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जम्मू-कश्मीर

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Oct 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Oct 2006 00:00:00

पश्चिमी पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों का दर्द-“47 में बंटवारे का दंश झेलाअब अपने ही धोखा दे रहे हैं-खजूरिया एस.कांत15 अगस्त को जब पूरा देश स्वाधीनता दिवस मना रहा था, जम्मू शहर के प्रेस क्लब पर पश्चिमी पाकिस्तान के हजारों हिंदू विस्थापित बांह पर काली पट्टी बांधे और गले व हाथ में प्रतीकात्मक जंजीरें डाले काला दिवस मना रहे थे। 1947 के विभाजन के समय पश्चिमी पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए हिन्दू राज्य और केंद्र सरकार के पक्षपाती रवैए के विरोध में बैनर, तख्ती के लिए नारे लगा रहे थे। “आजाद हिन्दुस्थान के गुलाम लोग”, “हमें हमारा हक दो”, “हम भी जीना चाहते हैं, हिन्दुस्थान के साथ” जैसे नारों के साथ वे खुद को जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे थे।पिछले 59 वर्षों से करीब 1 लाख विस्थापित हिंदू आजाद भारत में रह रहे हैं पर सिर्फ नाम के लिए। जम्मू के साम्बा, कठुआ, बिसना, आर.एस.पुरा, जम्मू, अखनूर समेत जम्मू की सात तहसीलों में रहने वाले इन हिंदुओं को संविधान में प्रदत्त लोकतांत्रिक अधिकार तो दूर, जम्मू कश्मीर के नागरिक का दर्जा भी नहीं दिया गया है। पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थी कार्यकारी समिति के अध्यक्ष श्री लांभा राम गांधी ने कहा, “आज भी हम गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं, ऐसे में स्वतंत्रता दिवस मनाने का क्या मतलब है।” उन्होंने आगे कहा कि हमें मजबूर ऐसा दु:खद कदम उठाना पड़ा है। हम अब भी बिना किसी संवैधानिक और मौलिक अधिकार के जी रहे हैं तो क्या हम स्वतंत्र हैं?कृष्ण सिंह विभाजन के समय पाकिस्तान छोड़कर भारत आए थे। उस समय उनकी उम्र 8 साल थी। अब तो वे भी आस छोड़ चुके हैं कि “47 के हजारों विस्थापितों को राज्य के स्थाई निवासी का दर्जा मिल पाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने हम लोगों को सड़क पर ला खड़ा किया है। राज्य में अब तक जितनी भी सरकारें आईं, सभी ने सिवाय वादे के इन्हें कुछ नहीं दिया। श्री लांभा कहते हैं- “हम लोगों ने 12 अगस्त, 2005 से 19 मई, 2006 तक दिल्ली के बोट क्लब पर लगातार धरना दिया। उस समय गृहमंत्री जी ने हमसे वादा किया था कि हमें हमारा मौलिक अधिकार दिया जाएगा। पर लगता है कि वह भी राजनीतिक चाल ही थी।” उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि राज्य के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने भी उनकी मांगों पर ध्यान देने का आश्वासन देकर इस दिशा में कुछ नहीं किया।इन विस्थापितों की इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी कि 1967 से ये लोकसभा चुनावों में तो मतदान करते आ रहे हैं पर इन्हें राज्य का नागरिक नहीं माना जाता है। यानी भारत के संविधान के तहत ये भारतीय नागरिक हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर में बसने के 59 वर्षों के बाद भी ये राज्य के नागरिक नहीं माने जाते। इस कारण अन्य अधिकारों के साथ इन्हें राज्य चुनावों में वोट डालने का भी अधिकार प्राप्त नहीं है। विरोध रैली का नेतृत्व कर रहे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. निर्मल सिंह ने कहा कि 1947 के इन विस्थापितों के साथ राज्य और केंद्र सरकार ने छल किया है। सभी सरकारों ने इन्हें राज्य के स्थाई निवासी का दर्जा दिलाने का भरोसा दिया पर किसी ने अपना वादा नहीं निभाया।जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुसार राज्य के स्थाई निवासी होने की शर्तों में एक शर्त यह है कि 14 मई 1954 तक वह व्यक्ति राज्य विषय के वर्ग 1 अथवा वर्ग 2 के अंतर्गत आता हो। चूंकि पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी उस समय उन इलाकों में रह रहे थे जो पाकिस्तान का हिस्सा बन गए थे। इसलिए वे 1927 के जम्मू-कश्मीर विधान के अनुसार राज्य विषय के अंतर्गत नहीं आते। इसलिए उन्हें राज्य के स्थाई निवासी का दर्जा नहीं दिया जा सकता। हालांकि राज्य विधानमण्डल के पास जम्मू-कश्मीर के संविधान के खण्ड 9(अ) के तहत अधिकार है कि वह “स्थाई निवासी” सम्बंधी प्रावधान में आवश्यक फेर-बदल कर सके। परन्तु ऐसा कोई प्रयास अब तक राज्य सरकार की ओर से नहीं किया गया है।24

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