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हुर्रियत के साथ कश्मीरी पण्डित!
हुर्रियत कांफ्रेंस और कश्मीरी पण्डित समुदाय के कुछ नेताओं के बीच पिछले दिनों समझौता हुआ। हुर्रियत नेताओं ने विस्थापित कश्मीरी पण्डितों के पुनर्वास में पूरी सहायता करने का वचन देते हुए कहा है कि कश्मीरी पण्डितों के बिना कश्मीर की “आजादी” का आन्दोलन अधूरा है। हाल ही में हुए इस मिलन ने जहां राष्ट्रवादी शक्तियों को चौंकाया है, वहीं इस नए समीकरण से भारत सरकार भी भौंचक है। विस्थापित कश्मीरी पण्डितों के संगठन पनुन कश्मीर के नेताओं ने तो बाकायदा इस मिलन को षडन्त्र करार दिया है। इन नेताओं का मानना है कि घाटी में हिन्दुओं के नरसंहार और विस्थापन के लिए जो जिम्मेदार हैं, आज वही कश्मीरी पण्डितों के साथ न्याय करने की बात कर रहे हैं। पण्डित समुदाय से जुड़े कुछ नेता किस तरह हुर्रियत के झांसे में आ गए, वह समझ से परे है। उल्लेखनीय है कि घाटी में एक तरफ विस्थापित कश्मीरी पण्डितों के पुनर्वसन का कार्य सरकार द्वारा कुछ मात्रा में शुरु किया गया है। दूसरी तरफ कश्मीरी पण्डितों का एक वर्ग अलग “होमलैण्ड” की मांग पर अड़ा है। उनका स्पष्ट मानना है कि हमें घाटी से बेदखल करने वाले तत्व आज भी घाटी में हावी हैं अतएव अलग “होम लैण्ड” के अलावा विस्थापितों की समस्या का कोई अन्य समाधान नहीं है। सूत्रों के अनुसार, हुर्रियत कान्फ्रेंस अपने ऊपर लगे कश्मीरी पण्डित विरोधी तमगे को हटाने के लिए बेचैन था। इसके पीछे का कारण भी स्पष्ट है। कश्मीर की “आजादी” के सवाल पर विश्व समुदाय में “लाबिंग” में कश्मीरी पण्डितों के विस्थापन का मुद्दा एक बड़ा अवरोध बना हुआ था। वह अवरोध पण्डितों को साथ लेकर हुर्रियत ने दूर कर दिया है। बहरहाल, हुर्रियत से जुड़े कश्मीरी पण्डित समुदाय के नेताओं ने भी साफ कर दिया है कि उन्हें कश्मीर में मुस्लिमों के साथ ही रहना है। उनका कहना है, भारत के राजनीतिक दल तो उन्हें न्याय देने से रहे, हुर्रियत के साथ जाने में क्या बुराई है।
कांग्रेस का सरदर्द
असमय गाया जाने वाला राग दर्द भी पैदा कर सकता है, पंजाब (खरड़) के कांग्रेसी विधायक बीर दविंदर सिंह को शायद यह बात नहीं मालूम थी। तभी तो उन्होंने चुनावों के मौके पर सरकारी कर्मचारियों को नाराज कर कांग्रेस में ऐसी सरदर्दी पैदा कर दी कि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से लेकर पार्टी प्रधान शमशेर सिंह दूलो तक तिलमिला गए हैं। शिकायत है कि सरकारी कार्यालयों में कर्मचारी कम हैं और वे भी कभी-कभार ही दिखायी देते हैं। तब उन्होंने छापामारी अभियान शुरू कर दिया और कई अधिकारियों, कर्मचारियों को ड्यूटी से गायब पाया। विधायक की इस कार्रवाई से राज्य के कर्मचारियों में रोष फैल गया है। मुख्यमंत्री को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने अनुपस्थित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय बीर दविंदर को ही काबू में करने को कहा। उल्लेखनीय है कि कैप्टन सरकार के सत्ता संभालने के बाद कांग्रेसी विधायकों व मंत्रियों ने सरकारी संस्थानों में ऐसी छापामारी की कि जनता में विश्वास पैदा हो जाए। कांग्रेसी कह रहे हैं कि बीर जी भी मौके की नजाकत को समझते नहीं हैं। चुनाव निकट हैं। ऐसे में सरकारी मशीनरी से दुश्मनी अच्छी नहीं है। चुनाव के समय यही लोग 12 को 21 और 21 को 12 बनाकर देश के कर्णधारों का फैसला करते हैं। कांग्रेसियों ने बीर को कह दिया है कि सरकारें तो आती-जाती रहती हैं, स्थाई सरकार तो अफसरशाही ही है। सत्ता जाने के बाद अगर किसी अधिकारी ने उनकी पेंशन रोक दी तो पूरी पार्टी भी लगकर बहाल नहीं करा पाएगी।
जम्मू-कश्मीर में एक भी मदरसा नहीं!
भारत-नेपाल और भारत-बंगलादेश की सीमाओं पर नित्य बन रहे मदरसों को देखकर लोगों को लगता होगा कि जम्मू-कश्मीर जैसे मुस्लिम बहुल राज्य में हजारों मदरसे होंगे। किन्तु सरकारी आंकड़ों के अनुसार उनकी यह धारणा गलत है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने एक रपट जारी की है। इस रपट के अनुसार पूरे देश में 27, 518 मदरसे संचालित हो रहे हैं। इनमें से सबसे अधिक 6 हजार मदरसे केवल मध्य प्रदेश में हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर में एक भी मदरसा नहीं है। किन्तु राज्य वक्फ बोर्ड 86 निजी मदरसों का संचालन कर रहा है। है न यह अजीबोगरीब रपट।
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