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-डा. देवाशीष बोस
बिहार से सटी भारत-नेपाल सीमा पर अब चौकसी तेज करने के साथ-साथ सुरक्षा और शांति-व्यवस्था के सवाल को काफी गभीरता से लिया जाना चाहिए। अन्तरराष्ट्रीय सीमा से सटे बिहार के जनपदों में जहां घुसपैठियों तथा तस्करों के अलावा विदेशी हथियारों की सुगम आवा-जाही जारी है, वहीं भारत को तबाह करने की साजिश के तहत पाकिस्तान की आई.एस.आई. ने अब बिहार को निशाना बनाया है। इस काम को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. सक्रिय है।
हालांकि बिहार में आई.एस.आई. अथवा उसके सहयोगी इस्लामी आतंकवादी संगठनों ने किसी बड़ी घटना को अभी तक अंजाम नहीं दिया है। लेकिन देश में घटी हर बड़ी आतंकवादी वारदात के तार बिहार से जुड़े मिलते हैं। मुम्बई बम विस्फोट मामले में बिहार से लश्कर-ए-तोयबा के चार आतंकवादियों- गया से मो. अकरम तथा मधुबनी से मो. कलाम, खालीद अजीज एवं बद्दीउज्जमा को गिरफ्तार किया गया है। जबकि पिछले दिनों कश्मीर में सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया आतंकवादी मोइनुल अंसारी उर्फ शाकिर बिहार के सुपौल जिले का निवासी था।
गुप्तचर विभाग के सूत्रों के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि आई.एस.आई. से संरक्षण प्राप्त एजेंट बंगलादेश और नेपाल सीमा से सटे बिहार में अपने भावी कार्यक्रमों की सफलता हेतु युवकों की तलाश में हैं। बिहार से सटे भारत-नेपाल सीमा में आई.एस.आई. का जाल बिछ रहा है। इस कारण यह क्षेत्र काफी संवेदनशील हो गया है।
बिहार पुलिस के पूर्व महानिदेशक वी.पी. जैन ने स्वीकारा था कि बिहार में आई.एस.आई. के कुछ प्रशिक्षित गुर्गे घुस आये हैं एवं उनकी गतिविधियां भी इधर तेज हुई हैं। पिछले दिनों भागलपुर, बेतिया एवं अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में पकड़े गये मुखबीर एवं अवैध विदेशी इसके प्रमाण हैं।
सरकारी सूत्रों के अनुसार 8.84 करोड़ की आबादी तथा 1,73,877 वर्ग किलोमीटर भूभाग में फैले बिहार में पुलिसकर्मियों की संख्या मात्र 76,645 है। अर्थात् प्रति एक लाख जनसंख्या पर 86 और 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर मात्र 43 पुलिसकर्मी हैं। राज्य में कुल 1,097 पुलिस थाने हैं। 80,593 की आबादी और 159 वर्ग किलोमीटर पर एक ही थाना है। ऐसी स्थिति में बिहार से सटे भारत-नेपाल सीमा पर सुरक्षा और विधि-व्यवस्था के नाम पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है।
भारत-नेपाल की सीमा खुली है और दोनों के बीच पारगमन के लिए पार-पत्र की आवश्यकता नहीं होती है। इसका लाभ आई.एस.आई., नक्सली एवं अन्य असामाजिक तत्व उठाते हैं। आई.एस.आई. सिर्फ नेपाल से लगी बिहार की सीमा में ही नहीं, बल्कि 1,725 किलोमीटर में फैले धारचूला (उत्तराञ्चल) से लेकर मालहोनक (सिक्किम) तक के भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र का विध्वंसक तथा राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल कर रही है।
आई.एस.आई. के एजेंटों के लिए दंगा प्रभावित क्षेत्र काफी सुरक्षित माने जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार ये छद्म वेश में हिन्दू नामकरण कर 1992 से ही भागलपुर तथा उसके आस-पास के जिलों, जैसे-बांका, तारापुर, लखीसराय, मुंगेर आदि में सक्रिय हैं। ऐसे एजेंट अल्पसंख्यक बहुल इलाकों के तेज-तर्रार बेरोजगार गरीब युवकों को गुप्तचर ब्यूरो में नौकरी का झांसा देकर नागपुर, हैदराबाद, पांडिचेरी तथा कटनी आदि स्थानों पर भेजते हैं। वहां इन युवकों को पाकिस्तान-परस्त राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया जाता है। इस तरह के एक सनसनीखेज मामले पर भागलपुर प्रशासन छानबीन भी कर चुका है।
पाकिस्तान ने भाड़े के खुफिया एजेंटों को भी नेपाल के रास्ते बिहार एवं आस-पास के क्षेत्रों में भेजना प्रारम्भ किया है। 26 जनवरी, 1994 को नेपाल के विराटनगर से लगे अररिया जिले के जोगबनी में पांच विदेशी नागरिकों-अफजल खां, सादिक, सलीम, नसरुल्ला खां और अनवारुल हक को गिरफ्तार किया गया था। इनके पास से पाकिस्तान की मुद्रा भी बरामद हुई थी। ये सभी कथित अफगानवासी बिना पासपोर्ट और वीसा के भारत में घूम रहे थे। उल्लेखनीय है कि 1990 में हांगकांग के भी चार लोग बिना पासपोर्ट और वीसा के जोगबनी में पकड़े गये थे। सिख नेता सिमरनजीत सिंह मान, जब इंदिरा गांधी हत्याकाण्ड के अभियुक्त थे, तब उन्हें 1985 में जागबनी में ही गिरफ्तार किया गया था।
आई.एस.आई. योजनाबद्ध ढंग से पर्यटकों के भेष में अपने गुर्गों को भारत भेजती है और उनसे भारत की सामरिक सूचना प्राप्त करती है। इसका उजागर गत दिनों रक्सौल में उस समय हुआ जब सीमा शुल्क विभाग ने नेपाल से भारतीय सीमा में घुस रहे आठ अफगानियों को पकड़ा था। इन लोगों के पास से बी. 777996 नम्बर का एक भारतीय पासपोर्ट बगैर वीसा वाला आशा चौधरी के नाम, दूसरा- 0068286 नम्बर का, तीसरा ई. 255961(0) नम्बर का लूकपाइजिझिंग के नाम हांगकांग, चौथा 0823019 नम्बर का पासपोर्ट बेसुरीकार भेरेना के नाम एवं, अनिता मारिया के नाम आस्ट्रियाई पासपोर्ट सहित बिना वीसा का अफगानी पासपोर्ट नम्बर आर. 026053 बरामद हुआ।
तस्करों, लुटेरों, अपराधियों तथा आतंकवादियों की पनाहगाह और विभिन्न किस्म की तस्करी के लिए कुख्यात नेपाल सीमा क्षेत्र आजकल हथियार तस्करों का भी अन्तरराष्ट्रीय अड्डा बन गया है। सीमा पार से चीन निर्मित पिस्तौल, मशीनगन, रूसी बंदूकें, रिवाल्वर तथा चीनी राइफल ए.के. 47 प्रमुख रूप से भेजी जा रही हैं।
सूत्रों का कहना है कि आई.एस.आई. का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध बिहार एवं उत्तर प्रदेश के नामी-गिरामी कुछ राजनीतिज्ञों, अलगाववादी संगठनों तथा अपराधी गिरोहों से हैं। इन्हीें के सहयोग से अन्य सामान के साथ हथियारों की तस्करी के अलावा आई.एस.आई. को भी काफी बल मिल रहा है। पिछले दिनों काठमांडू स्थित कर्णाली होटल को नेपाली पुलिस ने आई.एस.आई. का अड्डा होने के संदेह में सील कर दिया था। इन बातों को नेपाल के कई पत्रों “सुरुचि” साप्ताहिक, “बीरगंज एक्सप्रेस” तथा “स्वतंत्रता” आदि ने भी स्वीकारा है।
इतना होने के बाद भी बिहार और केन्द्र सरकार ने सूबे को आतंकवादियों की उर्वरा भूमि बनने से नहीं रोका। कहा जाता है कि लालू-राबड़ी राज में तो आतंकवादियों को बिहार में पांव पसारने का स्वर्णिम अवसर मिला। 3 मई, 1994 को भागलपुर में पकड़े गये 9 संदिग्ध आतंकवादियों में कई आई.एस.आई. से संबंधित थे। जनवरी 1994 से वर्ष 2000 तक बिहार में आई.एस.आई. तथा आतंकवादी संगठनों के कई लोग पकड़े गये। लेकिन कारगर कार्रवाई के अभाव में आतंकी बेखौफ रहे। मई 2000 में सीतामढ़ी के डुमरा में 13 कश्मीरी 30 लाख रुपए के जाली नोटों के साथ पकड़े गए। इनमें से दो मो. मकबूल एवं जहीर अहमद का संबंध हिजबुल मुजाहिदीन से था। अक्तूबर 2000 में चांदबारा (वैशाली) गांव से पाकिस्तान निर्मित हथियार मिले थे। इससे पूर्व मुजफ्फरपुर में आई.एस.आई. के तीन एजेंट पकड़े गये थे। इनमें से एक असलम के पास पाकिस्तानी पासपोर्ट मिला था। सूत्रों का कहना है कि आई.एस.आई. बिहार को अपना सुरक्षित अड्डा बनाए रखने के मकसद से जानबूझकर यहां कोई बड़ी वारदात नहीं करवाती है।
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