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संस्कार

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Sep 1, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Sep 2005 00:00:00

विमल लाठसफरनामा : अमृतसरआस्था के दीपश्रीगुरु नानक जयन्ती। कार्तिक पूर्णिमा, संवत् 2061, 26 नवम्बर, 2004। स्थान अमृतसर। एक पावन दिन, एक पावन स्थल। सफरनामे का एक महत्वपूर्ण पड़ाव। कहते हैं, पहले अमृतसरोवर के नाम से जाना जाता था भारत का यह पवित्र तीर्थ।दरबार साहिब स्वर्ण मन्दिर के लिए प्रसिद्ध इस ऐतिहासिक नगरी के निकट ही है पौराणिक स्थल-रामतीर्थ। कहते हैं कि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम पुराने शहर से 10-12 किलोमीटर दूर था। उन्हीं के संरक्षण में माता – सीता यहां रहीं और लव-कुश का जन्म हुआ, वे पले-बढ़े। लव-कुश ने श्रीराम की सेना को परास्त किया, हनुमान जी को रस्सियों से बांधा। यहां एक बहुत बड़ा तालाब आधा सूखा हुआ है। भरे हुए तालाब के किनारे है सफेद स्वच्छ साधारण मन्दिर और आश्रम। परिसर के बाहर हनुमान जी की एक विशालकाय मूर्ति सबको आकर्षित करती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां मेला लगता है। श्रद्धालु जनता उमड़ पड़ती है। हजारों की संख्या में दुकानें और “स्टाल” लगते हैं। श्रद्धालुओं की भीड़ चली आती है। हमारे साथ थे गुरु नानक विश्वविद्यालय के “नियुक्ति” अधिकारी डा.रजनीश अरोड़ा और उनका परिवार। उन्होंने बताया उनके पूर्वज इस पवित्र सरोवर में स्नान की आस लगाए रहते थे। यह किसी कुंभ से कम न था। क्या मैकाले या औरंगजेब तोड़ सकते थे हमारी आस्था की इस रीढ़ को? आज के काले साहब भी लाख सर पटक लें लेकिन जनता जनार्दन के मानस में महर्षि वाल्मीकि जीवित हैं, सीता माता और लव-कुश भी। जगद्गुरु शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती के अपमान का दर्द ह्मदय में समाए हुए भी हिन्दुओं की आस्था कम नहीं है। कोई भी मुगलिया-पठानी, अंग्रेज या इतालवी राज हिन्दुत्व को परास्त नहीं कर सकता। “न भूतो न भविष्यति”।स्वर्ण मन्दिर की तर्ज पर बने स्वर्णिम दुग्र्याणा मन्दिर तथा अमृतसर के अन्य दर्शनीय स्थानों को देखने के बाद दरबार साहिब की ओर श्रद्धालु जा रहे थे। क्या शान है आज की रात की! श्रद्धेय गुरु नानक की स्मृतियों से जुड़ा व उनको श्रद्धा अर्पित करने का एक पवित्र अवसर। विशाल सरोवर के बीच स्वर्णिम आभा से प्रदीप्त दरबार साहिब और उसके चारों ओर खड़े भवनों को रोशनी की लड़ियों से सजाया गया था। सरोवर के चारों ओर भक्तजन दीपक या मोमबत्तियां जला रहे थे। इन सबका प्रकाश सरोवर में एक साथ प्रतिबिम्बित हो रहा था। इस दृश्य के वर्णन के लिए समुद्र के आकार की दवात और हाथी की सूंड के समान कलम चाहिए। चारों ओर लोग ही लोग। गुरु ग्रंथ साहिब के दर्शनों के लिए हजारों लोगों की अनुशासनबद्ध पंक्तियां। तरह-तरह से सेवा करते भक्त सेवा कार्य में व्यस्त थे। लगता था जैसे शब्द और शोर अपनी लक्ष्मणरेखा पहचान परिसर से बाहर ही ठहर गए हो। सुनाई पड़ता था तो केवल रागियों द्वारा शास्त्रीय शैली में गाया जाने वाला भजन ग्रंथ साहिब के सामने लाउडस्पीकर द्वारा प्रसारित किया जा रहा है। आतिशबाजियां छोड़ी जा रही थीं जो आसमान पर इन्द्रधनुषी रंग बिखेर रही थीं। मन होता था, नारा लगाया जाए “जो बोले सो निहाल – सत् श्री अकाल”। लेकिन वह तो गुरु के प्रति अपनी भावना व्यक्त करने का दिन था, उसको शब्दों से क्या सरोकार।भक्त को गुरु ग्रंथ साहिब के दर्शन कर सुकून मिलता है। हाथों में प्रसाद लिए जीना चढ़ते समय एक वृद्धजन प्लास्टिक की थैली अपनी जेब से निकाल कर देते हैं- “इसमें अपना प्रसाद रख लो, अच्छा रहेगा।” वाह रे संस्कार! तुम्हें नमस्कार! गुरु नानक, तुम्हारी जय हो, गुरु गोविन्द सिंह की जय हो, सारे गुरुओं की जय हो। अमृतसर, तुम्हारी जय हो!NEWS

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