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संवत् 2063 वि. – वार ई. सन् 2006 आश्विन कृष्ण 3 रवि 10 सितम्बर ,, 4 सोम 11 ,, ,, 5 मंगल 12 ,, ,, 6 बुध 13 ,, ,, 7 गुरु 14 ,, (जीवत्पुत्रिका व्रत),, 8 शुक्र 15 ,, ,, 9 शनि 16 ,, उन सा है कौन?शहनाई के स्वर रुके, हुई साधना मौनवादक तो हैं सैकड़ों, पर उन सा है कौन?पर उन सा है कौन, विश्वनाथ-आराधकबिस्मिल्लाह थे सात सुरों के अद्भुत साधक।यदि “प्रशांत” सब मुस्लिम उन जैसे हो जाएंतो भारत में घर-घर प्रेम ध्वजा फहराए।।-प्रशांतपाठकीयअंक-सन्दर्भ, 13 अगस्त, 2006ये वंश के पुजारीआवरण कथा के अन्तर्गत श्री आलोक गोस्वामी की रपट “अकेली कांग्रेस, एकजुट विपक्ष” कांग्रेस की वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करती है। यह बात सही है कि कांग्रेस इन दिनों कई मुद्दों पर अपने सहयोगी दलों से अलग दिख रही है। भारत-अमरीका परमाणु संधि, वोल्कर रपट आदि के बारे में एक साधारण मतदाता कुछ नहीं जानता। ऐसे मतदाताओं को शराब, पैसे और हिंसा के माध्यम से अपनी ओर खींचा जाता है और इसमें कांग्रेस को महारथ हासिल है।-प्रमोद वालसांगकर1-10-19, रोड नं. 8ए, द्वारकापुरम दिलसुखनगर, हैदराबाद(आंध्र प्रदेश)दृ कांग्रेस केवल आज नहीं, वर्षों से कठघरे में खड़ी होती रही है। किन्तु वह तथाकथित साम्प्रदायिक ताकतों का भय दिखाकर जनता की अदालत से बरी हो जाती है। अब कांग्रेसियों ने अपनी छवि चमकाने के लिए एक नया तरीका अपनाया है। ध्यान रहे कि जब भी देश के अन्दर कोई बड़ी घटना होती है तो सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री से भी पहले वहां ले जाया जाता है।उन्हीं से मुआवजे आदि की घोषणा करवाई जाती है। आम लोगों से उनका सीधा सम्पर्क कराया जाता है। इसके बाद ही प्रधानमंत्री या अन्य नेता वहां पहुंचते हैं। यह सब एक सोची-समझी चाल है। कांग्रेसी रणनीतिकारों का काम ही यह रह गया है कि किस तरह “मैडम” की छवि चमकाई जाए। कुछ कांग्रेसी सोनिया की छवि चमकाने में लगे हैं, तो कुछ राहुल को तराश रहे हैं।-अंजनी कुमारआशियाना मोड़, शेखपुरा, पटना (बिहार)दुर्भाग्य से आज हमारे देश में वोट की राजनीति इतनी अधिक हावी हो गई है कि देश की चिन्ता करने वाले गिने-चुने लोग ही रह गये हैं। आज नेताओं के सामने शायद कुर्सी बचाना ही मुख्य उद्देश्य रह गया है। आतंकवाद हो या भ्रष्टाचार, रोके नहीं रुक रहा। लगता है नैतिक मूल्य भी पुस्तकों के पन्नों में या फिर भाषण में सिमट कर रह गये हैं। संसद में देशहित के कम, नोंक-झोंक के दृश्य ज्यादा दिखने लगे हैं। हमारा देश भ्रष्टाचार, आतंकवाद से मुक्ति पा जाए, तो अवश्य ही यह महान कहलाएगा।-कुलदीप190, रेलवे स्टेशन रोड, गाजियाबाद (उ.प्र.)ब्लेयर को धन्यवाद!पिछले दिनों ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने कहा, “कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद है।” इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। लेकिन यहां यह भी कहना आवश्यक है कि जब ब्रिटेन को आतंकवाद की आंच लगी, तब ब्लेयर साहब यह स्वीकारते हैं कि कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद है। यही हाल अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश का भी है। आतंकवादियों ने जब अमरीका को निशाना बनाया तब उन्होंने भी अपना मुंह खोला था।-क्षत्रिय देवलालउज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया,कोडरमा (झारखण्ड)माओवादियों का दुस्साहसश्री राकेश मिश्र की रपट “माओवादियों द्वारा भारतीय मूल के नागरिकों को धमकी” नेपाल में भारतीय मूल के नागरिकों के सामने आने वाली परेशानियों को इंगित करती है। किन्तु दुर्भाग्य है कि भारत सरकार इस मुद्दे पर चुप है। यही कारण है कि माओवादी नेपाल के साथ-साथ भारत के विभिन्न राज्यों में फल-फूल रहे हैं। उनका दुस्साहस बढ़ता जा रहा है। पहले इन लोगों ने नेपाल को सेकुलर राज्य घोषित करवाया, अब वहां से भारतीयों को खदेड़ने पर तुले हैं।-गजानन पाण्डेयम.सं. 2-4-936, निम्बोली अड्डा, काचीगुडा, हैदराबाद (आं.प्र.)सुविचारित नीति का अभावसम्पादकीय “देश से बड़ा कौन?” से पता चलता है कि आज के राजनीतिक दलों के पास न तो सुविचारित नीति है और न ही देश को उचित दिशा-निर्देश देने की इच्छाशक्ति। संसद के अन्दर जैसी नोक-झोंक होती है, उससे देश का कोई भला नहीं होने वाला है। देश, समाज और संस्कृति से बढ़कर कुछ है नहीं। लेकिन दु:ख है कि हमारे नेता आज जो कुछ भी कर रहे हैं, वह केवल सत्ता के लिए कर रहे हैं। इन्हीं नेताओं के कारण कश्मीर नासूर बन चुका है, बच्चों को गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है, गरीब और गरीब होता जा रहा है। क्या यही गांधी जी के सपने का भारत है?-दिलीप शर्मा114/2205, एम.एच.वी. कालोनी, समता नगर, कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)सम्पादकीय का संकेत है कि आतंकवाद और आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे देश में राजनीतिक शत्रुता की नहीं, व्यापक राजनीतिक मतैक्य की आवश्यकता है। किन्तु यह राजनीतिक एकता विकसित कैसे हो? जिस हिन्दू-समाज में एकता की सबसे अधिक जरूरत है, वह बुरी तरह से बंटा पड़ा है। जब समाज में ऐक्य-भाव मजबूत होगा तो उसके दबाव से राजनीतिक एकता भी उभरेगी। रा.स्व. संघ से आज देश को अपेक्षा है कि अपने विराट रूप को प्राप्त करने के लिए वह पूरे हिन्दू-समाज के अभिभावक की भूमिका अपनाये।-विनायक भरतविक्रम विहार, लाजपत नगर-4 (नई दिल्ली)अंक-सन्दर्भ -6 अगस्त, 2006राजनीतिक हस्तक्षेपश्री जसवंत सिंह की पुस्तक “ए काल टू आनर” की समीक्षा पढ़ी। श्री तरुण विजय ने ठीक ही लिखा है कि उनका कंधार जाना गलत था। परन्तु विमान में सवार यात्रियों को बचाने का विकल्प क्या था? यह उनका व्यक्तिगत निर्णय था या पूरे मंत्रिमंडल का? निश्चित रूप से वह सेना का तो निर्णय नहीं होगा। यदि वह निर्णय सेना पर छोड़ा जाता तो अच्छा होता, जैसा कि सेना के तीनों प्रमुखों की राय से पता चलता है। लगता है कि शांति के पुजारी होने के कारण हर बार सेना के कार्य में हमारे राजनेता हस्तक्षेप करते हैं। ऐसे नेताओं की नीतियों से देश बार-बार अपमानित हुआ है। कंधार घटना के बाद ही संसद भवन पर आक्रमण हुआ। इस आक्रमण के बाद युद्ध न करने का निर्णय भी राजनीतिज्ञों का था या सेना का, यह अभी तक जनता को मालूम नहीं?-उत्तमचन्द ईसराणी20, सिन्धी कालोनी, बैरसिया मार्ग, भोपाल (म.प्र.)ऐसा कब तक चलेगा?यह वोट बैंक राजनीति का ही विषफल है कि आज देश की सुरक्षा मजाक बन कर रह गई है। भारत सरकार आतंकवाद के मूल स्रोतों को समाप्त करने की बजाय हर बार ऊपरी दिखावा करती है। ऐसा कब तक चलेगा? करोड़ों की संख्या में विदेशी मुसलमान देश में अवैध रूप से रहकर कानून और सुरक्षा के लिए समस्या बने हुए हैं, परन्तु वोट बैंक का लालच उनके विरुद्ध कोई ठोस कार्रवाई नहीं होने देता। राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय हितों और एकता-अखंडता की बलि खुलेआम दी जा रही है।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)कांग्रेसी परम्पराश्री शाहिद रहीम का लेख “मदरसों का आतंकवाद से रिश्ता सदियों पुराना” अच्छा था। मदरसों के बारे में गृहमंत्री शिवराज पाटिल का बयान तो कांग्रेसी परम्परा के अनुकूल ही है। पुलिस या गुप्तचर विभाग की रपटों को न मानना उनकी आदत है। मदरसों के इतिहास की समीक्षा के लिए शिवराज पाटिल को किसी विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि मिलनी चाहिए। देखें कौन देता है, अलीगढ़ या मेरठ? चर्चा सत्र में श्री मुजफ्फर हुसैन ने मुम्बई के राष्ट्रवादी मुसलमानों के लिए लाख टके की बात कही है। वहां के मुसलमानों को उनकी बातों पर अवश्य गौर करना चाहिए।-शिव शम्भू कृष्ण417/203, निवाज राज, लखनऊ (उ.प्र.)बड़े अक्षरों में छापेंविचार गंगा स्तम्भ में श्रीगुरुजी के विचार हर सप्ताह पढ़ता हूं। परन्तु नजरें बहुत गड़ानी पड़ती हैं, क्योंकि छपाई बारीक है। इसलिए बड़े अक्षरों में इन विचारों को छापें। हो सकता है कुछ बंधु इन विचारों को धरोहर के रूप में रख रहे हों। यदि ये विचार कुछ बड़े अक्षरों और “बाक्स” में प्रकाशित हों, तो लोगों को सुविधा होगी। पाञ्चजन्य का पता भी मोटे अक्षरों में होना चाहिए।-फूल कुमार विगहिमगिरी कल्पाना आश्रम, सोलन (हिमाचल प्रदेश)जनमतपिछले दिनों जब इस्रायल लेबनान पर हमले कर रहा था, तब भारत के वाम दल कुछ कट्टरपंथियों को साथ लेकर विरोध में धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। उन्हीं दिनों (22 जुलाई) टाइम्स आफ इंडिया के कोलकाता संस्करण में एक जनमत छपा था। 73 प्रतिशत लोगों का मानना था कि भारत को भी इस्रायल की नीति का अनुसरण करना चाहिए। क्या हमारे नेता 73 प्रतिशत लोगों के विचारों को सुनेंगे? यहां इस्रायल नीति का अर्थ यह है कि पहले हम किसी को छेड़ेंगे नहीं, और कोई हमें छेड़ेगा तो उसे छोड़ेंगे नहीं।-प्रणय रायदमदम रोड, घुगुडागा,कोलकाता (प. बंगाल)पुरस्कृत पत्रजहर और उसको बेचने वाले”बहुत “फायदे” के हैं कोक और पेप्सी” शीर्षक के अंतर्गत इनके बाहरी “लाभ” गिनाए गए। अब जरा इनके आंतरिक “फायदों” पर भी एक नजर डालें। कोक और पेप्सी में मौजूद सिट्रिक एसिड हमारे भोजन के पोषक तत्वों पर ऐसा असर डालता है कि व्यक्ति नैतिक -अनैतिक सब कुछ पचा पाने के काबिल हो जाता है। इन पेयों के लगातार सेवन से मातृभूमि के प्रति नमक के कर्ज को भी भूलने की क्षमता आ जाती है। बहुत से लोग उच्च शिक्षा के बाद तो कोक और पेप्सी के देश में ही पलायन कर जाते हैं और जो नहीं जा पाते हैं, वे यहीं उनका सेवन कर देश का पैसा इन कंपनियों की तिजोरियों में जमा करते हैं। व्यक्ति में घर-गांव, समाज, राष्ट्र के प्रति प्रेम जैसी लगी “जंग” भी इससे खूब धुलती है। कोक-पेप्सी के लगातार सेवन से व्यक्ति का मन-मस्तिष्क “वैश्वीकृत” हो जाता है। दया, प्रेम, मानवहित जैसे “पुराने संस्कार” भी कोक और पेप्सी से धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं और लोगों में विश्व व्यापार नीति की तरह दांव-पेंच चलाने की क्षमता आ जाती है। कोक और पेप्सी के सेवन का एक बड़ा “फायदा” यह होता है कि चोर- उचक्कों से “मुक्ति” मिल जाती है। इनके सेवन से भोजन ठीक से हजम नहीं होगा और रात्रि जागरण का अभ्यास बढ़ेगा। रात-बिरात हाजत दूर करने के लिए इतनी बार टहलना होगा कि सुबह टहलने की जरूरत ही नहीं होगी। कोक और पेप्सी के सेवन करने वालों का यौवन कायम रहता है। क्योंकि उनकी हड्डियां तो जवानी में ही गल जाती हैं, बुढ़ापा तो दूर की बात है। एक सबसे बड़ा “फायदा”- आठ-दस बोतल कोका-कोला एक साथ पीकर इच्छुक व्यक्ति इस नश्वर संसार से “मुक्ति” पा सकता है!डा. नारायण भास्कर50, अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।-सं.4
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