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हलीम आईनाविद्वान और ज्ञानीज्ञानी के पासहोती हैसरल-मधुरआमजन की शब्दावलीक्योंकि वह-खुद को पहचानता है,महान होकर भीअपने कोअल्प मानता हैऔर हमजो दूसरों कोअच्छी तरह जानते हैं,पर अपने कोथोड़ा भीनहीं पहचानते हैंहम तथाकथित विद्वानजो ठहरे!बुद्धि की अजीर्णता सेग्रसित हैंहम गहरे।हम उधार के शब्दों कोकब तक प्रयोग में लाएंगे,झूठे भ्रम की नुमाइशकब तक दिखाएंगे?हमें बनना ही होगाविद्वान से ज्ञानी,वरना,स्वयंभू महाविद्वान होकर भीबने रहेंगे हमअल्प ज्ञानीअज्ञानी….!हां, मैं हिन्दुस्थानी हूं, तभी तो….हां, मैं हिन्दुस्थानी हूंतभी तो-जय-जय हिन्दुस्थानजय-जय भारत महानजय-जय वंदे मातरम् गानसहर्ष गाता हूं,मादरे-वतन कोशीश झुकाता हूं।देश का गुणगान गाता हूंहां मैं हिन्दुस्थानी हूंतभी तो-मैंने कितनी बारनफरत की आग कोप्यार के गंगाजल सेबुझाया है,हिमालय होकर भीचींटियों तक कोमरने से बचाया है।मैं नीलकण्ठ-सा होकर भीभुजंग को मित्र बनाता हूं,भाईचारे के छंद सुनाता हूं।हां मैं हिन्दुस्थानी हूंतभी तोमैंने सत्य अहिंसा के बमबहुत बनाये हैं,आतंकी-अत्याचारियों केछक्के छुड़ाये हैं।मैं सत्य का सिपाहीमैं शान्ति का पुजारीनया सूरज उगाता हूंनया चंदा बनाता हूं।हां, मैं हिन्दुस्थानी हूंतभी तो-विश्व कोयुग-युग से”वसुधैव कुटुम्बकम्” कादर्पण दिखाया है,”विश्व बंधुत्व” की हथेली परटिकाकर दुनिया कोनष्ट होने से बचाया है।मैं राम-कृष्ण-ईसा-मुहम्मद कीगाथा सुनाता हूं,एकता की बांसुरीहर पल बजाता हूं।हां, मैं हिन्दुस्थानी हूंतभी तो-मादरे वतन कोशीश झुकाता हूं….!NEWS
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