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अर्जुन के इशारे पर “पंजाब” ने दिया नोटिसकाशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति श्री पंजाब सिंह अभी कल तक “स्वयंसेवक” थे। अब अचानक रा.स्व.संघ उन्हें “सांप्रदायिक” लगने लगा है। गत 11 नवम्बर को वाराणसी में विश्व संवाद केन्द्र पर एक बौद्धिक संगोष्ठी आयोजित हुई थी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पूज्य महामना मालवीय के समय से ही रा.स्व.संघ की गतिविधियां काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में चल रही हैं। क्या विद्यार्थी, क्या अध्यापक और कर्मचारी, सभी संघ शाखाओं में निर्विघ्न भाग लेते रहे हैं। लेकिन पंजाब सिंह को अचानक संप्रग सरकार के प्रति अपनी “कर्तव्य निष्ठा” ऐसी याद आई कि उन्होंने बौद्धिक-संगोष्ठी में भाग लेने वाले विश्वविद्यालय के सात वरिष्ठ अध्यापकों को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए कहा कि उन शिक्षकों ने विश्वविद्यालय नियम एवं केन्द्रीय कर्मचारी सेवा आचरण संहिता का उल्लंघन किया है। यदि उन्होंने 15 दिन के भीतर इस सन्दर्भ में स्पष्टीकरण नहीं दिया तो उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।विश्वविद्यालय प्रशासन के इस नोटिस के विरुद्ध स्वयंसेवकों व सामाजिक संगठनों में स्वाभाविक ही आक्रोश उबल पड़ा। काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय प्रशासन के जनसंपर्क अधिकारी डा. विश्वनाथ पाण्डेय के वक्तव्य ने इसे और भड़का दिया। डा. पाण्डेय ने कहा कि कुलपति विश्वविद्यालय में काम करने वाले व्यक्ति को जब चाहें नोटिस दे सकते हैं। विश्वविद्यालय के कर्मचारी, शिक्षकों का विश्वविद्यालय के प्रति 24 घंटे दायित्व बनता है, वे मनमाने ढंग से विश्वविद्यालय से बाहर जाकर कोई भी गतिविधि नहीं चला सकते।गत 25-26 नवम्बर को काशी में आयोजित धर्म संस्कृति संगम के आयोजन के उपलक्ष्य में रा.स्व.संघ के पू. सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन सहित कई महत्वपूर्ण लोग काशी में ही थे। श्री सुदर्शन ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमारे शिक्षक नोटिस का जवाब देने में सक्षम हैं। पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय अर्जुन सिंह की जागीर नहीं है, जिनके दवाब में कुलपति ने यह कदम उठाया है। डा. जोशी ने कहा कि अब तो जनता ही इन तत्वों से निबटेगी। उधर विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल ने कहा कि कुलपति नोटिस प्रकरण को मजाक में न लें। हमें अपने विरोधियों की चुनौती का जवाब देना आता है।काशी के बौद्धिक जगत ने भी नोटिस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। जहां अ.भा. शैक्षिक महासंघ के नेतृत्व में अध्यापक धरनों पर बैठे, वहीं सैकड़ों आक्रोशित लोगों ने कुलपति की तानाशाही के खिलाफ लंका चौराहे पर जमकर प्रदर्शन किया। काशी के बुद्धिजीवियों ने कहा कि कुलपति का निर्णय संविधान एवं विश्वविद्यालय के संस्थापक की भावना के विरुद्ध है। केन्द्र सरकार द्वारा इस सन्दर्भ में निर्देशित आचार संहिता का ही अगर कुलपति को अक्षरश: पालन करना है तो वह तत्काल प्रो. दीपक मलिक, प्रो. अवधेश प्रधान. डा. विश्वनाथ पाण्डेय सहित उन दर्जनों प्राध्यापकों को नोटिस जारी करें जो लगातार कांग्रेस एवं वामपंथी पार्टियों के कार्यक्रमों में सार्वजनिक रूप से भाग लेते रहे हैं। प्रो. मलिक तो चुनाव भी लड़ चुके हैं। प्रतिनिधि12
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