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पंजाब

by
Jul 8, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jul 2005 00:00:00

कैप्टन ने खोलीखैरात की पोटलीराकेश सैनप्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के मुफ्तखोरी को बढ़ावा न देने के स्पष्ट निर्देशों को ठेंगा दिखाते हुए उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने पंजाब के छोटे किसानों और दलितों को 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) से मुफ्त बिजली देने की घोषणा की है। इस घोषणा का पंजाब राज्य बिजली बोर्ड के विशेषज्ञों, कर्मचारी संगठनों और अर्थशास्त्रियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में कैप्टन साहब द्वारा दिखाई जा रही दरियादिली का कारण ढूंढना चौपाल में बैठने वाले उन भोले-भाले किसानों या घर की चारदीवारी में बंद रहने वाली महिलाओं के लिए भी मुश्किल बात नहीं है, जो न तो कभी अखबार पढ़ते हैं और न ही खबरी चैनल देखते हैं। स्पष्ट है कि “भय बिन न होई प्रीत” सनातन सिद्धांत के अनुसार चुनाव के भय ने ही, कैप्टन के मन में आमजन के प्रति स्नेह पैदा कर दिया है।उनकी इस घोषणा से बिजली बोर्ड को भारी परेशानी होने वाली है। बोर्ड सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सन् 2000-01 में बोर्ड का वार्षिक घाटा 31.95 करोड़ था, जो बिजली की दरें बढ़ाने के बाद, पिछले साल 6 करोड़ पर आ गया। उल्लेखनीय है कि यह समय राज्य में अकाली-भाजपा गठजोड़ वाली सरकार के शासन का समय था, जब किसानों को मुफ्त बिजली की सुविधा दी जा रही थी। मुफ्तखोरी के चलते सन् 2002-03 में घाटे का ग्राफ 436 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। अगले साल आम उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ाने से बोर्ड 175 करोड़ रुपए मुनाफे पर आ गया और वर्तमान में बिजली की दरें दस फीसदी बढ़ाए जाने के बाद भी, बोर्ड का घाटा 650 करोड़ रुपए बताया जा रहा है। वर्तमान में सरकार किसानों को 64 पैसे प्रति यूनिट के मूल्य पर बिजली उपलब्ध करवा रही है जबकि विद्युत नियंत्रण आयोग ने 2.14 रुपए प्रति यूनिट करने की सिफारिश की है।राज्य सरकार इस मद में 450 करोड़ रुपए की सब्सिडी दे रही है और अगर सरकार नियंत्रण आयोग की सिफारिश नहीं मानती है तो सरकार को बोर्ड को 1500 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष देने होंगे। सरकार अगर 5 एकड़ की जोत वाले किसानों को मुफ्त बिजली देती है तो इस परिधि में राज्य के 82 फीसदी किसान आ जाएंगे और दलितों को भी सौ यूनिट मुफ्त बिजली मिलती है तो बोर्ड को हर साल 350 करोड़ रुपए राजस्व की हानि होगी। दूसरी ओर राज्य में बिजली की मांग और आपूर्ति के बीच की खाई निरंतर गहरी होती जा रही है। प्रतिदिन 1500 लाख यूनिट बिजली की खपत वाले राज्य को केवल 700 लाख यूनिट बिजली की ही आपूर्ति हो रही है। पिछले चार साल के कांग्रेस शासनकाल के दौरान राज्य में 1 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी नहीं बढ़ा है। इसके विपरीत लहरामुहब्बत स्थित गुरु हरगोविन्द थर्मल प्लांट, जहां विस्तारण का काम किया जा रहा है, से राज्य को वर्ष 2007 में ही बिजली मिल पाएगी। एक तरफ तो मुख्यमंत्री ने हाल ही में विदेशों का दौरा करके वहां के उद्यमियों तथा अनिवासी भारतीयों को राज्य में पूंजीनिवेश के लिए आमंत्रित किया है तो दूसरी तरफ उद्योगों के लिए मूलभूत जरूरत बिजली की आपूर्ति का हाल यह है कि हर उपभोक्ता को राज्य के घरेलू उत्पादन से मात्र 3.05 घंटे बिजली ही प्रतिदिन दी जा रही है और यह सर्वविदित है कि मुफ्तखोरी के बाद आपूर्ति के घंटों में अप्रत्याशित कमी आएगी। ऐसी स्थिति में राज्य में नया पूंजीनिवेश तो दूर, स्थापित उद्योगों को अपना अस्तित्व बचाना भी मुश्किल हो जाएगा।दूसरी ओर मुख्यमंत्री ने राज्य के विभिन्न विभागों में खाली पड़े लगभग एक लाख पदों को भरने की भी बात कही है। देश में चल रहे आर्थिक सुधारों के तहत अब तक राज्य सरकार इन पदों को फालतू का बोझ बताकर इन्हें तथा कई सरकारी विभागों को समाप्त करने की वकालत करती आ रही थी। जिसके तहत राज्य में चार साल से सरकारी भर्ती पर रोक लगी हुई है। परन्तु चुनाव नजदीक आते ही लोगों को खुश करने के लिए राज्य सरकार द्वारा इन रिक्त पदों को भरने की तैयारी की जा रही है। लोगों का कहना है कि ज्यों-ज्यों चुनाव नजदीक आएंगे संभावना है कि त्यों-त्यों कैप्टन की खैरात वाली पोटली भारी होती जाएगी।राकेश सैनNEWS

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