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अंक-सन्दर्भ, 4 दिसम्बर, 2005
बिहार का सन्देश समझें!!
पञ्चांग
संवत् 2062 वि.
वार
ई. सन् 2005
पौष शुक्ल 1
रवि
1 जनवरी, 06
,, ,, 3
सोम
2 ,,
,, ,, 4
मंगल
3 ,,
,, ,, 5
बुध
4 ,,
,, ,, 6
गुरु
5 ,,
,, ,, 7
शुक्र
6 ,,
,, ,, 8
शनि
7 ,,
(पंचक समाप्त)
आवरण कथा “बिहार में नया सवेरा” से स्पष्ट हो जाता है कि राजद के कुशासन से बिहार के लोग त्रस्त थे। लोगों ने बहुत आस के साथ भाजपा-जद(यू) गठबंधन को बिहार की कमान सौंपी है। सचमुच में पिछले 15 साल के राजद कुशासन के कारण बिहार हर दृष्टि से पिछड़ता जा रहा था। असामाजिक तत्वों का मनोबल इतना बढ़ चुका था कि लोगों में “भय” व्याप्त रहता था। नागरिक सुविधाओं का तो हाल ही मत पूछिए। सड़कें तो कहीं दिखती ही नहीं हैं, और बिजली तो मेहमान की तरह आती है। इस हालत में नई सरकार के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं।
– अजय कुमार
ग्रा. व पो. – मोहनपुर, जिला-बांका (बिहार)
दिशादर्शन के अंतर्गत श्री तरुण विजय का लेख “पाटलिपुत्र में आस का उजास” पढ़ा। इसका श्रेय बहुत हद तक चुनाव आयोग एवं उसके सलाहकार के.जे. राव को जाता है, क्योंकि इनकी सख्ती से ही वहां निष्पक्ष चुनाव हुआ। मतदाताओं ने भयमुक्त होकर मतदान किया और राजद के 15 साल के कुशासन को खत्म किया। एक समय था जब बिहार में उपजे जे.पी. आन्दोलन ने पूरे देश में लोकतांत्रिक क्रान्ति की लहर चलाई थी। आज आवश्यकता है उसी प्राचीन अतीत को सजाने-संवारने की।
– दिलीप शर्मा, 114/2205,
एम.एच.वी. कालोनी, समतानगर पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)
“पाटलिपुत्र में आस का उजास” लेख पढ़ ही रहा था कि खबर फैल गई-बिहार विधानसभा के मुख्य द्वार पर नवनियुक्त मंत्री नरेन्द्र सिंह के कृपापात्रों ने एक कर्तव्यनिष्ठ पदाधिकारी की पिटाई कर दी। बाद में पता चला कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर “मंत्री जी” के खिलाफ दर्ज शिकायत भी वापस हो गई। यदि यही हाल रहा तो क्या उजास पर अंधेरा छाने में देर लगेगी?
– अनिल सिंह
आशियाना नगर, पटना (बिहार)
बिल्कुल भ्रष्ट
राजनीति है हो गयी, अब तो बिल्कुल भ्रष्ट
पर नेताओं को नहीं, इससे कुछ भी कष्ट।
इससे कुछ भी कष्ट, मूंछ पर ताव दे रहे
देख रही दुनिया, पर खुद को साफ कह रहे।
यदि “प्रशांत” कम खर्चे में चुनाव निबटेगा
भ्रष्ट आचरण तभी नियन्त्रित हो पाएगा।।
– प्रशांत
इस बार बिहार के लोगों ने रामविलास पासवान के मुस्लिम मुख्यमंत्री के दुराग्रह को ठेंगा दिखा दिया और सबसे बड़ी बात जंगलराज की समाप्ति और विकास के नाम पर एकजुटता का प्रदर्शन किया। इस चुनाव ने यह सिद्ध कर दिया कि अगर दृढ़-इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। श्री नीतीश कुमार के सत्तारूढ़ होने से प्रदेश में विकास, समता व विश्वास का सूरज उगेगा, यह उम्मीद की जा सकती है।
– गजानन पाण्डेयम.नं. 2-4-936,
निम्बोली अड्डा, काचीगुडा, हैदराबाद (आं.प्र.)
बिहार विधानसभा के प्रथम चरण के चुनाव के बाद प्रसार माध्यमों ने कई तरह की अटकलें लगाई थीं। वहीं पाञ्चजन्य ने 30 अक्तूबर, “05के अंक में स्पष्ट लिखा था, “यदि मतदाताओं का रूझान ऐसा ही रहा तो राजग को बहुमत मिलेगा।” सच में ऐसा ही हुआ। राजग ने बड़ी सफाई से लालू के 15 साल के कुशासन को जनता के सामने रखा और उसी का परिणाम है कि आज राजग बिहार में शासन कर रहा है।
– गोविन्द वी. खोखानी
प्रज्ञा स्फीति, नयाधाम, कच्छ (गुजरात)
अमीरों एवं मैकालेपुत्रों का मनोरंजन
पिछले दिनों अमृतसर में भारत-पाकिस्तान व्यापार मेला सम्पन्न हुआ। मेला पंडाल में भारत और पाकिस्तान की किसी भी भाषा का एक शब्द नहीं दिखाई दिया। सब जगह अंग्रेजी छाई रही। पर इस सारे मैकाले वातावरण में भारत की लाज बचा ली “सोनालिका” ने। सोनालिका ट्रैक्टर वालों ने पंजाबी भाषा में मोटे-मोटे शब्द लिखकर यह अहसास करवाया कि हमारी अपनी कोई भाषा है और इसके अतिरिक्त केवल दो शब्द मिले, सोना-मसाला। सरकार से जनता जानना चाहती है कि क्या अपने देश की कोई भाषा नहीं है? अगर अंग्रेजी ही हमारी मातृभाषा है, राष्ट्र की संपर्क भाषा है, तो फिर हिन्दी-पंजाबी, कन्नड़-तेलुगू, गुजराती-मराठी के लिए देशवासियों को क्यों लड़वाते हैं? उच्च वर्गो के बच्चे अंग्रेजी भाषा में ही शिक्षा पाते हैं। केवल गरीब का बच्चा राजभाषा में पढ़ने को मजबूर है। अंग्रेजी पढ़े-लिखे मुट्ठी भर लोगों का ही हर जगह वर्चस्व है। हो सकता है कभी ये लोग सरकार पर दबाव बनाएं और सरकार यह घोषणा कर दे कि भारत का काम केवल अंग्रेजी में ही चलेगा। इस मेले में सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर पंजाब की विरासत को पॉप संगीत और फैशन प्रदर्शन तक सीमित कर दिया। गरीब जनता के धन को कुछ अमीरों के मनोरंजन में उड़ा दिया।
– प्रो. लक्ष्मीकान्ता चावला
उपाध्यक्ष, पंजाब भाजपा, अमृतसर (पंजाब)
बिहार विधानसभा के चुनाव परिणामों से प. बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य बड़े दु:खी हुए। उन्होंने यहां तक कहा, “इस परिणाम से हमें निराशा हुई। बिहार में साम्प्रदायिक शक्तियां ताकतवर होकर उभरी हैं, यह सेकुलर ताकतों की हार है।” उनके इस बयान से पता चलता है कि हमारे राजनेता कितने संकुचित विचार रखते हैं। दरअसल बिहार चुनाव का सन्देश उन राजनीतिक दलों के लिए एक सबक है, जो साम्प्रदायिक और जातिवादी राजनीति से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं।
– विनोद कुमार गुप्ता
पार्क रोड, लखनऊ (उ.प्र.)
संग्रहणीय लेख
श्री शंकर शरण का लेख “भारत विरोधी ये भारतीय” संग्रहणीय है। इसमें उन्होंने लिखा है, “नवम्बर, 1999 में राजग सरकार ने कैथोलिक ईसाइयों के अन्तरराष्ट्रीय प्रमुख पोप का भारत में लाल कालीन बिछा कर स्वागत किया था। जबकि ठीक दिल्ली में खड़े होकर पोप ने “एशिया को मतान्तरित करने” और “आत्माओं की फसल काटने” का खुला आह्वान किया था।” इसे पढ़कर हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि इस सरकार की कई ऐसी नीतियां थीं, जो चुभती थीं।
– कृ.पु. हरदास,7,
समर्थ नगर पश्चिम, वर्धा मार्ग, नागपुर (महाराष्ट्र)
विदेशों में जाकर अपने देश के खिलाफ बयान देना एक देशद्रोही कार्य है। फिर भी ऐसे लोगों को विदेशी पुरस्कारों से नवाजा जा रहा है। अवश्य ही इनके पीछे भारत-विरोधी ताकतों का हाथ है। ऐसे लोगों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
– आनन्द कुमार भारतीय
होमियोपैथिक मेडिकल कालेज, मोतिहारी (बिहार)
नैतिक पतन है यह
मंथन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने लेख “खुशबू प्रकरण से जुड़े सवाल” में सही लिखा है कि यौन सम्बंधों को मर्यादित करने के लिए ही विवाह संस्था का जन्म हुआ। मगर खुशबू जैसी अभिनेत्रियां व नारी को भोग्या के रूप में देखने व दिखाने वाले महेश भट्ट जैसे लोग विवाह पूर्व तथा विवाहेतर सम्बंधों को सही ठहराने के प्रयास में जुटे हैं। ये लोग शायद यह भूल जाते हैं कि पश्चिम में नारी मुक्ति आन्दोलन व उससे उपजी उच्श्रृंखलता के कारण कितना नैतिक पतन हुआ है।
– अभिजीत “प्रिंस”
इन्द्रप्रस्थ, मझौलिया, मुजफ्फरपुर (बिहार)
विवाह पूर्व यौन सम्बंधों को जायज ठहराना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं है। यह भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के खिलाफ है। सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए ऐसे बयान दिए जाते हैं। किन्तु अधिकांश भारतीयों ने ऐसे बयानों को कभी महत्व नहीं दिया है। इसलिए ऐसे लोगों की “ख्याति” पाने की मंशा कभी पूरी नहीं हुई है।
– पंडित अनिल कौशिक, आदित्य मिल्स स्टाफ कालोनी,
मदनगंज, किशनगढ़, अजमेर (राजस्थान)
जनमन
पाञ्चजन्य के अंतरताना संस्करण पर अब नियमित रूप से जनमत सर्वेक्षण भी किया जाता है। पाठकों से आग्रह है कि वे अधिक से अधिक मित्रों तक पाञ्चजन्य के अंतरताना संस्करण का पता भेजें और साथ ही पाञ्चजन्य के अंत:क्षेत्र को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए हमें इस पते पर अपने सुझाव लिख भेजें –
पाञ्चजन्य अंतरताना संस्करण
द्वारा सम्पादक पाञ्चजन्य
संस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, नई दिल्ली-110055
पिछले सप्ताह हमने अंतरताना संस्करण में प्रश्न किया था कि सांसद रिश्वत काण्ड से क्या झलकता है?
(अ) लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पतन
(आ) नैतिकता का पतन
(इ) पैसे की बढ़ती भूख
पाठकों की राय
अ. – – – – – – – – – – – 10 प्रतिशत
आ. – – – – – – – – – 65 प्रतिशत
इ. – – – – – – – – – 25 प्रतिशत
इस सप्ताह का प्रश्न है –
दिल्ली में अनधिकृत निर्माण ढहाए जा रहे हैं। दौषी कौन?
(अ) अनधिकृत निर्माण करने वाले
(आ) एम.सी.डी.
(इ) कह नहीं सकते
4
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