|
…संजय दत्त शस्त्र कानून के अंतर्गत दोषी-मुम्बई प्रतिनिधिफिल्म अभिनेता संजय दत्त के विरुद्ध 1993 के मुम्बई बम विस्फोट प्रकरण में विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मामले चल रहे थे। मुम्बई की विशेष टाडा अदालत में बम विस्फोट के विभिन्न आरोपियों पर अभियोग निर्धारित किए थे। अब तक अदालत ने इनमें से कई आरोपियों पर विभिन्न धाराओं के अन्तर्गत सजा तय कर दी है और अनेक सजा से बरी हो चुके हैं। इसी क्रम में गत 28 नवम्बर को संजय दत्त पर लगे अभियोगों के अंतर्गत सजा सुनाई जानी थी। करीब 3 घंटे की सुनवाई के बाद अदालत ने संजय दत्त को “आतंकवादी” मानने से इनकार करते हुए शस्त्र कानून की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत दोषी पाया। 47 वर्षीय संजय दत्त पर शस्त्र कानून की धाराओं 3 और 7 तथा इसी अधिनियम की उपधाराओं 25 (1ए) और (1बी) के अंतर्गत आरोप निर्धारित किए गए हैं। कानून विशेषज्ञों के अनुसार धारा 3 में पांच वर्ष और धारा 7 में दस वर्ष अधिकतम सजा का प्रावधान है। संजय दत्त की विशेष अपील के बाद अदालत ने उनकी जमानत की अवधि कुछ समय के लिए बढ़ाते हुए 19 दिसम्बर के बाद उन्हें प्रस्तुत होने को कहा है।टाडा आरोपों से बरी होने और केवल शस्त्र कानून के अंतर्गत दोषी पाए जाने के बाद मीडिया, खासकर अंग्रेजी समाचार पत्र और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने बड़े-बड़े कालम सहित संजय दत्त के परिजनों और दोस्तों के विशेष साक्षात्कार प्रसारित करने शुरू कर दिए जिनमें लगभग सभी ने एक स्वर में कहा कि “संजय दत्त को “आतंकवादी” के लेबल से मुक्त करने पर उन्हें सन्तोष हुआ है। संजय दत्त बहुत गम्भीर और सीधे-सादे इनसान हैं।” संजय के मित्रों ने तो यहां तक कहा कि “अगर संजू से एक “छोटी सी” गलती हो भी गई थी तो उसे माफ कर देना चाहिए।”इस पूरे प्रकरण में अदालत में जो कार्यवाही हुई वह सबके सामने आई, लेकिन फिर भी ऐसे कई सवाल लोगों के मन में घुमड़ रहे हैं जो संजय दत्त के बारे में कुछ नकारात्मक तस्वीर ही पेश करते हैं। यह सही है कि अदालत ने संजय दत्त को “आतंकवादी” मानने से इनकार कर दिया और केवल प्रतिबंधित क्षेत्र में हथियार रखने जैसे तुलनात्मक दृष्टि से मामूली आरोप में दोषी ठहराया है। लेकिन इस आरोप में भी उसे जमानत दे दी गई। कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं और पुलिस अधिकारियों को इस पर आश्चर्य है और उनका यह आश्चर्य इसलिए है क्योंकि इस मुम्बई बम विस्फोट प्रकरण में अब तक जितने भी आरोपियों पर दोष सिद्ध हो चुके हैं उन्हें इस तरह से जमानत नहीं दी गई है। संजय दत्त द्वारा अदालत में जो दलील दी गई वह भी सरकारी वकील द्वारा बेबुनियाद कही गई थी। संजय दत्त और उनके वकील ने अदालत को बताया था कि संजय की 18 वर्षीय पुत्री अमरीका में पढ़ रही है जिसका पूरा खर्च और देखरेख की जिम्मेदारी अकेले संजय पर है। संजय की अनेक फिल्में, जिन पर सैकड़ों करोड़ रुपए लगे हुए हैं, विभिन्न स्तरों पर रूकी हुई हैं। इन सब बातों के कारण, संजय के वकील ने कुछ समय मांगा जो उन्हें दे दिया गया।इस प्रकरण में एक बहुत गंभीर बात यह भी है कि जो शस्त्र, संजय के अनुसार, उसने अपनी आत्मरक्षा के लिए अपने पास रखे थे वह कोई आम शस्त्र नहीं थे बल्कि ए.के.-56 राइफल थी। 1993 में बम विस्फोटों के समय भारत में वह राइफल पुलिस विभाग तक के लिए दुर्लभ थी। अत: संजय के पास वह राइफल निश्चित रूप से किन्हीं संदिग्ध माध्यमों से ही पहुंची होगी। उल्लेखनीय है कि 29 नवम्बर को सुनवाई के बाद टाडा अदालत ने रूसी मुल्ला को संजय की ही तरह शस्त्र कानून के अंतर्गत दोषी ठहराया तथा समीर हिंगोरा और बाबा चव्हाण को टाडा के तहत दोषी करार दिया। बाबा चव्हाण के पास ए.के.-56 राइफल तथा दूसरे हथियार थे और उसने ही, सी.बी.आई. के अनुसार, संजय को ए.के.-56 राइफल दी थी। इस तर्क में भी कोई दम नहीं है कि फिल्म अभिनेताओं को आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने पड़ते हैं और वह भी ए.के.-56 जैसे हथियार! 1993 में जब मुम्बई विस्फोटों से दहली हुई थी उस वक्त संजय को आत्मरक्षा पर संकट अचानक कैसे दिखने लगा? क्या आत्मरक्षा के लिए संजय को प्रतिबंधित हथियार ही रखने आवश्यक हो गए थे?एक सवाल और। 1993 में संजय दत्त मारीशस में किसी फिल्म के सिलसिले में गये हुए थे और वहां उन्हें किसी सूत्र से पता चला था कि पुलिस को उनके घर में रखे प्रतिबंधित हथियारों के बारे में खबर लग चुकी है। बताते हैं कि तब उन्होंने मुम्बई में अपने कुछ मित्रों को फोन करके इस सम्बंध में उपचारात्मक कदम उठाने को कहा था। ये वही “मित्र” थे जिन्हें टाडा अदालत ने टाडा के तहत दोषी पाया है।13
टिप्पणियाँ