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गहरे पानी पैठ

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Oct 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Oct 2006 00:00:00

हिन्दू हो तो खैर नहीं!

केरल में वामपंथी सरकार के शासन में हिन्दुत्व और हिन्दू प्रतीकों के विरुद्ध नफरत बढ़ रही है। हाल ही में दो घटनाएं ऐसी घटी हैं जो हिन्दू धर्म के प्रति हिंसक माक्र्सवादी षडंत्रों का खुलासा करती हैं। मराड की मस्जिद से निकले हत्यारों द्वारा हिन्दू मछुआरों की सामूहिक हत्या जहां बढ़ते जिहादी तंत्र का उदाहरण थी वहीं तिरुअनंतपुरम के एक कालेज शिक्षक को राखी बांधने पर एस.एफ.आई. के गुण्डों द्वारा पीटा जाना तथा वाहनों पर हिन्दू प्रतीक बनाने से रोका जाना माक्र्सवादी हिंसा के उदाहरण हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार राखी के दिन तिरुअनंतपुरम के संस्कृत कालेज के शिक्षक डा. टी. उन्नीकृष्णन पर एस.एफ.आई. के गुण्डों ने इसलिए हमला कर दिया क्योंकि उन्होंने कलाई पर राखी बांधी हुई थी। गुण्डों ने शिक्षक को मारा-पीटा और कलाई पर बंधी राखी का सूत्र तोड़ दिया। हमले के आरोप में पुलिस ने फिरोजजान नामक एक मुस्लिम युवक को गिरफ्तार किया है। हैंदव केरलम् संगठन ने इस हमले की तीव्र भत्र्सना की है।

इन दिनों केरल में एक और चलन देखने में आया है। वाहनों, आटो रिक्शा आदि पर धार्मिक प्रवृत्ति के चालक “ॐ”, “जय गणेश”, “जय काली मां”, “जय भवानी” आदि जयघोष लिखवाते हैं और देवी-देवताओं के चित्र भी लगाते हैं। लेकिन केरल में इन चीजों से कुछ लोगों को चिढ़ होने लगी है और उनकी पहुंच इतनी है कि ऐसे वाहन चालकों को ये सब हिन्दू धार्मिक जयघोष अपने वाहनों से मिटाने की चेतावनियां दिलवाई जा रही हैं। इतना ही नहीं तो राष्ट्रभक्ति दर्शाते नारे भी लिखवाने वर्जित हैं। तिरुअनंतपुरम के कई आटो रिक्शा चालकों को यातायात पुलिस धमका चुकी है। किसी “ह्रूमन राइट ला नेटवर्क” संस्था की शिकायत पर तिरुअनंतपुरम परिक्षेत्र के यातायात निरीक्षक मोहनन नायर ने एक आटो चालक अनिल कुमार को थाने में बुलाकर उसके वाहन पर लिखे नारों “हिन्दू उन्नारन्नल, देशम् उन्नारन्नू” (हिन्दू जगे, देश जगेगा), “संस्कृतातिल संसारिक्कू, संस्कारा संबनरक्कू” (संस्कृत बोलें, संस्कृतिनिष्ठ बनें) को मिटाने का आदेश दिया। अनिल कुमार संस्कृत भारती से जुड़ा है। यही केरल है जहां कुरान और बाइबिल की बातें दीवारों पर लिखी मिलती हैं और मतान्तरण को उकसाया जाता है। हिन्दू आश्चर्यचकित हैं कि यही हाल रहा तो आगे चलकर क्या उन्हें माथे पर चंदन तिलक लगाने और महिलाओं को मंगलसूत्र पहने से रोका जाएगा?

जम्मू-कश्मीर में पुलिस: जिहादियों के साथ, जिहादियों के लिए?

जम्मू-कश्मीर पुलिस पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि कुछ पुलिस वाले छुपे तौर पर घाटी में सक्रिय आतंकवादियों की मदद करते हैं। लेकिन ऐसी खबर जानबूझकर दबायी जाती रही। किंतु गत दिनों की कुछ घटनाओं ने इस सच्चाई को सामने ला खड़ा किया है। 2 अगस्त को जम्मू क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक डा. शीष पाल वैद ने बताया कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के 100 कांस्टेबलों और हवलदारों को आतंकवादी संगठनों, खासकर लश्करे तोयबा और हिज्बुल मुजाहिद्दीन से संबंध रखने के संदेह में निगरानी सूची में डाल दिया गया है। इनमें से 50 को, जिनमें ज्यादातर कांस्टेबल हैं, आतंकवाद प्रभावित जिलों से हटाकर दूसरी जगह भेज दिया गया है। ऐसी ही एक घटना जुलाई माह में भी सामने आई थी। उस समय भी डा. शीष पाल वैद के आदेश पर सेना के तीन जवान और राज्य पुलिस के पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया था। उन पर भी लश्करे तोयबा से संबंध रखने का आरोप था। हाल की घटना के बाद अब समूचे जम्मू क्षेत्र के कांस्टेबलों की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। उधर , आधिकारिक सूत्रों पर विश्वास करें तो निगरानी सूची में डाले गए हवलदार और कांस्टेबल स्तर के पुलिसकर्मियों की संख्या 100 से भी ज्यादा है। संदेह था कि आतंकवाद प्रभावित जिले डोडा और पुंछ में 50 कांस्टेबल आतंकवादियों के लिए काम कर रहे थे।

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