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नमनआचार्य विष्णुकान्त शास्त्रीसरस्वती पुत्र का महाप्रयाणआचार्य विष्णुकांत शास्त्री 1999 में सिंधु दर्शन अभियान में लेह गए थे। उस समय के इस चित्र में सिन्धु तट पर बैठे हैं शास्त्री जी1995 में नई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान मंच पर (बाएं से) श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री रज्जू भैया, डा. कर्ण सिंह, श्री अटल बिहारी वाजपेयी और आचार्य विष्णुकांत शास्त्री2005 में पाञ्चजन्य नचिकेता सम्मान समारोह में दीप प्रज्ज्वलित करते हुए आचार्य विष्णुकांत। साथ हैं श्री अटल बिहारी वाजपेयी। उनके पीछे दिख रहे श्री लालकृष्ण आणवाणीअन्तिम यात्रा की ओर……चिरनिद्रा में लीन स्व. शास्त्रीशास्त्री जी के अंतिम दर्शन करते हुए रा.स्व.संघके सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत…. श्री लालकृष्ण आडवाणीकोलकाता निवास पर स्व. शास्त्री को श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए परिजनएक मुख्य मार्ग से गुजरती हुई अंतिम यात्राअंत्येष्टि स्थल पर… अंतिम सत्यवर्ष 58, अंक 49 वैशाख अमावस्या, 2062 वि. (युगाब्द 5106) 8 मई, 2005भरने लगा पाप का घड़ाराहत का पैसा गया लालू के सम्बंधी साधु की टोली कोलालू और कांग्रेस एक जान, एक प्राण- दोनों अपराधों की छाया से बच नहीं सकते।स्वामी रंगनाथानंद जी ब्राहृलीनदिल्ली में रा.स्व.संघ के पूज्य सरसंघचालक ने किया “श्री गुरुजी समग्र” का लोकार्पणश्री गुरुजी मानते थे कि छुआछूत अभिशाप हैजनगणना-उभरते संकटहिन्दुओं के घटने से बढ़ते खतरदिल्ली में आए देशभरके चिंतकों का मंथनसोनिया गांधी …और उधर कांग्रेस के भीतर घात, प्रतिघात!मगर कुछ होगा नहीं, कांग्रेस और कांग्रेसीदोनों ही इसे अपना “स्वभाव” मानते हैं!!करुणाकरनस्वामी रंगनाथानंद जी युगदृष्टा, धर्म के वैश्विक व्याख्याता -कुप्.सी. सुदर्शन, सरसंघचालक, रा.स्व.संघएन.सी. जेलियांग धर्म और संस्कृति के रक्षक -कुप्.सी. सुदर्शन, सरसंघचालक, रा.स्व.संघराष्ट्रीय एकजुटता के प्रहरीनागा ज्योति-पुरुषदेउबा गिरफ्तारदिल्ली को गुस्सा-सैन्य सहायता अधर मेंजब वाजपेयी बोले…पाकिस्तान की जमाते इस्लामी (मौदूदी) के नेता हैदर फारुक मौदूदी ने कहा- बंटवारे से मुसलमान तबाह हुए हैदर फारुक मौदूदीनिजी क्षेत्र में “आरक्षण”-2 शगूफों की बिसात है बस! प्रेमचन्द्रउत्तराञ्चल अनुसूचित जातियों के कलाकार सम्मानित प्रतिनिधिनिर्बल जन चिकित्सा शिविर प्रतिनिधिएडगर केसी : “अनेक महल”-3 हिन्दू सिद्धान्तों का प्रतिपादन हो.वे. शेषाद्रि अ.भा. प्रचारक प्रमुख, रा.स्व.संघ हापुड़ में नववर्ष महोत्सव प्रतिनिधिआचार्य विष्णुकांत शास्त्री- पुण्य स्मरण महामहिम -नरेन्द्र कोहलीकोलकाता और नई दिल्ली में श्रद्धाञ्जलि सभाएं नम आंखों में तिर गई उनकी स्मृति प्रतिनिधिहवाई चिड़िया इन्दौर में एकल विद्यालय का तीन दिवसीय कार्यकर्ता कुम्भ इंदौर से दीपक नाईकबेनेगल ने बनाई “बोस-द फोरगोटन हीरो” कौन भूल सकता है नेताजी को! -आलोक गोस्वामीजनगणना 2001 : उभरते संकटों पर नई दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मेलन हिन्दू घटने से बढ़ते खतरे गद्दारों से बढ़कर निकला पूर्व सैनिक -दिल्ली ब्यूरोहिन्दू घटने से बढ़ते खतरे जार्ज बोले-मैं इस देश को लूटने की -दिल्ली ब्यूरोदिशादर्शन भानुप्रताप शुक्लसम्पादकीय उगते सूरज का संदेशटी.वी.आर. शेनाय लालू और कांग्रेस एक जान, एक प्राणपाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले जालन्धर में ऐतिहासिक महापंजाब सम्मेलन “क्षेत्रीय समिति योजना” का विरोध गिरीश चन्द्र मिश्र स्त्री हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भ तेजस्विनीकश्मीरी की कानी कला मेरी सास, मेरी मां, मेरी बहू, मेरी बेटी मंगलम्, शुभ मंगलम्गवाक्ष शिव ओम अम्बर”ज्यों की त्यों धरि दीन्ही चदरिया”पाठकीय भारत हिन्दू ही रहेकही-अनकही मान गए लालू उस्ताद दीनानाथ मिश्रगहरे पानी पैठ घुसपैठ के खिलाफ साझा नारामंथन खण्डित भारत में भी पांच पाकिस्तान? देवेन्द्र स्वरूपकांग्रेस के भीतर घात-प्रतिघात!दिल्ली पश्चिमबंगाल उत्तराचलजम्मू-कश्मीरबिहारNEWSप्रखर विद्वान और महान संन्यासी-पी.परमेश्वरन, अध्यक्ष, विवेकानंद केन्द्र (कन्याकुमारी) एवं निदेशक, भारतीय विचार केन्द्रम (केरल)स्वामी रंगनाथानंद जी के महाप्रयाण से हिन्दू धर्म ने एक प्रखर युगदृष्टा और विश्व ने एक महान दर्शनशास्त्री को खो दिया है। केरल के एक साधारण से गांव, जो आदि शंकराचार्य के जन्मस्थान से अधिक दूर नहीं है, में पैदा हुए स्वामी जी बहुत कम उम्र में ही रामकृष्ण आंदोलन से प्रभावित हो गए थे।मैट्रिक पास करने के तुरंत बाद वे इस आंदोलन के संपर्क में आए और श्रीरामकृष्ण मिशन के बंगलौर केन्द्र से जुड़े। कुछ समय बाद स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रत्यक्ष शिष्य स्वामी शिवानंद ने उन्हें संन्यास दीक्षा दी। उनकी प्रखर मेधा और आध्यात्मिक चर्या से प्रभावित होकर उनके गुरु ने उन्हें स्वामी रंगनाथानंद नाम दिया। उपनिषद्, भगवद्गीता, शास्त्रों, पुराणों व इतिहास के गहन अध्ययन के साथ ही वे एक लेखक, वक्ता और अद्भुत संचारक के रूप में बढ़ते गए। स्वामी रंगनाथानंद जी के व्यक्तित्व में समाहित एक प्रखर विद्वान, कुशल संचारक और आदर्श संन्यासी को देश ने जल्दी ही पहचान लिया। वे संस्थाओं के निर्माता थे। देश के बंटवारे के समय वे कराची स्थित मिशन के प्रमुख थे और वह मिशन अध्यात्म-पिपासुओं का एक प्रमुख केन्द्र बन गया था। वे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त दिल्ली स्थित रामकृष्ण मठ के भी संस्थापक थे। यहां उनके भगवद्गीता और अन्य ग्रंथों के व्याख्यान दिल्ली के प्रबुद्धजन के लिए अत्यंत प्रेरक होते थे। स्वामी जी ने ही गोल पार्क, कोलकाता में श्री रामकृष्ण संस्थान नामक अंतरराष्ट्रीय केन्द्र की स्थापना की थी, जो व्याख्यानों, प्रकाशनों, शोध और भाषाविज्ञान – अध्ययन के जरिए संस्कृति और भारतीय दर्शन की उद्भट सेवा कर रहा है। हैदराबाद में उन्होंने रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। दुनियाभर में उन्हें भारत का आध्यात्मिक राजदूत माना जाता था। ऐसा कोई देश नहीं होगा जहां स्वामी जी ने हमारे धर्म, दर्शन, संस्कृति और विरासत की अमिट छाप नहीं छोड़ी होगी।व्याख्यान देने का उनका अपना निराला अंदाज था। यहां तक कि अत्यंत जटिल दार्शनिक सूत्रों का भी वे बहुत सहजता और सरलता से भावार्थ समझाते थे। दुनियाभर में उनके प्रवास होते थे और इसी वजह से महान वैज्ञानिकों जैसे सर जुलियन हक्सली और लेखकों जैसे रोमां रोला के साथ उनके निकट संबंध बने। वेदान्त दर्शन के आधार पर स्वामी जी के विज्ञान और आध्यात्मिकता के तुलनात्मक अध्ययन से हक्सली बहुत प्रभावित हुए थे। वे निरन्तर लिखते रहते थे। “ईटरनल वेल्यूस फार ए चेÏन्जग सोसायटी” पर चार खंड का ग्रंथ, उपनिषदों का संदेश, एक तीर्थयात्री की नजर में दुनिया, भगवद्गीता पर उनका तीन खंडों का दृष्टांत और बृहदारण्यक उपनिषद् पर उनकी विवेचना हमारी चिरंतन पूंजी है। कितने ही लोगों से सौहार्दपूर्ण निजी संबंध रखना उनका एक विशिष्ट गुण था। उनकी स्मरणशक्ति अद्भुत थी। उनके निकट जो भी जाता, उनका अपना हो जाता। ऐसे अनगिनत लोग हैं जो उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते हैं। उनके द्वारा संन्यस्त शिष्यों की गणना असंभव है। स्वामी जी के जाने से उनके वे शिष्य खुद को आज बेसहारा समझ रहे हैं। हालांकि वृद्धावस्था के कारण उनका भौतिक शरीर हमसे बिछुड़ गया है, पर उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति सदा हमारे बीच रहने वाली है।NEWS
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