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चर्चा सत्र

by
Jun 3, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Jun 2005 00:00:00

मा.गो.वैद्यगोवा में जो हुआगत 2 फरवरी को गोवा के राज्यपाल एस.सी.जमीर ने मनोहर पर्रीकर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को बहुमत प्राप्त करने के बाद भी बर्खास्त कर प्रताप सिंह राणे के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनवा दी थी। राज्यपाल के इस कदम को पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करके चुनौती दी। याचिका पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने गत 21 फरवरी को सुनवाई की। बहस में श्री पर्रीकर की ओर से पूर्व अटार्नी जनरल सोली सोराबजी ने भाग लिया। सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने गोवा सरकार और मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे को नोटिस जारी किया। सर्वोच्च न्यायालय के इस कदम से पणजी से लेकर दिल्ली तक के कांग्रेसी नेताओं में खलबली मच गई। हताश होकर राज्यपाल जमीर भी दिल्ली आए और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, गृहमंत्री शिवराज पाटिल आदि नेताओं से मंत्रणा की। इस बीच खबर मिली है कि भाजपा विधायक दिगम्बर कामत ने सदन की सदस्यता से त्यागपत्र देकर परिस्थितियों में एक नया मोड़ पैदा कर दिया है। पूरा प्रकरण राज्यपाल जमीर के विवादित फैसले से उपजा। राज्यपाल जमीर के निर्णय के बाद पैदा हुई परिस्थिति के भविष्य में उपचार के लिए संवैधानिक सुधार की आवश्यकता बता रहे हैं वरिष्ठ स्तंभकार श्री मा.गो.वैद्य। सं.गोवा के राज्यपाल एस.सी. जमीर ने अपने एक विवादित फैसलेके बाद पद की गरिमा को निश्चित रूप से ठेस पहुंचाई है। संसदीय परम्पराओं को ताक पर रखने और नैतिक मूल्यों की सरासर अनदेखी करने वाले वे एकमेव राज्यपाल नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल रमेश भण्डारी ने भी कभी प्रदेश में कांग्रेस को सत्तारूढ़ करने के लिए संसदीय तौर-तरीकों का गला घोंटा था। आगे चलकर उनकी जो फजीहत हुई, सब जानते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि वर्तमान केन्द्र सरकार के समर्थन के बिना जमीर को इतना बड़ा गैरकानूनी कदम उठाने की हिम्मत ही नहीं होती। कुल मिलाकर कांग्रेस की नीति अल्पसंख्यकों- मुसलमानों तथा ईसाइयों- की खुशामद करने की रही है। राष्ट्रवादी मुसलमानों को छोड़ दें तो शेष मुसलमानों पर कट्टरवादी सोच के मुसलमानों का नेतृत्व हावी रहा है। यह नेतृत्व न केवल देश के विभाजन का समर्थक था, बल्कि आज भी वह वर्तमान भारत में एक और पाकिस्तान बनाने के मंसूबे बांध रहा है। हमारे सेकुलरवादी नेता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस नेतृत्व का समर्थन ही कर रहे हैं।राज्यपाल बनने के पहले जमीर नागालैण्ड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अत: उन्हें संविधान, संसदीय परिपाटी, संवैधानिक औचित्य आदि बातों का भान और ध्यान नहीं है, ऐसा तो कहा नहीं जा सकता। अब यदि कांग्रेस दल का अर्थात् उसकी अध्यक्षा का किसी प्रदेश में भाजपा सरकार को गिराकर कांग्रेस की सरकार स्थापित करने का निर्णय ही हो चुका हो, उससेे जमीर मुंह नहीं मोड़ सकते। हमारे विधायकों में कुछ बिकाऊ किस्म के लोग होते हैं, इसी कारण कुछ विधायकों ने पाला बदल लिया। विधायकों की संख्या 40 से 36 पर आ गई और दोनों दल-भाजपा व कांग्रेस-बराबरी की संख्या पर आ गए। ऐसी स्थिति में सभा के सभापति का निर्णायक मत भाजपा को जा सकता है। अत: भाजपा से एक और विधायक का फूटना जरूरी था। उन्हें राड्रिक्स बड़ी भारी कीमत पर मिले। कीमत? उप मुख्यमंत्री पद का तोहफा लेकर वे कांग्रेस में चले गए। बताया जाता है कि यह मामला दल-बदल विरोधी कानून के दायरे में आता है और विधायकी खारिज करने का अधिकार तो सदन के अध्यक्ष को ही होता है। गोवा विधानसभा के अध्यक्ष ने अभी तक राड्रिक्स की सदस्यता रद्द नहीं की है, मामला विचाराधीन है। पर सदन के किसी सदस्य को सदन से बाहर जाने का आदेश देने का अधिकार तो अध्यक्ष को होता ही है! विधानसभा अध्यक्ष सातारकर ने अपने अधिकारों का प्रयोग किया। राड्रिक्स खुद सदन के बाहर नहीं जा रहे थे, तो मार्शल को बुलाया गया। इस पर राड्रिक्स की सहायता के लिए कांग्रेसी विधायक दौड़ पड़े। एक बार को मान भी लिया जाए कि अध्यक्ष ने गलत निर्णय लिया था है तो उसके विरुद्ध न्यायालय का दरवाजा भी तो खुला था। कांग्रेसियों को राज्यपाल के पास दौड़े-भागे जाने की क्या जरूरत थी? कांग्रेसी विधायक जब सदन के बाहर थे, तभी मतदान हुआ। इसमें अध्यक्ष की क्या गलती थी?राज्यपाल उत्तर देंविधानसभा अध्यक्ष ने यदि “अन्याय की पराकाष्ठा” भी की थी तो राज्यपाल को संवैधानिक तरीकों से सभा को बर्खास्त करने को अधिकार भी था। केन्द्र की एक रपट भेजकर, संविधान की धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन भी लागू किया जा सकता था। पर राज्यपाल ने वैसा नहीं किया क्योंकि संभवत: आदेश नहीं थे। इसीलिए तो शाम को पर्रीकर सरकार को बर्खास्त कर दिया और मध्यरात्रि में कांग्रेस के प्रताप सिंह राणे को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। जमीर यह भी बताएं कि नई सरकार बनाने के लिए मध्यरात्रि का समय ही क्यों चुना गया था? एक और ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसी के साथ दल-बदलू राड्रिक्स को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ भी दिलाई गई।पद की गरिमाराणे सरकार को अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया था। संभवत: कांग्रेस को कुछ और सदस्य तोड़ने थे, उसके लिए इतनी लम्बी अवधि दी गई होगी। मामला तो अब न्यायाधीन है और ऊंट किस करवट बैठता है, यही देखना है। राड्रिक्स के साथ एक और उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। दोनों ईसाई हैं। संभवत: मुख्यमंत्री ईसाई न होने के कारण कुछ संतुलन बनाने का प्रयास हुआ है। आखिर गोवा राज्य कितना बड़ा है कि जिसकी सरकार के लिए दो उपमुख्यमंत्री बनाने की जरूरत हो? गोवा में कुल विधायक हैं-40 और सांसद केवल 2-अर्थात् प्रति सांसद विधायक होते हैं-20। यही अनुपात यदि अन्य कुछ राज्यों के संदर्भ में देखें तो महाराष्ट्र में प्रति सांसद 6 विधायक, उत्तर प्रदेश में केवल 5, राजस्थान में 8 और गोवा में 20। इसी से गोवा राज्य के परिमाण का अंदाजा मिल जाएगा। फिर भी वहां दो उपमुख्यमंत्री, और दो अन्य मंत्री तो ऐसे हैं जिन्हें कोई विभाग ही नहीं दिया गया! राणे सरकार को विश्वासमत प्राप्त करने में कठिनाई होगी। अगर यह सरकार विश्वासमत प्राप्त नहीं कर पाई तो राष्ट्रपति शासन लागू होगा। जब ऐसा ही होना था तो इतना नाटक क्यों किया गया? इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक भाजपा के एक विधायक ने सदन से इस्तीफा दिया है। परिस्थितियों में निश्चित रूप से बदलाव हुआ है।बहरहाल, यह सच है कि प्रजातंत्र में कुछ खामियां होती हैं। परन्तु इस तंत्र में कुछ “धृतराष्ट्र” होते हैं तो “भीष्म पितामह” और “विदुर” भी होते हैं। क्यों न ये दोनों साथ बैठकर संविधान द्वारा प्रतिष्ठित राज्यपाल के गरिमामय पद को कलुषित करने की भविष्य की किसी भी संभावना के विरुद्ध कुछ संवैधानिक प्रावधान बनाएं? यह आज की आवश्कयकता भी है।NEWS

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