। फिर भी हिन्दू शान्त रहे। यह सहिष्णुता का प्रमाण है। इसलिए मुसलमानों को सोचना चाहिए कि उनका कोई कार्य हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए। यह देश सभी का है, सभी की मजहबी स्वतंत्रताएं हैं, परन्तु कुछ कायदे भी तय हैं।

-बी.एल, सचदेव

263, आई.एन.ए. मार्केट (नई दिल्ली)

हरिद्वार में जानबूझकर साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई। इस पर कोई प्रतिक्रिया होती तो निश्चित रूप से गाज हिन्दुओं पर ही गिरती। वास्तव में हिन्दू समाज ही बंटा हुआ है। हालांकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दुओं को संगठित करने के लिए प्रयासरत है, किन्तु सेकुलर हिन्दू ही हिन्दुओं को एक नहीं होने दे रहे हैं।

-वीरेन्द्र सिंह जरयाल

28ए, शिवपुरी विस्तार (दिल्ली)

प्रत्येक धार्मिक स्थल की अपनी मर्यादा होती है, उसका ध्यान रखा जाना चाहिए। दुर्भाग्य से हरिद्वार में ऐसा नहीं हुआ। मुलायम सिंह यादव इतने सत्तालोलुप हो गए हैं कि उन्हें सिर्फ अपना वोट बैंक नजर आता है। इसलिए वे उर्दू विश्वविद्यालय बनवाते हैं, हर की पैड़ी पर रोजा खुलवाते हैं और हिन्दुओं की भावनाओं को चोट पहुंचाते हैं।

-दिलीप शर्मा

114/2205, एम.एच.वी. कालोनी, समता नगर, कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)

हरिद्वार की पवित्र भूमि पर ऐसा सेकुलर आघात तो मुगलों एवं अंग्रेजों के शासन में भी नहीं हुआ था। ऐसा काम सत्ता मद में डूबे या बुद्धि-हीन लोग ही कर सकते हैं। जो कहते हैं कि गंगा सबकी है, तो क्या वे लोग किसी मस्जिद के पास कोई पूजानुष्ठान कार्यक्रम करवा सकते हैं?

-रामय कृष्णन

हरिनगर, कन्नौज (उ.प्र.)

हरिद्वार में गंगा घाट पूजन और स्नान-ध्यान के लिए बने हुए हैं। गंगा को कलुषित करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। मुलायम सरकार तुष्टीकरण की राजनीति से बाज आये और हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का ध्यान रखे, अन्यथा समाज में भाईचारे की जगह वैमनस्य ही बढ़ेगा।

-मीनाक्षी कौशल

मेरठ छावनी (उ.प्र.)

हर की पैड़ी पर रोजा खोलना क्या साम्प्रदायिक सद्भाव बढ़ाने वाला कृत्य था? आपके इस मत से मैं सहमत हूं कि दलितों को भी कर्मकाण्ड में प्रशिक्षित करके मन्दिरों का पुजारी बनाया जाए। इससे हिन्दू एकता बढ़ेगी।

-डा. दानवीर शर्मा

संस्कृत महाविद्यालय, कांठा, मुरादाबाद (उ.प्र.)

2000 मील लम्बी गंगा नदी समस्त भारतीयों की है। पर उसके किनारे स्थित कुछ विशेष स्थान सदियों से हिन्दू आस्था के केन्द्र रहे हैं। हर की पैड़ी भी एक ऐसी ही जगह है। इसलिए वहां रोजा खुलवाना और नमाज पढ़ना बिल्कुल गलत था।

-हरि सिंह ममतानी

89/7, पूर्वी पंजाबीबाग (नई दिल्ली)

हरिद्वार में हिन्दुओं की आस्था पर खुलेआम प्रहार किया गया। फिर भी हिन्दू समाज इन अमर्यादित कृत्यों पर विचलित नहीं हुआ। इग्नू की पुस्तकों में देवी-देवताओं के बारे में उल्टा-सीधा लिखा गया। ये बातें भी हिन्दुओं में आमतौर पर व्यथा पैदा नहीं कर पाईं, यह सोचने की बात है।

-क्षत्रिय देवलाल

उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला,

झुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)

प्रभावी विश्लेषण

श्री अरुण कुमार सिंह की खास रपट “सब जगह बढ़ रहा है गुस्सा” वर्तमान समाज के यथार्थ को प्रस्तुत करती है। रपट में समस्या को गहराई एवं गंभीरता से प्रस्तुत किया गया है। विश्लेषकों ने विषय को और भी प्रभावी बनाया है। इस तरह का बेबाक चिन्तन निश्चय ही पाठकों को आत्ममंथन का अवसर दे सकेगा।

-इन्दिरा मोहन

12, लखनऊ रोड (दिल्ली)

इस रपट में गुस्सा से जुड़े जैविक कारणों का उल्लेख नहीं है। उल्लेखनीय है कि भारत की उष्ण जलवायु प्रत्येक कोशिका में स्थित डी.एन.ए. के तापमान को कम नहीं होने देती है। इस कारण कोशिकाओं की वृत्ति अथवा चित्त वृत्ति भी तद्नुसार उष्ण हो जाती है। इसे प्राकृतिक ऊर्जा के सिद्धान्त के अनुसार कार्यान्वित करके ठीक किया जा सकता है।

-ब्राजमोहन शारदा

स्टेशन रोड, किशनगढ़-रेनवाल

जयपुर (राजस्थान)

सुखद बयार

श्री राकेश उपाध्याय की रपट “सेकुलरवाद का नृशंस चेहरा” से नई पीढ़ी को जानकारी मिली कि किस तरह 7 नवम्बर, 1966 को गोभक्तों को कुचला गया था। देश का यह दुर्भाग्य है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी गोहत्या पर रोक नहीं लग पाई है। न्यूयार्क में उद्योगपति गीता से प्रबंधन के सूत्र ले रहे हैं, यह समाचार सुखद बयार के समान है।

-रामचंद बाबानी

स्टेशन रोड, नसीराबाद

अजमेर (राजस्थान)

विशेष पत्र

यह विरोधाभास क्यों?

पाञ्चजन्य (5 नवम्बर, 2006) में “बढ़ता भारत” रपट पढ़ी। इसमें टाटा द्वारा विश्व की प्रमुख स्टील कम्पनी “कोरस” के अधिग्रहण एवं वीडियोकान द्वारा “देवू” की खरीद पर प्रसन्नता व्यक्त की गई है। अधिग्रहण एवं विलय, यह वैश्वीकरण की परिणति है। पहले के शासक सेना की सहायता से दूसरे देश पर आक्रमण करते थे और धन-सम्पदा लूटकर अपना कोष भरते थे। वर्तमान में तो ऐसा नहीं होता। हां, अमरीका कभी-कभी दूसरे देश पर आक्रमण करता रहता है। किन्तु बाकी देश अपने उत्पादों एवं मुद्रा के माध्यम से विश्व बाजार पर हावी होना चाहते हैं। यह साम्राज्यवाद का दूसरा रूप है। इसे आर्थिक उपनिवेशवाद भी कह सकते हैं। क्या भारत भी इन साम्राज्यवादी आर्थिक ताकतों का अनुसरण कर दूसरे देशों के बाजारों पर नियंत्रण प्राप्त करने की होड़ में शामिल होगा? जब हमारे यहां कोई विदेशी कम्पनी आती है तो हम उसका विरोध करते हैं। और वही काम हम भी करेंगे तो हममें और विदेशियों में क्या अन्तर रह जाएगा? इसलिए हमें एक ऐसी व्यवस्था ढूंढनी होगी जिसमें सबका कल्याण निहित हो। हमारी सरकार विदेशी पूंजीनिवेशकों को आमंत्रित करती रहती है और हमारे उद्योगपति विदेशों में अपनी पूंजी लगा रहे हैं। भारत ब्रिटेन में पूंजीनिवेश करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। चीन, पोलैण्ड, मैक्सिको, ओमान, इटली, दक्षिण कोरिया, अमरीका, स्वीडन आदि देशों में अनेक भारतीय उद्योगपतियों ने उद्योग लगाए हैं। यह विरोधाभास क्यों? क्या भारत में रोजगार बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है? यदि हां, तो फिर पहले अपने देश की सोचें। हमारे यहां जो वस्तुएं नहीं बनती हैं, उनके उत्पादन के लिए भारतीय उद्यमियों को कहा जाना चाहिए।

-श्रीश देवपुजारी

103, प्रचीता, सखाराम कीर मार्ग

माहीम, मुम्बई (महाराष्ट्र)

4

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