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साभार- दैनिक जागरण, अमृतसरईसाई मिशनरियां हिन्दू धर्म की पीठ में छुरा घोंप रही हैं। मतान्तरण को और सुगम बनाने के लिए ईसाई मत प्रसारकों ने अब हिन्दू व सिखों की पूजा पद्धति को अपरोक्ष रूप से अपना लिया है। वह हिन्दू धर्म-संस्कृति से मिलते-जुलते रीति रिवाज अपनाकर गरीब हिन्दुओं को विभिन्न प्रकार के लालच देकर मतांतरण के लिए प्रेरित कर रहे हैं।चर्चों की पड़ताल पर यह बात सामने आई है कि उनमें अब पारंपरिक विचारों, पूजा पद्धतियों को किनारे कर दिया गया है। मिशनरियां हिन्दू-सिखों का मतांतरण कराने के लिए खुद को उन्हीं के धर्म-संस्कृति के अनुसार ढालकर, अपने काम को अंजाम दे रही है। ऐसा इसलिए भी है ताकि मतांतरित होने वाले को अचानक नई तब्दीलियों से उलझन न महसूस हो। मतांतरण का केन्द्र बने नए चर्चों का मौजूदा वास्तुशिल्प इस प्रकार का है कि यहां आने पर लोगों को पता ही नहीं चलता कि वे चर्च में है अथवा किसी सभागार में। इन स्थलों पर चर्च होने का अहसास लोगों को तभी होता है जब उन लोगों की नजर सलीब पर पड़ती है।इन स्थानों पर आने वाले श्रद्धालु प्रवेश करने से पहले जूते चप्पल उताकर बकायदा हाथ पैर धोते हैं व डोढ़ी पर मत्था टेकते हैं। सिर पर कपड़ा रखकर वहां मौजूद पास्टर अथवा फादर का “जय मसीह” कहकर अभिवादन करते हैं। प्रभु यीशू मसीह की महिमा का बखान करने के लिए बकायदा भजन कीर्तन भी होता है। पास्टर द्वारा किया जाने वाला प्रवचन भी क्षेत्रीय भाषाओं में ही हो रहा है। मन्नत पूरी होने पर भक्त प्रसाद के रूप में बाकायदा मिठाई चढ़ाते व बांटते हैं। पांथिक आयोजनों में होने वाले सहभोज को लंगर अथवा भंडारा जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता है। “यीशू मसीह की जय” आदि जयकारे भी लगाए जाते हैं।पड़ताल में यह बात भी सामने आई कि जो व्यक्ति चंगाई सभा में जाने और पास्टर अथवा फादर द्वारा उसकी चंगाई की दुआ किए जाने पर जब ठीक नहीं होता तो प्रचारकों द्वारा उनसे कहा जाता है कि “जब तक तुम प्रभु यीशू में नहीं समाओगे, तब तक बीमारी का शैतान तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगा।”साभार- दैनिक जागरण, अमृतसर16
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