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हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष

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Oct 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Oct 2006 00:00:00

अपनी हिन्दी, सबकी हिन्दी

-डा. सतीश शर्मा

हिन्दी भाषा का प्रसार दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। विश्व की अनेक भाषाएं जहां भूमण्डलीकरण के दौर में लुप्तप्राय हो रही हैं, वहीं हिन्दी का निकट भविष्य उज्ज्वल रहने की प्रबल सम्भावनाएं हैं। विश्वभर में भाषाओं की सबसे विश्वस्त पुस्तक “एथेनेलाग” के ताजा संस्करण के अनुसार विश्व में कुल 6912 भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से भारत में मात्र 427 तथा सबसे अधिक भाषाएं 812 पापुआ न्यू गिनी नामक देश में बोली जाती हैं।

आज विश्व के कुल 203 देशों में से 180 देशों में हिन्दी की स्वरलहरियां देशी-विदेशी लोगों के बीच भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रति अपनत्व का भाव जगा रही हैं। पर भारतवासियों के लिए यह दुर्भाग्य का विषय है कि अभी तक दुनिया में दूसरे स्थान की अधिकारिणी हिन्दी-भाषा को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने का गौरव हासिल नहीं हुआ है।

हिन्दी और संयुक्त राष्ट्र संघ

वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ की 6 अधिकारिक भाषाएं हैं। अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश। राष्ट्र संघ की स्थापना के समय अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और चीनी ही इसकी अधिकारिक भाषाएं थीं। (ईयर बुक आफ दी यूनाइटेड नेशन, 1955, वॉल-49, न्यूयार्क) किसी भी भाषा को राष्ट्र संघ की भाषा बनने के लिए उसके आधे से अधिक सदस्य देशों के समर्थन की आवश्यकता होती है। इस समय राष्ट्र संघ के 191 देश सदस्य हैं। यानी हिन्दी भाषा को राष्ट्र संघ की भाषा बनने के लिए 96 देशों के समर्थन की आवश्यकता होगी। केन्द्रीय हिन्दी समिति में सर्वप्रथम 17 अगस्त, 1968 को बाबू गंगाशरण ने हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनवाने का विचार व्यक्त किया था। तब से लेकर आज तक हम 38 साल में मात्र 21 देशों का ही समर्थन प्राप्त कर पाए हैं।

सूरीनाम में 6 से 9 जून, 2003 तक आयोजित सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने हिन्दी को राष्ट्र संघ में स्थान दिलाने के लिए 100 करोड़ रुपए खर्च करने का आश्वासन दिया था। पर इससे आगे कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनने के लिए 100 करोड़ रुपए कोई सुविधा शुल्क नहीं है, बल्कि संघ के न्यूयार्क स्थित कार्यालयों में तीन वर्ष तक अनुवादकी, दुभाषियों की नियुक्ति, उनके वेतन, सभाकक्षों में अतिरिक्त चैनल लगवाने और संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी प्रकाशन, प्रसारण हिन्दी में जारी करने पर होने वाला अनुमानित खर्च है। यह खर्च संयुक्त राष्ट्र संघ स्वयं किसी भी भाषा के लिए वहन करने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि वर्तमान में संघ के कुल 191 सदस्य देशों में से 100 देश ही नियमित रूप से पूर्ण अंशदान दे रहे हैं। सदस्य देशों के पास लगभग 2.5 बिलियन अमरीकी डालर की राशि बकाया है। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र किसी नई भाषा पर होने वाला खर्च वहन नहीं कर सकता। अरबी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ में आसानी से इसलिए स्थान मिल गया, क्योंकि अरब देशों ने प्रारंभिक तीन वर्षों के खर्च का जिम्मा उठा लिया था।

हिन्दी की वर्तमान स्थिति

सन् 1998 से मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आंकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। 25 मई, 1999 को केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निदेशक प्रो. महावीर सरन जैन द्वारा “यूनेस्को” को भेजी गई रपट ने सिद्ध किया कि प्रयोक्ताओं की दृष्टि से विश्व में चीनी भाषा के बाद दूसरा स्थान हिन्दी भाषा का है। “एनकार्टा एनसाइक्लोपीडिया” के अनुसार चीनी भाषा के प्रयोक्ताओं की संख्या 83 करोड़ 60 लाख, हिन्दी भाषा प्रयोक्ताओं की संख्या 33 करोड़ 30 लाख, स्पेनिश 33 करोड़, 20 लाख, अंग्रेजी 32 करोड़ 20 लाख, अरबी 18 करोड़ 60 लाख, रूसी 17 करोड़ और फ्रांसीसी 7 करोड़ 20 लाख है।

विश्व की प्रमुख 10 भाषाएं

न्यूयार्क में भाषाओं के लिए किये गये ताजा अध्ययन “वाइटल साइन 2006-07″ द्वारा जारी रपट के अनुसार, विश्व में सबसे अधिक प्रयोग में आने वाली 8 भाषाएं अंग्रेजी, स्पेनिश, रूसी, अरबी, फ्रांस, पुर्तगाली, मलय और इण्डोनेशियन हैं। हिन्दी और बंगला विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली 10 भाषाओं में हैं। इस रपट ने हिन्दी को 9वां स्थान दिया है। इसके अनुसार विश्व में हिन्दी बोलने वालों की संख्या 49.6 करोड़ और बंगला बोलने वालों की संख्या 21.5 करोड़ है।” (अमर उजाला 18 जुलाई, 2005)

विश्व के प्रमुख देशों में हिन्दी

आज भारत के अतिरिक्त विश्वभर के लगभग 120 विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों में हिन्दी भाषा का पठन-पाठन और शोध कार्य हो रहे हैं। इनमें से कुछ का ब्यौरा इस प्रकार है-

चीन

चीन में हिन्दी शिक्षण की शुरुआत सन् 1942 में खुनमिड़ के “आंरियंटल स्कूल आफ लैंग्वेजेज एण्ड लिटरेचर” में दो वर्षीय पाठयक्रम से हुई थी। अब यहां सन् 1945 से हिन्दी संस्थान छुड़-छुड़ नामक स्थान पर चल रहा है। पेइचिंग विश्वविद्यालय में सन् 65 तक विधिवत हिन्दी का पठन-पाठन चला। सन् 1966 में चीन में महाक्रान्ति के दौरान कालेजों में ताले ठोंक दिए गए। सन् 71 पेइचिंग विश्वविद्यालय में पुन: हिन्दी का पठन-पाठन शुरू हुआ। आजकल वहां बी.ए., एम.ए. तथा पीएच.डी. की उपाधि के लिए हिन्दी का पठन-पाठन जारी है। इस विश्वविद्यालय में संसार के कई देशों के विद्यार्थी हिन्दी पढ़ने आते हैं। “रामचरितमानस”, प्रेमचन्द और वृन्दावनलाल वर्मा सहित अनेक लेखकों के साहित्य का चीनी अनुवाद यहां काफी लोकप्रिय हुआ है।

त्रिनीदाद

त्रिनिदाद में “हिन्दी निधि” नाम की संस्था, जो 30 अप्रैल 1986 में स्थापित की गई थी, हिन्दी के प्रचार-प्रसार में भरपूर योगदान दे रही है। सन् 1992 में त्रिनिदाद में प्रथम हिन्दी सम्मेलन तथा वर्ष 96 में पांचवे हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया। “हिन्दी निधि” रेडियो पर हिन्दी शिक्षण का कार्यक्रम (वर्ष 93 से 97 तक) भी प्रस्तुत कर चुकी है। वहां के वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय में हिन्दी के पठन-पाठन की व्यवस्था है। सन् 1974 में वहां से “जीवन ज्योति” नाम की पहली हिन्दी मासिक पत्रिका निकली, जो अब त्रैमासिक हो गई है। वहां 400 मंदिर हैं, जिनमें हिन्दी की कक्षाएं लगती हैं। शिक्षण कार्य मंदिरों के पंडित करते हैं।

नार्वे

नार्वे के ओसलो विश्वविद्यालय में हिन्दी का पठन-पाठन होता है। सन् 1993 में देश में हुई बजट कटौती का भार हिन्दी पर भी पड़ा जिसके परिणामस्वरूप वहां के विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली हिन्दी की शिक्षा बन्द हो गई। अब हिन्दी यहां मात्र सहयोगी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है।

फिनलैंड

फिनलैंड में पिछले 30 वर्षों से हेलासिंकी विश्वविद्यालय में एशियाई अफ्रीकी संस्थान में संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी भाषा की पढ़ाई होती है। यहां बी.ए., एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधियों के लिए हिन्दी का पठन-पाठन होता है। प्रेमचन्द के गोदान का फिन्निश भाषा में अनुवाद हुआ है।

हंगरी

हंगरी के बुड़ापैश्त के “ओल्पीश लोरान्द” विश्वविद्यालय में हिन्दी व संस्कृत पढ़ाई जाती है। यहां हिन्दी पढ़ने के लिए उन्हीं छात्रों को प्रवेश दिया जाता है, जो पहले वर्ष में अधिक अंक प्राप्त करते हैं।

बेल्जियम

बेल्जियम के गेंट विश्वविद्यालय में विगत 119 वर्षों से संस्कृत का विधिवत अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। जो केन्द्र संस्कृत के लिए आरम्भ किया गया था, वही बाद में भारत विद्या-विभाग के रूप में बदल दिया गया। सन् 1988 में गेंट विश्वविद्यालय के भारत विद्या विभाग में हिन्दी को भी स्थान दिया गया। गेंट में ओरियंथाल नामक एक भाषा शिक्षण संस्थान भी है, जहां अरबी, तुर्की, फारसी के साथ हिन्दी का भी कामचलाऊ ज्ञान कराया जाता है।

अमरीका

अमरीका में हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था उत्तम नहीं है। वैसे उत्तरी अमरीका में प्रवासी भारतीयों में सबसे अधिक संख्या हिन्दी-भाषियों की है। फिर भी उनकी पत्रिकाओं में किसी की भी ग्राहक संख्या 300-400 से अधिक नहीं है। यहां भारतीय साहित्य के प्रति कम, हिन्दी फिल्मों के प्रति अधिक अनुराग है।

जापान

जापान में टोक्यो विदेशी भाषा विश्वविद्यालय तथा ओसाका विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् हिन्दी का पठन-पाठन शुरू हुआ। पश्चिमी जापान के एक गैरसरकारी विश्वविद्यालय “ओत्तेमेन गाकूइन” में भी हिन्दी पढ़ाई जाती है। रेडियो जापान से हिन्दी में भी समाचार प्रसारण की व्यवस्था है। यहां सन् 1980 में “ज्वालामुखी” नाम की एक हिन्दी प्रत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ था। इसमें लिखने वाले सभी जापानी लेखक थे। वर्तमान में इसका प्रकाशन बन्द पड़ा है। प्रेमचन्द, यशपाल, जैनेन्द्र कुमार, मोहन राकेश तथा हजारीप्रसाद द्विवेदी सरीखे साहित्यकारों के साहित्य का जापानी भाषा में पर्याप्त अनुवाद हुआ है।

रूस

24 मई, 1999 को भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री श्री जसवंत सिंह ने रूसियों के लिए “इंटरनेट” पर हिन्दी सिखाने के कार्य का उद्घाटन किया। मास्को के हिन्दी विद्यालय में कक्षा 5 से ऊपर के सैकड़ों विद्यार्थी हिन्दी सीखते हैं। भारत सरकार का एक केन्द्रीय विद्यालय भी अपने ढंग से हिन्दी पढ़ाने का दायित्व निभा रहा है। मास्को के लोक मैंत्री विश्वविद्यालय, सेंट पीटर्स वर्ग के सेंट पीटर्स वर्ग विश्वविद्यालय और व्लादिवोस्तोक के सुदूर पूर्व विश्वविद्यालय में हिन्दी के नियमित पाठक्रम हैं। यहां हिन्दी में अनुसंधान की व्यवस्था भी है।

उज्बेकिस्तान

उज्बेकिस्तान में हिन्दी-भाषा पाठशालाओं तथा उच्च शिक्षा संस्थाओं में भी पढ़ाई जाती है। हिन्दी की पढ़ाई विद्यालयों में दूसरी कक्षा से शुरू होती है। सन् 74 से यहां हिन्दी पठन-पाठन शुरू हुआ। यहां बी.ए., एम.ए., एम.फिल. तथा पीएच. डी. की पढ़ाई की व्यवस्था है। सन् 1960 से यहां हिन्दी पाठक्रम की पुस्तकें प्रकाशित होने लगीं। पाठपुस्तकों में महाभारत, रामायण, पंचतंत्र कालिदास का नाटक “शकुन्तला” जैसी रचनाओं के अंश शामिल हैं। हिन्दी का प्रयोग ताशकन्द रेडियो में भी होता है। प्राच्यविद्या इंस्टीटूट में दो साल का एक विशेष पाठक्रम भी है।

मारीशस

यहां सन् 1909 में हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत हुई। 12 मार्च, 1968 को मारीशस स्वतंत्र हुआ तो हिन्दी को वैकल्पिक भाषा का दर्जा दिया गया। आजकल यहां से हिन्दी में “जनवाणी” (साप्ताहिक) और “आक्रोश” (मासिक) पत्र निकल रहे हैं। इनके अलावा यहां से “रिमझिम” “पंकज” और इन्द्रधनुष जैसी पत्रिकाएं भी प्रकाशित हो रही हैं। यहां हिन्दी बोलने वालों को आर्य समाजी कहते हैं। मारीशस वि.वि. में बी.ए.,एम.ए. और पीएच.डी. के लिए अध्ययन कराया जाता है। स्वैच्छिक हिन्दी संस्थाओं में हिन्दी प्रचारिणी सभा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन आदि भी प्रथमा, मध्यमा विशारद और साहित्य रत्न की परीक्षाओं का आयोजन करती है। “रेडिया सीलोन” पर हिन्दी में कार्यक्रमों का प्रसारण होता है।

फिजी

फिजी का भारतीय समुदाय हिन्दी में भावाभिव्यक्ति चाहता है। हिन्दी में कहानी-कविता लेखन का दौर यहां जारी है। किन्तु हिन्दी में उच्च अध्ययन की व्यवस्था नहीं है। वहां की पत्र-पत्रिकाओं और रेडियो फिजी पर हिन्दी में कविता, गीत, नाटक, कहानी आदि का प्रसारण होता है।

इटली

इटली के रोम विश्वविद्यालय के “क्लासीकल स्टडीज” विभाग में उच्च शिक्षा के रूप में संस्कृत और हिन्दी के अध्ययन की सुविधा है।

इसके अलावा वेनिस में एक महिला प्रो. मारियोला भाषा और साहित्य पढ़ाती हैं। लगभग 100 विद्यार्थी प्रतिवर्ष हिन्दी साहित्य की शिक्षा पाते हैं। इटली के कुल 20 बड़े विश्वविद्यालयों में से 5में हिन्दी सिखाने की व्यवस्था है।

इन देशों के अलावा दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम तथा अन्य करेबियन देशों में हिन्दी साहित्य प्रेमियों की संख्या बढ़ रही है। इन देशों में हिन्दी का पठन-पाठन व प्रसारण हो रहा है। इसके अतिरिक्त जिन देशों में हिन्दी का पठन-पाठन नहीं हो रहा है वहां भी बोल-चाल या बाजार की भाषा के रूप में हिन्दी अपनी जड़ें मजबूत करती जा रही है। आंकड़ों के अनुसार विश्व के 180 देशों में हिन्दी भाषा का प्रयोग हो रहा है।

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