गुजरात का धर्म स्वातंत्र्य विधेयक
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गुजरात का धर्म स्वातंत्र्य विधेयक

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Jan 10, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Jan 2006 00:00:00

मतांतरण पर लगेगी लगामजब से पोप जान पाल ने पूरे एशिया को ईसाई पंथ में परिवर्तित करने का आह्वान किया तब से ईसाई मिशनरियों ने भारत में मतांतरण की अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। मध्य गुजरात, डांग, साबरकांठा आदि जिलों में ईसाई मिशनरी सेवा के नाम पर मतांतरण में लगे थे। मगर 2003 में गुजरात में नरेन्द्र मोदी सरकार ने गुजरात विधानसभा में “गुजरात धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम-2003” पारित कर मतांतरण करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाया था। विधेयक में व्यवस्था है कि अगर कोई छल-कपट, धमकी या लोभ- लालच से मतांतरण करता पाया गया तो उसके खिलाफ सजा का प्रावधान है। इस विधेयक के कारण गुजरात में ईसाई मिशनरियों पर प्रभावी रोक लगी थी। मगर उस विधेयक में कुछ सुधार की आवश्यकता महसूस करते हुए सरकार ने गत 19 सितम्बर को इसमें सुधार कर पुन: गुजरात विधानसभा में पारित किया। इस नये सुधार में मतान्तरण की विस्तृत व्याख्या की गई है। गुजरात धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम-2006 की धारा-2 इस प्रकार है- “धर्म परिवर्तन कराना अर्थात एक व्यक्ति को एक धर्म का त्याग कराकर दूसरा धर्म स्वीकारने पर मजबूर करना। धर्म परिवर्तन में एक व्यक्ति को किसी धर्म के एक पंथ का त्याग कराकर दूसरे पंथ को स्वीकार कराना उसमें शामिल नहीं होता।” इस अधिनियम में जैन और बौद्ध मतों को हिन्दू धर्म के पंथ माना गया है। शिया और सुन्नी मुस्लिम मत के तथा कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाई मत के पंथ माने गए हैं। एक ही धर्म में अंतरपंथ परिवर्तन को अधिनियम से बाहर रखा गया है। यानी गुजरात सरकार ने इस धर्म स्वातंत्र्य विधेयक में सुधार कर धर्म परिवर्तन और पंथ परिवर्तन को स्पष्ट रेखांकित किया है।विधेयक में इस सुधार का कांग्रेस ने जमकर विरोध किया। उधर राज्य के गृह राज्यमंत्री श्री अमित शाह ने कहा, “पोप ने मतान्तरण करने का खुलेआम आह्वान किया था, ऐसे में यह विधेयक लाना जरुरी था। राज्य के गरीब, अशिक्षित और भोले-भाले लोगों का कोई लोभ-लालच, धमकी, जबरन या छल-कपट से मत परिवर्तन कराता है, तो ऐसे लोगों की रक्षा करना राज्य सरकार का फर्ज बनता है। इसी दृष्टि से इस विधेयक में यह सुधार किया है। कांग्रेस धर्म स्वातंत्र्य विधेयक का विरोध क्यों कर रही है, यह समझना मुश्किल नहीं है। -किशोर मकवाणायह विधेयक छल-कपट के खिलाफ, संविधान के अनुरूप है-नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री, गुजरात-तरुण विजयनरेन्द्र मोदी में एक खास बात है, विनम्रता एवं वैचारिक मुद्दों पर असमझौतावादी रुख। इसी असमझौतावादी रुख के कारण उन्होंने जब 2003 में धर्मान्तरण विरोधी कानून पारित किया तो उस वजह से अमरीका के बुश प्रशासन में इतनी खलबली मची कि मोदी को अमरीकी वीसा नहीं दिया गया। मोदी को अमरीकी वीसा न दिया जाना और सेकुलर तालिबानों द्वारा मोदी को अपना निशाना नं. एक बनाना राष्ट्रीयता के सन्दर्भ में उनकी सफलता बताता है। उन्होंने धर्मान्तरण सम्बंधी विधेयक पारित किया 2003 में। उसको क्रियान्वित करने के लिए जो नियम बनाने थे उसी में तीन साल लग गए। नियम बने तो सेकुलर तालिबान फिर चिल्लाए- “यह गलत हुआ। यह तो सूरत बाढ़ राहत की विफलता से ध्यान बंटाने का काम है।”नरेन्द्र भाई से हमने बात की तो वे गोवा में थे। पश्चिम क्षेत्रीय मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में भाग ले रहे थे। उन्होंने वहीं से दूरभाष पर पाञ्चजन्य से बातचीत की। उनका कहना था कि धर्मान्तरण सम्बंधी विधेयक मूलत: संविधान की भावना के अनुरूप है। हालांकि 2003 में यह विधेयक पारित हो गया था। परन्तु सरकार इसके क्रियान्वयन हेतु इस प्रकार निर्दोष, कारगर एवं संविधान की मूल भावना के अनुरूप नियम बनाना चाहती थी ताकि वे किसी भी जांच में खरे उतर सकें और जो विधेयक की मूल भावना को लागू कर सकें। श्री मोदी ने कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी लोभ-लालच एवं छल-कपट द्वारा धर्मान्तरण पर रोक लगाने की अनुमति दी है।यह पूछे जाने पर कि इस सन्दर्भ में सेकुलर अखबार आप पर आरोप लगा रहे हैं कि आपने बौद्ध, सिख और जैन भी हिन्दू परम्परा के अन्तर्गत रखे हैं, श्री मोदी ने कहा- “मैंने जो भी किया है वह भारतीय संविधान की भावना के अनुरूप ही किया है। जो प्रावधान किए गए हैं वे इसलिए किए गए हैं कि ताकि भारतीय धर्मों की मूल परम्परा में पारस्परिक मतान्तरण बाधित न हो। भारत के संविधान और संविधान निर्माता डा. भीमराव अम्बेडकर ने भी भारत की मूल परम्परा की व्याख्या करते हुए बौद्ध, जैन, सिख और सनातनी हिन्दू सभी को एक ही भारतीय परम्परा का अंग माना है। डा. अम्बेडकर ने बौद्ध पंथ क्यों स्वीकार किया और वे ईसाई या मुसलमान क्यों नहीं हुए, इसका विवरण उन्होंने स्वयं लिखा है, हमने उसी भावना का आदर किया है।”16

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