|
दिल्लीगयीं,गयीं,गयीं,…अरे बच गयींजान की आफत बने संगठन के नेता, सोनिया ने बस, ब्ब्बचा ही लिया!संगठन के नेता, सोनिया ने बस, ब्ब्बचा ही लिया!आखिरकार दिल्ली सरकार और प्रदेश कांग्रेस के बीच चली आ रही तनातनी बिना किसी ठोस नतीजे पर पहुंचे हाल-फिलहाल के लिए थम गई है। कांग्रेस आलाकमान की नाक के नीचे ही यह मामला इतना तूल पकड़ गया कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कुर्सी पर बने रहने पर ही सवाल खड़ा हो गया। ऐसे में दोनों पक्षों को बुलाकर खुद सोनिया गांधी को बीच-बचाव करना पड़ा। गत 26 अप्रैल को श्रीमती सोनिया गांधी के साथ 10-जनपथ आवास में डेढ़ घंटे चली बैठक में महासचिव अहमद पटेल, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी अशोक गहलोत, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रामबाबू शर्मा, केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर तथा कपिल सिब्बल उपस्थित थे। इस बैठक के बाद गहलोत ने मीडिया के सामने “सब कुछ ठीक है” की बात कही। पर लगता है कि आने वाले समय में दिल्ली की सत्ता में भागीदारी के सवाल पर संघर्ष और तेज होगा। हालांकि इस बार भी कांग्रेस आलाकमान ने श्रीमती दीक्षित को अभयदान दे दिया, पर साथ ही उन्हें अपनी कार्यप्रणाली बदलने, सरकारी कामकाज में पार्टी विधायकों और सांसदों को साथ लेकर चलने की भी हिदायत दे दी। दूसरे शब्दों में, श्रीमती सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री को साफ कर दिया है कि अब उन्हें 10 जनपथ का सुरक्षा कवच उपलब्ध नहीं है।सन् 1998 में दिल्ली में एक बाहरी व्यक्ति के तमगे के साथ श्रीमती शीला दीक्षित कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी से अपने निकट संबंधों की वजह से मुख्यमंत्री की गद्दी पर काबिज हुईंऔर इन्हीं नजदीकियों की बदौलत पार्टी में असंतुष्टों पर भारी पड़ीं। दिल्ली प्रदेश में कांग्रेसी कलह की नई शुरूआत 19 अप्रैल को उस समय हुई, जब दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति की कार्यकारिणी की बैठक में असंतुष्ट विधायकों और सांसदों ने मुख्यमंत्री की तानाशाह कार्यप्रणाली, निर्णय लेते समय विधायकों की अनदेखी, नौकरशाही के अत्यधिक वर्चस्व, बिजली तथा पानी की बढ़ती दरों तथा पार्टी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को लेकर उनको घेरा। इस अप्रत्याशित आलोचना से हकबकाई श्रीमती दीक्षित पंद्रह मिनट बाद ही बैठक का बहिष्कार कर चली गर्इं। इस घटना के बाद मुुख्यमंत्री ने श्रीमती सोनिया गांधी के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने स्वयं को कार्यकारिणी में जानबूझकर अपमानित करने और बैठक में बाहरी लोगों को बुलाने की बात को रेखांकित किया। दूसरी तरफ प्रदेश अध्यक्ष राम बाबू शर्मा ने भी मुख्यमंत्री के आरोपों को अनुचित करार देते हुए सोनिया गांधी से मुलाकात का समय मांगा।इसके बाद दोनों पक्षों में शक्ति परीक्षण की होड़ लग गई। मुख्यमंत्री ने अपनी पकड़ साबित करने के लिए विधायकों को आमंत्रित किया, पर उनके बुलावे पर मात्र 21 विधायक ही उनके घर पहुंचे, इनमें रामबाबू भी थे। दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस के अध्यक्ष सहित 47 विधायक हैं, इनमें से 26 विधायक मुख्यमंत्री के निमंत्रण के बावजूद नहीं आए। इन सारी नाटकीय घटनाओं पर कांग्रेस आलाकमान द्वारा सकारात्मक रवैया न अपनाने से असंतुष्ट श्रीमती दीक्षित ने एक अंग्रेजी समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि मुख्यमंत्री की संस्था पवित्र है और उसका सम्मान बनाए रखा जाना चाहिए। यह बात श्रीमती सोनिया गांधी को नागवार गुजरी, जिसके कारण श्रीमती दीक्षित को समय देने से इनकार करते हुए उनसे पहले दिल्ली प्रदेश के प्रभारी अशोक गहलोत के सामने अपना पक्ष रखने को कहा गया। उधर गहलोत ने भी आलाकमान का रुख भांपते हुए जयपुर में कहा कि अगर मियांजी घोड़ी पर बैठे हैं तो उन्हें नीचे वालों का भी सलाम लेना चाहिए।अब शीला दीक्षित ने बदले हुए समीकरण के मद्देनजर अपनी गलती को स्वीकार किया है कि उनकी सरकार और विधायकों में तालमेल का अभाव रहा है। अब उनकी सरकार सभी विधायकों और स्थानीय सांसदों के साथ मिलकर समस्याओं को दूर करने की कोशिश करेगीे। उधर, अपनी जीत से प्रसन्न पार्टी अध्यक्ष रामबाबू शर्मा ने कहा कि पार्टी सर्वोपरि है और सरकार को उसकी छत्रछाया में ही काम करना पड़ेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि अब हर महीने प्रदेश कार्यकारिणी, मुख्यमंत्री जिसकी सदस्य हैं, की बैठक होगी। साथ ही अब दिल्ली के मंत्री प्रदेश कांग्रेस के तालकटोरा मार्ग स्थित कार्यालय में आकर जनता की समस्याएं सुनेंगे। देखने की बात यह है कि आने वाले दिनों में दिल्लीवासियों को अपने मंत्रियों के दर्शन होंगे या नए मुख्यमंत्री के।दिल्ली से अल्पना ठाकुरNEWS
टिप्पणियाँ