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महाराष्ट्र

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Jun 2, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Jun 2005 00:00:00

मंदिर में भगदड़, 400 श्रद्धालुओं की अकाल मृत्युक्यों होता है ऐसा?-प्रतिनिधिभगदड़ में मारे गए एक नन्हे की मृत देह से लिपटकर रोता हुआ उसका पितामंदिर परिसर में यूं बिखरे थे मृतकों के शव25जनवरी को वाई (सतारा) में अच्छी-खासी ठंडी हवा बह रही थी। वैसे भी महाराष्ट्र में सह्राद्री के अंचल में बसा महाबलेश्वर-पंचगनी-वाई का क्षेत्र खुशनुमा मौसम के लिए मशहूर है। इसी वाई के पास मांढरदेवी पहाड़ी पर कालूबाई के मंदिर में शाकंभरी पूर्णिमा की बड़ी यात्रा होती है। इस साल मंगलवार (25 जनवरी) को शाकंभरी पूर्णिमा होने के कारण श्रद्धालुओं में खासा उत्साह था। लगभग साढ़े चार लाख श्रद्धालु सवेरे से ही पहाड़ी पर बने मंदिर की ओर चल दिए थे।कालूबाई मंदिर के पहले बाबा मांगीरनाथ का मंदिर है। यात्रा के दिन यहां नारियल का भोग लगाया जाता है। मंगलवार को भक्तों की संख्या पांच गुना ज्यादा होने की वजह से इतने अधिक नारियल चढ़ाए जा रहे थे कि मंदिर में जगह नहीं मिली तो सीढ़ियों पर ही भक्तों ने नारियल तोड़कर उनका जल चढ़ाना शुरू कर दिया। अंतत: यही सैकड़ों भक्तों की असमय मृत्यु का कारण बना।नारियल तोड़ने के बाद उनका पानी और खोल वहीं आस-पास गिराए जा रहे थे। अत: काफी मात्रा में पानी सीढ़ियों पर बहने लगा जिससे फिसलन हो गई। दोपहर डेढ़ बजे के करीब कुछ महिलाएं तथा छोटे बच्चों की एक टोली वहां से गुजर रही थी। फिसलन की वजह से कुछ महिलाएं सीढ़ियों पर फिसल गईं। उनके गिरते ही नीचे की ओर भगदड़ मची और लोग उलटी तरफ भागने लगे। ऊपर चढ़ रहे भक्तों से ये टकराए और फिर शुरू हुआ अफरातफरी का माहौल। देखते ही देखते हजारों श्रद्धालु, जिनमें महिलाओं तथा बच्चों की संख्या ज्यादा थी, इस भागमभाग में कुचल गए।लेकिन यह जानलेवा भगदड़ यहीं पर नहीं रुकी। मंदिर के पास भोग एवं प्रसाद आदि की कुछ दुकानें थीं। बिजली के तार जहां से जा रहे थे वहां पर भी नारियल का पानी भर गया। उससे न जाने कैसे चिंगारियां भड़क उठीं। पहले से ही भगदड़ के उस माहौल को इन चिंगारियों ने और हवा दी। आग की अफवाहों ने आपाधापी और बढ़ा दी। मांढरदेवी पर्वत के नीचे तक इस घटना की खबर पहुंच ही गई थी। दुर्घटना में अपने कोई साथी-रिश्तेदार तो नहीं हैं, यह देखने के लिए अनेक भक्त ऊपर जाने की होड़ में थे। आगजनी से उन दुकानों में रखे गैस सिलिंडरों में भी विस्फोट हुए जिससे स्थिति और बेकाबू हो गई।लगभग 400 श्रद्धालुओं की बलि लेकर यह आगजनी थमी। मृतकों के परिजनों का आर्तनाद और झुलसता मंदिर प्रांगण। अंत्येष्टि स्थल जैसा दृश्य। मांढरदेवी दुर्घटना ने कुछ बुनियादी सवाल खड़े किए हैं। ऐसी दुर्घटना से बचाव में मंदिर व्यवस्थापन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होनी चाहिए। भारत के अनगिनत मंदिरों में प्रवेश तथा निकास के मार्ग इतने संकरे हैं कि दो व्यक्ति एक साथ न प्रवेश कर सकते हैं, न बाहर आ सकते हैं।हालांकि इस दुर्घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। राजनीतिज्ञों में स्वार्थ किस हद तक होता है, उसकी भी एक बार फिर कलई खुल गई। एक के बाद एक नेता दुर्घटनास्थल का दौरा करने आते रहे और हताहतों को राहत की पेशकश करने के साथ ही दूसरों की गलतियां गिनाते रहे। राज्य के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने जो भी राहत राशि घोषित की हो, परन्तु उन्होंने मंदिर पर लगने वाले इस बड़े मेले की समुचित व्यवस्था के लिए अपने प्रशासन को चुस्त क्यों नहीं किया था? इस कांड की जांच करवाने की घोषणा करने वाले मुख्यमंत्री देशमुख ने आगे ऐसी घटनाएं न हों, इसकी कोई कार्ययोजना प्रस्तुत क्यों नहीं की?NEWS

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