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मंथन

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Nov 6, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 06 Nov 2006 00:00:00

राष्ट्रभक्ति का मूल्य प्राण है, देखें कौन चुकाता है?देवेन्द्र स्वरूपबृहस्पतिवार (1 जून) को पौ फटने के पहले पौने चार बजे नागपुर पुलिस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय डा. हेडगेवार भवन से केवल एक सौ मीटर की दूरी पर एक लाल बत्ती वाली सफेद अम्बेसडर कार में महाराष्ट्र पुलिस की वर्दी में भारी शस्त्रास्त्रों से लैस तीन युवा जिहादियों को केवल 15-20 मिनट की मुठभेड़ में मार गिराने का करतब कर दिखाया। पुलिस को इस हमले की भनक पहले से थी। 9 मई को मुम्बई में अमदाबाद के मुहम्मद अली चिप्पा और भड़ौंच निवासी फीरोज घसावला की गिरफ्तारी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और गुजरात के मुख्यमंत्री पर हमले की तैयारी के संकेत सूत्र मिल गये थे। जिहादी प्रचारतंत्र द्वारा इन दोनों को अयोध्या में विवादास्पद बाबरी ढांचे के ध्वंस और गुजरात में मुस्लिम नरसंहार के लिए अपराधी घोषित किया जा रहा है। जिहादी संगठनों के इरादों की जानकारी केन्द्र सरकार के गुप्तचर विभाग को भी मिल चुकी थी। एक अंग्रेजी दैनिक पत्र के अनुसार प्रधानमंत्री के मुख्य सुरक्षा परामर्शदाता एम.के. नारायणन के निर्देश पर केन्द्रीय गुप्तचर विभाग के निदेशक ई.एस.एल. नरसिम्हन 15 मई को विमान से मुम्बई पहुंचे और तुरंत कार द्वारा डोंबीवली में लगे संघ शिक्षा वर्ग में पहुंच कर वहां आये सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन को यह सब जानकारी दी और उनसे भी सतर्क रहने की प्रार्थना की क्योंकि वे भी जिहादियों के निशाने पर हैं। बताया जा रहा है कि 29 मई से नागपुर में एक पुलिस दस्ते को इस फिदायीन हमले को नाकाम करने के लिए विशेष प्रकार का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा था। अत: 1 जून की प्रात: की घटना नागपुर पुलिस के लिए अनपेक्षित नहीं थी। वैसे भी पुराने नागपुर के महाल क्षेत्र में स्थित डा. हेडगेवार भवन तक पहुंचने वाली संकरी गलियों की नाकाबंदी करना किसी भी सुरक्षा व्यवस्था के लिए अपेक्षाकृत सरल है। और नागपुर पुलिस ने लम्बे समय से हेडगेवार भवन की सुरक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत व्यूह रचना की हुई थी। इसी व्यूह रचना की एक बैरीकेड (अवरोधक) तक पहुंचते ही वह अम्बेसडर कार पुलिस के जाल में फंस गई। स्वाभाविक ही, नागपुर पुलिस को इस कारनामे के लिए काफी यश मिला है। महाराष्ट्र सरकार और गुजरात सरकार ने उन्हें इस सफलता के लिए 10-10 लाख रुपए के पुरस्कारों की तुरंत घोषणा भी कर दी है।अब यहां प्रश्न खड़ा होता है कि ये युवा जिहादी कौन थे, किस जिहादी संगठन से वे जुड़े हुए थे और उन्होंने डा. हेडगेवार भवन को ही हमले के लिए क्यों चुना? क्या उन्हें पता नहीं था कि इस समय पूरे देश में प्रतिवर्ष लगने वाले ग्रीष्मकालीन संघ शिक्षा वर्ग लगे हुए हैं, जिनमें 40-50 हजार स्वयंसेवक ब्राहृमुहूर्त से रात्रि के 10 बजे तक अनुशासित राष्ट्रभक्ति की कठोर साधना कर रहे हैं, परिवार के स्वादिष्ट भोजन और सुविधापूर्ण जीवन शैली से अलग हट कर सादगी और त्याग का पाठ ह्मदयंगम कर रहे हैं? संघ का समूचा नेतृत्व-सरसंघचालक, सरकार्यवाह, तीनों सहसरकार्यवाह एवं अन्य पदाधिकारी गण इन वर्गों में उपस्थित रहने के लिए पूर्व निर्धारित प्रवास पर रहते हैं। स्वयं नागपुर में इस समय कुछ किलोमीटर की दूरी पर रेशिमबाग में तृतीय वर्ष के प्रशिक्षण का सबसे महत्वपूर्ण वर्ग लगा हुआ है, वहीं डा. हेडगेवार और द्वितीय सरसंघचालक श्री गोलवलकर (गुरुजी) की समाधियां भी हैं। अत: 1 जून को हेडगेवार भवन में संघ का कोई केन्द्रीय अधिकारी नहीं था। ऐसे सूने भवन पर फिदायीन हमले का क्या उद्देश्य हो सकता है? उससे वे क्या प्राप्त करना चाहते थे?मानबिन्दु पर प्रहारडा. हेडगेवार भवन का महत्व ईंट-गारे से बनी उसकी वास्तु में नहीं है। वह डा. हेडगेवार की साधनास्थली है। इसी भूमि पर डा. हेडगेवार ने 1925 में दैनिक खेल कूद और व्यायाम के माध्यम से उद्दाम राष्ट्रभक्ति से अभिमन्त्रित, राष्ट्र हेतु सर्वस्व न्यौछावर के लिए प्रतिज्ञाबद्ध, संगठन शास्त्र में निष्णात्, अनुशासनबद्ध अंत:करणों को गढ़ा था। उन्हें भारत के अनजाने क्षेत्रों में राष्ट्रभक्ति का बीज बनकर बोने के लिए फेंक दिया था। इतिहास के पन्नों के लिए अनाम उन्हीं राष्ट्रभक्त युवकों की साधना से पूरे भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रूपी विशाल संगठन वृक्ष विकसित हुआ है। उसी वृक्ष की अनेक शाखा-प्रशाखा राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में-विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती, विश्व हिन्दू परिषद और भारतीय जनता पार्टी आदि अनेक नामों से भारत की राष्ट्रीय चेतना और एकता का सिंचन कर रही हैं। हेडगेवार भवन राष्ट्रभक्ति की गंगोत्री है, राष्ट्रभक्तों का प्रेरणास्रोत है, पवित्रतीर्थ है और भारत राष्ट्र का शक्ति बिन्दु है। उस भवन पर जिहादी आक्रमण किसी एक भवन, किसी एक संस्था पर प्रहार नहीं, भारत राष्ट्र पर आक्रमण है, राष्ट्र के मान बिंदु पर प्रहार है। हेडगेवार भवन पर आक्रमण की योजना भारत पर जिहादी आक्रमण की उसी श्रृंखला की अगली कड़ी है जो दिल्ली, संसद भवन, अमदाबाद में अक्षरधाम मंदिर, जम्मू के रघुनाथ मंदिर, अयोध्या के रामजन्म भूमि मंदिर और वाराणसी में संकट मोचन मंदिर पर जिहादी आक्रमण के रूप में सामने आ चुकी है। जिहादी आक्रमणों की यह श्रृंखला हमें ग्यारहवीं शताब्दी के महमूद गजनवी की आक्रमण श्रृंखला की याद दिला देती है। महमूद गजनवी ने भी छोटे-छोटे अन्तराल पर उस युग के भारतीय श्रद्धा केन्द्रों पर चुन चुन कर आक्रमण किए थे। इन आक्रमणों के पीछे उसका एकमात्र उद्देश्य हिन्दू समाज की आस्था और मनोबल को खंडित करना था। उसके समकालीन विद्वान अलबरूनी के अनुसार, “महमूद के इन आक्रमणों के फलस्वरूप हिन्दू धूल के कणों की तरह बिखर गए थे।” भारत राष्ट्र की वर्तमान स्थिति में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे अनुप्राणित विशाल संघ परिवार ही भारत के विश्रृंखलित, पतनगामी और दिग्भ्रमित सार्वजनिक जीवन में राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रीय एकता की सुदृढ़ चट्टान बन कर खड़ा हुआ है? राष्ट्रभक्ति के इस शक्ति दुर्ग के मर्मस्थल पर चोट करने से बड़ी जिहादी सफलता और क्या हो सकती थी।पर, शायद जिहादियों को यह पता नहीं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्राण किसी मिट्टी के भवन में नहीं, आसेतु हिमाचल बिखरे उसके लक्षावधि स्वयंसेवकों के अंत:करण में विद्यमान राष्ट्रभक्ति के अजस्र प्रवाह में हैं। संघ के स्वयंसेवक की रग रग में यह गीत बसा है,राष्ट्रभक्ति का मूल्य प्राण है, देखें कौन चुकाता है?देखें कौन सुमन शय्या तज, कष्टक पथ अपनाता है?बाधाओं को पार कियाअपना आस्था का परिचय संघ के स्वयंसेवकों ने प्रत्येक संकटकाल में दिया है। सत्ता की ओर से आने वाले प्रतिबंधों के वार उसने तीन बार परास्त किये हैं। राष्ट्र के किसी भी कोने में आने वाली प्राकृतिक या मानव जन्य आपदा के समय वह अपना सब कुछ भूलकर तन, मन, धन से कूद पड़ता है। राष्ट्र की एकता और अखंडता पर होने वाले प्रत्येक आक्रमण को उसने अपनी छाती पर झेला है और अपने प्राणों की बलि चढ़ाई है। चाहे वह देश-विभाजन की भयंकर त्रासदी हो, चाहे कश्मीर पर 1947 का पाकिस्तानी आक्रमण हो, चाहे 1951 में पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार और निष्कासन हो, चाहे 1962 का चीनी आक्रमण हो, चाहे 1971 का बंगलादेश मुक्ति संग्राम हो, चाहे 1990 में कश्मीरी पंडितों के निष्कासन की स्थिति हो, चाहे श्री रामजन्मभूमि के उद्धार का प्रश्न हो, संघ का स्वयंसेवक राष्ट्र की पुकार पर अपने प्राणों को हथेली पर रख कर दौड़ पड़ा है। स्वाभाविक ही, भारत राष्ट्र की एकता और अखंडता की यह चट्टान राष्ट्र विघातक, समाज विखंडक एवं पृथकतावादी तत्वों को हमेशा खटकती रही है और वे इस पर अपना सिर पटकते रहे हैं। 1980 के बाद जब विदेशी प्रेरणा से पंजाब में पृथकतावाद का ज्वार उठा और उसने हिंसक आतंकवाद का रूप धारण किया, तब भी पृथकतावाद ने पंजाब के कई नगरों में संघ की शाखाओं पर अकारण आक्रमण करके मातृभूमि की वंदना में रत असावधान, निहत्थे स्वयंसेवकों के रक्त से होली खेलने का महापाप किया था। आज जब सत्तालोलुप राजनीतिज्ञों की वोट बैंक राजनीति मुस्लिम समाज में कट्टरवाद और पृथकतावाद का पोषण करने में जुटी है तब इस राष्ट्रघाती राजनीति से प्रोत्साहित जिहादी उन्माद को यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे अनुप्राणित विशाल संगठन परिवार अपना एकमात्र शत्रु दिखाई देता हो तो क्या आश्चर्य?पर संघ ने उनके शत्रुभाव और खूनी हमलों को शिव के समान शान्त भाव से सहा है, विषपान किया है। और प्रत्येक आक्रमण के समय अपने स्वयंसेवकों को उद्वेलित न होने, पर साथ ही राष्ट्रभक्ति के अपने संकल्प से स्खलित न होने का आह्वान किया है। 1948 में जब संघ-विरोधी वामपंथी तत्वों के भड़काने पर उपद्रवी तत्वों ने संघ कार्यकर्ताओं के विरुद्ध हिंसा का प्रदर्शन किया तब जेल में बन्द सरसंघचालक श्री गुरुजी ने स्वयंसेवकों से शान्त रहने और इन सब हिंसक हमलों को पथभ्रष्ट, देशवासियों की गांधी जी के प्रति भक्ति के प्रगटीकरण के रूप में शिरोधार्य करने का सार्वजनिक आह्वान किया। 1980 के बाद जब पंजाब में खालिस्तानी पृथकतावाद ने निर्दोष असावधान स्वयंसेवकों की हत्या की तब भी तृतीय सरसंघचालक श्री बाला साहब देवरस ने कहा कि सिख हमारे समाज बंधु हैं अत: कुछ मतिभ्रष्ट पथभ्रष्ट तत्वों के कुकृत्यों का गुस्सा हम अपने सिख भाइयों पर नहीं उतार सकते। इसी उदात्त भावना के कारण 1984 में अपने ही सिख सुरक्षाकर्मियों के हाथों भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की दिन दहाड़े हत्या से क्षुब्ध और उद्वेलित जनभावनाओं में कतिपय कांग्रेसी नेताओं की शह पर राजधानी दिल्ली में सिखों के नरमेध पर संघ के अनेक कार्यकर्ताओं ने बदनामी और प्राणों का खतरा मोल लेकर सिख बन्धुओं को अपने यहां शरण दी, उनकी प्राण रक्षा की। उसी परम्परा में इस समय भी सरसंघचालक श्री सुदर्शन ने सभी संघ प्रेमियों से अनुरोध किया है वे शान्ति और संतुलन बनाए रखें, जिहादी मानसिकता को जन्म देने वाली विचारधारा से मुस्लिम समाज को मुक्ति दिलाने के अपने प्रयत्नों को जारी रखें। यहां यह स्मरण दिलाना आवश्यक है कि भारतीय मुस्लिम समाज को जिहादी जुनून से हटाने एवं राष्ट्रीय प्रवाह में लाने की दृष्टि से अनेक वर्षों से श्री सुदर्शन की पहल पर मुस्लिम नेताओं के साथ संवाद की एक नियमित प्रक्रिया प्रारंभ हुई है और कैसा संयोग है कि 1 जून की प्रात: फिदायीन हमले के प्रयास के समय हेडगेवार भवन में केन्द्रीय अधिकारी के नाते एकमात्र श्री इन्द्रेश कुमार उपस्थित थे, जो संघ की योजनानुसार राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच खड़ा करने की दिशा में ही पूरी शक्ति लगा रहे हैं।निर्लज्ज राजनीतिकिन्तु वोट बैंक राजनीति के अन्तर्गत इस समय मुस्लिम मत में हिन्दू समाज और विशेषकर संघ-परिवार के प्रति घृणा का जहर भरने में जो राजनैतिक बौद्धिक और मीडिया कर्मी जुटे हैं, उनके संयुक्त प्रयत्नों की विशालता के समक्ष संघ का यह रचनात्मक प्रयास बहुत ही छोटा दिखाई देता है। लालू यादव और रामविलास पासवान मुस्लिम वोटों को रिझाने के लिए अपनी चुनाव सभाओं में ओसामा बिन लादेन की प्रतिकृति का प्रदर्शन करें तो क्या वे बिहार के मुसलमानों को जिहाद के रास्ते पर बढ़ने की प्रेरणा नहीं दे रहे? यदि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह डेनमार्क के किसी कार्टूनिस्ट की हत्या करने वाले को 51 करोड़ रुपए के इनाम की सार्वजनिक घोषणा करने वाले हाजी याकूब कुरैशी को अपने मंत्रिमण्डल में बनाए रखें, यदि उनका दूसरा सिपहसालार आजम खान खिलाफत आन्दोलन के नायक मुहम्मद अली जौहर की स्मृति में विश्वविद्यालय की स्थापना, गाजियाबाद की सार्वजनिक अमीन पर हज हाउस के निर्माण और बाबरी ध्वंस की घटना को ही अपनी राजनीति का मुख्य आधार बना ले तो मुस्लिम समाज आत्मालोचन के रास्ते पर बढ़ेगा भी तो कैसे? जब केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा से सब ओर से आंखें मूंदकर मुस्लिम अल्पसंख्यकवाद को भड़काने और हिन्दू समाज में जातिवाद की आग लगाकर देश की तरुणाई को आत्महत्या के रास्ते पर धकेल कर सऊदी अरब की यात्रा पर निकल जाएं तो इस देश का भविष्य क्या हो सकता है? यह समझ के बाहर है कि ऐसे राष्ट्रीय संकट के समय अर्जुन सिंह की सऊदी अरब यात्रा का उद्देश्य क्या हो सकता है? भारतीय राजनीति और बौद्धिक क्षेत्र में सऊदी धन की भूमिका बहुचर्चित है। सऊदी अरब द्वारा दिल्ली के जामिया मिलिया को 350 करोड़ रुपए की सहायता इसका ताजा उदाहरण है। संप्रग के सत्ता में आने के बाद मुस्लिम तुष्टीकरण और पृथकतावाद से प्रेमालाप की प्रक्रिया बहुत तेज हुई है। पहली बार अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन किया गया है। मुस्लिम आकांक्षाओं को भड़काने के लिए राजेन्द्र सच्चर आयोग का गठन हुआ है और विपक्ष के पूरे विरोध के बावजूद उसका कार्यकाल बढ़ाया गया है। तीस्ता जावेद (सीतलवाड़), मेधा पाटकर, अरुंधती राय, महेश भट्ट, बरखा दत्त, हर्ष मंदर जैसे नफरत के व्यापारी चौबीसों घंटे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और संघ के विरुद्ध नफरत का जहर उगलने में लगे हुए हैं। हिन्दू भावनाओं का उनके लिए कोई महत्व नहीं, डोडा के निरपराध हिन्दुओं की निर्मम हत्या के लिए उनकी आंखों में एक आंसू नहीं, पर वडोदरा में अपनी हठधर्मी के कारण तीन मुसलमानों की हत्या को तीस्ता जावेद (सीतलवाड़) गुजरात में कानून और शांति टूटने का रंग दे देती है और टाइम्स आफ इंडिया जैसा बड़ा अखबार इस बकवास को छापने के लिए जगह देता है। गुजरात में नफरत के एक सौदागर सेड्रिक प्रकाश को फ्रांस में सम्मान मिलने का क्या अर्थ है? कम्युनिस्ट पार्टियां तो निर्लज्जता के साथ मुस्लिम आतंकवाद के साथ गठबंधन कर रही हैं। इस सब राजनीति का परिणाम पांच विधान सभाओं के ताजे चुनावों में सामने आ गया है। असम में स्वतंत्र मुस्लिम राजनैतिक दल खड़ा हो गया, पैदा होते ही दस सीटें जीत गया, उत्तर प्रदेश में मुस्लिम दलों का मोर्चा गठित हो गया, जामा मस्जिद के इमाम बुखारी मुसलमानों के लिए नौकरियों में आरक्षण की मांग उठाते हैं।यह विचारधाराओं का संघर्ष है। एक ओर निष्काम राष्ट्रभक्ति है, दूसरी ओर मानव-शान्ति की शत्रु जिहादी मानसिकता और उसका पोषण करने वाली राष्ट्र विघातक स्वार्थी सत्ता-राजनीति। भारतीय राजनीति के वर्तमान परिदृश्य में राष्ट्रभक्ति की भूमिका बहुत कठिन हो गई है। संघ के स्वयंसेवकों ने राष्ट्रभक्ति का व्रत लिया है और वे इस व्रत पर अडिग हैं। वे मृत्यु से नहीं डरते, राष्ट्र के लिए मृत्यु का वरण उनके लिए स्वर्ग का खुला द्वार है। उनका प्रिय गीत है-जिसने मरना सीख लिया है, जीने का अधिकार उसी काजो कांटों के पथ पर आया, फूलों का उपहार उसी को।। (2 जून, 2006)39

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