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यह सभ्यतामूलक समस्या है

by
Jul 8, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jul 2005 00:00:00

मुसलमानों पर ही इसके समाधान की जिम्मेदारीथामस एल. फ्रीडमैन प्रख्यात अमरीकी विश्लेषक हैं और विभिन्न विषयों पर उनकी पकड़ गहरी व धारधार मानी जाती है। 7 जुलाई को लंदन बम विस्फोटों के बाद पश्चिमी जगत में मुस्लिमों के प्रति पैदा हुए संदेह पर उनकी टिप्पणी यहां हम एशियन एज के 9 जुलाई, 2005 अंक से साभार प्रकाशित कर रहे हैं। इसमें उन्होंने कुछ ऐसे सवालों का विश्लेषण किया है जो भारतीयों के दिमाग में भी मथ रहे हैं।-थामस एल. फ्रीडमैन7 जुलाई, 2005 को लंदन में हुए बम विस्फोट परेशानी की वजह साबित हुए हैं। इसका कुछ कारण तो यह है कि इन हमलों का अमरीका के मातृ देश और निकटतम सहयोगी इंग्लैण्ड में होना खुद अमरीका पर हमले जैसा है। कुछ कारण यह भी है कि भले यह हमला फिदायीन हमलावरों द्वारा किया गया पर साफ हो गया कि महत्वपूर्ण पश्चिमी राजधानी के केन्द्र में यह जिहादी हथियार पहुंच गया है। यह बहुत परेशान करने वाली बात होगी क्योंकि पश्चिमी समाज विश्वास पर जीता है- इस विश्वास पर कि बस या भूमिगत रेल में पड़ोस में बैठा व्यक्ति डायनामाइट पहनकर नहीं बैठा होगा।ये हमले बहुत ज्यादा व्यथित करते हैं क्योंकि जब जिहादी हमलावर अपने पागलपन को हमारे खुले समाजों के बीचोंबीच ले आते हैं तो हमारे समाज पहले की तरह खुले नहीं रह पाते। इसमें शक नहीं है कि 7 जुलाई को हममें से हर एक ने अपनी थोड़ी-बहुत आजादी खो दी है।तो जब रियाद में जिहादी बमबारी होती है। वह मुस्लिम-मुस्लिम की समस्या है। सऊदी अरब के लिए वह पुलिस समस्या है। लेकिन जब अलकायदा की तर्ज पर लंदन में भूमिगत बमबारी होती है तब यह सभ्यता से जुड़ी समस्या हो जाती है। पश्चिमी समाज में रहने वाला हर मुस्लिम व्यक्ति अचानक से संदेह के घेरे में आ जाता है, वह चलता-फिरता बम जैसा दिखाई देने लगता है। और जब ऐसा होता है तो फिर पश्चिमी देश अपने यहां की मुस्लिम आबादी पर भी बहुत सख्ती से कार्रवाई करने को उतावले हो जाते हैं।पश्चिमी समाज, खास तौर पर बड़े यूरोपीय समाज, जहां अमरीका से कहीं ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या है, जितना अपने यहां के मुसलमानों को शक की निगाहों से देखेंगे उतने ही आंतरिक तनाव पैदा होंगे और पहले से ही बाहरी दिखने वाले मुस्लिम युवा और बाहरी दिखेंगे। 11 सितम्बर की घटना से ओसामा बिन लादेन ने यही ख्वाब तो देखा था- मुस्लिम दुनिया और वैश्वीकरण की ओर बढ़ते पश्चिम के बीच एक बड़ी खाई पैदा करने का ख्वाब।यह एक गंभीर क्षण है। हमें इस बमबारी से उपजी सभ्यतामूलक समस्याओं को नियंत्रित करने के सभी उपाय करने होंगे। लेकिन ऐसा करना आसान नहीं होगा, क्योंकि 11 सितम्बर के विपरीत लंदन हमलों पर प्रतिक्रिया करने का कोई साफ, प्रकट लक्ष्य नहीं है। अफगानिस्तान में ऐसे कोई आतंक के केन्द्र या प्रशिक्षण शिविर नहीं दिखते कि जहां क्रूज मिसाइलें दाग दी जाएं। अब कोई सुनिश्चित सीधा लक्ष्य नहीं है, बल्कि विस्तृत, फैला हुआ, सपाट खतरा है जो इंटरनेट और छोटी-छोटी खोहों से संचालन कर रहा है। प्रतिक्रिया का कोई जाहिर निशाना नहीं है और खुले समाज की हर खुली जगह की चौकसी के लिए पर्याप्त पुलिस नहीं है। या तो मुस्लिम जगत वास्तव में खुद पर काबू और अपने आतंकवादियों की भत्र्सना करना शुरू कर दे या फिर पश्चिम यह सब कर देगा। और पश्चिम बड़े रूखे और कठोर तरीके से ऐसा करेगा।क्योंकि मुझे लगता है कि वह एक घोर विपत्ती होगी, जरूरी है कि मुस्लिम जगत इस तथ्य को पहचाने कि उसके बीच में एक जिहादी मौत का वर्ग पल रहा है। अगर वह उससे लोहा नहीं लेता तो वह कैंसर, जो उसके शरीर के भीतर है, हर तरफ मुस्लिम-पश्चिम रिश्तों को संक्रमित कर देगा। केवल मुस्लिम जगत ही उस मौत के वर्ग को जड़ से उखाड़ सकता है।कई लोग कहते है कि फिलिस्तीनी फिदायीन बम हमले फिलिस्तीनी युवकों की हताशा से उपजे थे। लेकिन जब फिलिस्तीनियों ने जान लिया कि इस्रायल के साथ संघर्ष विराम उनके फायदे की बात है तो वे बमबारियां बिल्कुल रुक गईं।मुस्लिम बिरादरान अब तक जिहादी हमलों के उन्माद की भत्र्सना में खुलकर नहीं उतरे हैं। जब सलमान रूश्दी ने पैगम्बर मोहम्मद से जुड़ा एक विवादास्पद उपन्यास लिखा था तो ईरान के एक नेता ने उन्हें मौत का फतवा सुना दिया था। लेकिन आज तक-आज की तारीख तक-किसी बड़े मुस्लिम मौलवी या मजहबी संस्था ने ओसामा बिन लादेन की भत्र्सना करते हुए फतवा जारी नहीं किया है।लंदन की दोतल्ला बसें और पेरिस के भूमिगत रास्ते या फिर रियाद के ढंके बाजार, बाली और केयरो तब तक सुरक्षित नहीं होंगे जब तक मुस्लिम बिरादरान और बड़े-बूढ़े अपने बीच से आतंकवादियों को निकाल बाहर नहीं करते, उनकी भत्र्सना नहीं करते।(एशियन एज, 9 जुलाई, 2005 से साभार)NEWS

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