|
-मुजफ्फर हुसैन
कहा जाता है कि साधु और अपराधी की कोई जाति नहीं होती। लेकिन जब सजा भुगतते समय उसे अपना मजहब और जाति बतलानी पड़ती है उस समय तो अपराधी एक विशेष वर्ग और समुदाय का हो ही जाता है। पिछले दिनों जब सेना में मुसलमान कितने, यह सवाल उठा तो सेना के बड़े अधिकारियों से लेकर देश के समझदार इन्सानों ने इस गिनती का विरोध किया। इस विरोध के बाद अर्जुन सिंह की चतुर बुद्धि ने यह सवाल पैदा किया कि शिक्षा विभाग में मुसलमानों की कुल संख्या क्या है? अब तक यह गणना नहीं हो पाई है। इन आंकड़ों के आधार पर अर्जुन सिंह अपनी अल्पसंख्यक प्रेमी होने की छाप को अधिक उजागर करने में सफल हो जाएंगे, ऐसी उनकी सोच है? उचित यह होता कि अर्जुन सिंह का विभाग इस बात की जांच पड़ताल करता कि शिक्षा के किस क्षेत्र में कितने मुसलमान अध्ययन कर रहे हैं। अर्जुन सिंह मुसलमानों को शिक्षा विभाग में जानबूझकर किस तरह से उपेक्षित किया जा रहा है इसका प्रचार तो करने में सफल हो जाएंगे, लेकिन यह मालूम नहीं कर सकेंगे कि इस विशाल और महत्वपूर्ण विभाग में कुल कितने मुसलमान बच्चे स्कूल और कालेजों का लाभ ले रहे हैं? मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा का प्रतिशत आज भी बहुत कम है। अच्छा होता इस प्रयास से ठोस आंकड़े सामने आ जाते। मुस्लिमों की शिक्षण संस्थाओं पर भी कुछ बातचीत होती और मदरसों का किस प्रकार आधुनिकीकरण किया जा सकता है इस पर भी चर्चा चल पड़ती। लेकिन ऐसी कोई सम्भावना नहीं दिखती।
सेना और शिक्षा में तो मुसलमानों की गिनती में सफलता नहीं मिली, लेकिन एक चौंका देने वाले आंकड़े एक मुस्लिम लेखक ने ही अपनी पुस्तक में उजागर किए हैं।
तिहाड़ भारत की सबसे बड़ी जेल है। तिहाड़ जेल में किस-किस प्रकार के अपराधी हैं, वहां इन अपराधियों से मुलाकात करने के लिए किस प्रकार अधिकारियों को रिश्वत दी जाती है, आदि के अलावा इस पुस्तक में बताया गया है कि तिहाड़ जेल में कुल 14000 अपराधी बंद हैं। इनमें 5000 अपराधी मुसलमान हैं यानी जेल में कुल 35 प्रतिशत मुसलमान हैं। जघन्य अपराध से लेकर बड़े अपराधों तक की मुसलमान सजा काट रहे हैं। ये आंकड़े एक कश्मीरी पत्रकार इफ्तिखार गिलानी ने अपनी पुस्तक में दिए हैं, जिसे पेंगुइन ने प्रकाशित किया है।
हमारे अल्पसंख्यक समुदाय का इतना बड़ा भाग अपराधिक गतिविधियों में संलग्न है, यह सुनकर शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन प्रतिदिन अखबार पढ़ने वाले पाठकों को इसमें कुछ भी नया नहीं लगता है। इस पुस्तक में दी गई जानकारी की एक विशेषता और है। मुसलमान वकील मुसलमान अपराधी को किस तरह से “ब्लैकमेल” करता है और नित नए बहाने बनाकर उससे पैसे ऐंठता रहता है। जिन मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने इफ्तिखार गिलानी की इस पुस्तक को नहीं पढ़ी हो, वे मौलाना मोहम्मद असरारुल हक कासिमी द्वारा लिखित उस आलेख को अवश्य पढ़ लें, जिसमें उनहोंने उर्दू दैनिकों में इस पुस्तक के विषय में जानकारी प्रदान कर मुस्लिम नेताओं और मौलानाओं की आंखें खोलने का प्रयास किया है। इफ्तिखार गिलानी द्वारा लिखित इन छोटी-छोटी घटनाओं से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। किस तरह से छोटी-छोटी बातें उन्हें तिहाड़ में धकेल देती हैं। जैसे झाड़ फूंक करने वाले एक व्यक्ति के पास एक दुखी पिता आया। उसकी लड़की विचित्र प्रकार की हरकतें करती थी जिससे सारा घर परेशान था। भूत भगाने वाले मौलवियों ने उससे कहा कि तुम्हारी लड़की पर किसी जिन्न का साया है। बेचारा गरीब बाप अपनी लड़की को लेकर एक मौलवी के पास आया। उसने इलाज के नाम पर उससे कुछ पैसे मांगे। गरीब बाप ने दे दिये। लेकिन भूत नहीं भागा। जब काम नहीं हुआ तो उसने मौलवी से कहा कि तुम्हें मुझे मेरा पैसा लौटाना होगा। लेकिन वह ऐसा क्यों करता? बाप को जब पैसा नहीं मिला तो उस ढोंगी पर उसने मुकदमा दायर कर दिया। नतीजे में ढोंगी मौलवी तिहाड़ जेल पहुंच गया। मौलवी की पत्नी ने अपने पति को छुड़ाने के लिये घर का सारा सामान बेच दिया। लेकिन पति जेल से नहीं छूट सका। तारीख पड़ते ही उसे अदालत के सामने पेश किया जाता और हर बार जमानत रद्द हो जाती। असलियत यह थी कि उसके विरुद्ध एक प्रसिद्ध मुस्लिम वकील मुकदमा लड़ रहा था। हर बार तारीख पर उपस्थित होकर न्यायाधीश के सामने वह कहता कि साहब इस मौलवी(ढोंगी बाबा)ने फातेहा का चिल्ला खींचा है। इसलिये उसकी जमानत नहीं होनी चाहिए। न्यायाधीश को इस प्रकार की शब्दावली का कोई ज्ञान नहीं था। हर बार ज्यों ही यह कहा जाता कि साहब इसने फातेहा का चिल्ला खींचा है, उसकी जमानत की अर्जी निरस्त कर दी जाती थी। तीन साल तक यह नाटक होता रहा।
अंतत: एक दिन एक स्वयंसेवी संगठन की ओर से एक हिंदू महिला वकील न्यायाधीश के सामने उपस्थित हुई। मुस्लिम वकील को दिन में ही तारे नजर आ गए। महिला वकील ने बहस की और सही स्थिति से अदालत को परिचित कराया। न्यायाधीश ने उसी दिन उसे जमानत दे दी। अदालत ने उक्त मुस्लिम वकील को फटकार लगाई। बाद में पता चला कि ढोंगी मौलवी के विरुद्ध जो वकील खड़ा था वह प्रभावित होने वाले व्यक्ति का संबंधी था। न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा कि भूत को भगाने की कोशिश की जा सकती है लेकिन यह आदमी के बस की बात नहीं है। यह काम भगवान का है और भगवान पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। लेखक गिलानी ने ऐसे अनेक मामले अपनी पुस्तक में दिये हैं। मुल्ला और मौलवी के रूप में लोग कदम कदम पर गरीब, अनपढ़ और लाचार मुसलमानों को लूटते रहते हैं। असली सवाल यह है कि मुसलमान अपराधी क्यों बनता है और उसे अपराध करने के लिये कौन प्रेरित करता है?इस प्रश्न का उत्तर ढूंढा जाए तभी इस प्रकार की पुस्तकें लिखने का सही उद्देश्य पूरा हो सकता है। अशिक्षा और अंधविश्वास तो इसका कारण है ही लेकिन साथ ही इस्लाम के नाम पर पर्सनल ला की जो व्याख्या की जाती है वह भी उतनी ही जिम्मेदार है। पवित्र कुरान की सूराए निसा में तलाक किस प्रकार दी जाए उसका विस्तृत वर्णन है। यह तरीका इतना ठोस और परिपक्व है कि किसी महिला के साथ अन्याय नहीं हो सकता। लेकिन तथाकथित मौलाना और काजी उसकी व्याख्या पुरुष के समर्थन में करके महिला के साथ अन्याय करते हैं। तीन तलाक जो लगभग तीन से साढ़े तीन महीने में पूर्ण होती है उसे एक ही साथ तीन बार बोलकर जन्म जन्म के संबंध को तोड़ दिया जाता है। बेचारी पत्नी अपने पिता के घर में आकर शरण लेती है। उसके तीन चार बच्चे (कम या अधिक हो सकते हैं)अपनी मां के साथ चले आते हैं। पत्नी का गरीब बाप यह अतिरिक्त बोझ कैसे उठाए? उसके छोटे से घर में इतनी जगह नहीं कि सब रह सकें। लाचार होकर ये बच्चे फूटपाथ पर पलते हैं। किसी की जेब किस तरह से काटी जाती है, वे निकट से देखते रहते हैं। भूखे बच्चे को कोई थैला उठाकर किसी स्थान पर रखने के लिए कहे तो वह काम करने के लिए राजी हो जाता है। इस छोटे से काम के लिये कोई 25-50 रुपये दे दे तो वह उसका आभारी हो जाता है। उसे क्या मालूम इस थैले में आरडीएक्स था। इस प्रकार वह धीरे-धीरे अपराध जगत की ओर कदम बढ़ाता रहता है। एक दिन बड़ा अपराध कर जेल पहुंच जाता है। जब तक मुस्लिम जनसंख्या पर अंकुश नहीं लगता, बहुत विवाह और तलाक के कानून नहीं बदले जाते, मुस्लिम अपराध जगत से मुक्त नहीं हो सकता।
10
टिप्पणियाँ