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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले

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Oct 12, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Oct 2006 00:00:00

वर्ष 10, अंक 41, सं. 2014 वि., 29 अप्रैल, 1957, मूल्य 20 नए पैसे

सम्पादक : तिलक सिंह परमार

प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म प्रकाशन लि.,

गौतमबुद्ध मार्ग, लखनऊ (उ.प्र.)

तस्कर व्यापार से राष्ट्र को खतरा

5 करोड़ रुपए की भारतीय मुद्रा प्रतिमास विदेशों में

स्वर्ण के अवैध व्यापार को अविलम्ब रोके जाने की आवश्यकता

(निज प्रतिनिधि द्वारा)

अमृतसर: पाकिस्तान द्वारा भारत के आर्थिक ढांचे को अस्त-व्यस्त करने के लिए अवैध व्यापार का एक षड्यंत्र चलाया जा रहा है। इसमें कुछ अन्तरराष्ट्रीय तत्व भी सम्मिलित हैं। भरसक कोशिश करने के पश्चात भी भारत सरकार के अधिकारी इस षड्यंत्र को निष्क्रिय करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं। भारत सरकार इस स्थिति से बहुत चिंतित हो उठी है। सीमा- स्थित पुलिस के निकट सूत्रों के अनुसार प्रतिदिन 17000 तोला सोना अवैध रूप में भारत आता है जिसके फलस्वरूप 5 करोड़ रुपए की भारतीय मुद्रा प्रतिमाह विदेशों को चली जाती है। जानकार सूत्रों का मत है कि यदि इस अवैध व्यापार को रोका न जा सका तो द्वितीय पंचवर्षीय योजना काल में राष्ट्र को 180 करोड़ रुपए की मुल्यवान मुद्रा ही हानि उठानी पड़ेगी। समाचार है कि कुछ दिन पूर्व श्री कार से मुम्बई आते हुए बोहरा मुसलमानों के धर्मगुरु मुल्ला साहब, हिजहोलीनेस ताहिर सैफुद्दीन साहब के दल ने एक सदस्य को 5 लाख रुपए के हीरे जवाहरात अवैध रूप से लगने का प्रयास करने के अपराध में कोलम्बो पुलिस ने दंडित किया था।

50 वर्ष पूर्व से ही मई मास की 10 तारीख को 1857 के स्वातंत्र्य-संग्राम का स्मृति-दिवसोत्सव मनाने की परम्परा चली आ रही है। और वह भी अंग्रेजों के द्वारा किए गए आह्वान की तेजस्वी प्रतिक्रिया के फलस्वरुप। तब से अब तक वह एक रीति से अखण्ड चली आ रही है। इसलिए……….

“57 स्वातंत्र्य-संग्राम की शताब्दी

-स्वातंत्र्य वीर सावरकर

अंग्रेजों की परतंत्रता से भारत को मुक्त कराने के लिए जो प्रथम स्वातंत्र्य-संग्राम लड़ा गया, उसका प्रारम्भ सन् 1857 के मई मास की 10वीं तारीख से हुआ। आगामी 10 मई को हमें 100 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। 10 मई 1857 के दिन भारतीय शस्त्रसज्जित क्रांतिकारियों ने भारतीय स्वातंत्र्य के प्रतीक जिस ध्वज को लहराया गया, वह आज स्वराष्ट्र के पराक्रम स्वरूप विजयी हो चुका है। ब्रिटिश सत्ता को समाप्त करके आज उसने स्वाधीनता प्राप्त कर ली है। अर्थात् आगामी 10 मई को हमे न केवल प्रथम स्वातंत्र्य युद्ध की शताब्दी मनाने का ही सौभाग्य प्राप्त होगा, अपितु उसकी विजय शताब्दी मनाने का भी अहोभाग्य प्राप्त होगा। प्रकाशित समाचार से ज्ञात हुआ है कि भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गये इस प्रथम स्वातंत्र्य-संग्राम की विजय शताब्दी मनाने का निश्चय वर्तमान भारतीय शासकों द्वारा किया गया है। यदि वास्तव में भारत का शासक वर्ग स्वातंत्र्य-संग्राम के शताब्दी-समारोह को इतने भव्य रुप में मनाने को दृढ़ संकल्प है कि उसका जय-जय निनाद संसार के कोने-कोने में व्याप्त हो जाय तो भारत का प्रत्येक स्वराष्ट्राभिमानी नागरिक उसका हार्दिक अभिनन्दन करेगा।

10 मई को ही शताब्दी मनाई जाए

परंतु किसी भी कारण से हो, प्रथम स्वातंत्र्य-संग्राम के शताब्दी-समारोह का आयोजन आज तक की परम्परा के अनुरुप 10 मई को न किया जाकर भारत सरकार द्वारा 15 अगस्त को किया जा रहा है। स्मृति-दिनांक बदलने में केवल सुविधा-असुविधा का विचार नहीं दीखता, वरन् उसके पीछे कुछ पक्षपातपूर्ण कारण भी अनुभव होते हैं।

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