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जरधर गांव के जरधारी लगे हैं बीज बचाव मेंहरित क्रांति की चर्चा शुरू होते ही पंजाब का नाम लोगों के मुंह से अचानक निकल जाता है। लेकिन इस क्रांति ने अब पंजाब को मरुस्थल बनने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। इससे बचाव के लिए राज्य के तत्कालीन योजना परिषद् के अध्यक्ष एस.एस. जौहल ने किसानों को फसली चक्र में परिवर्तन करने की सलाह दी थी। उल्लेखनीय है कि पंजाब का जलस्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। वहां के किसान भी अब पारंपरिक बीज व खेती की विधि को अपनाने लगे हैं। लेकिन इसकी सबसे ज्यादा चिंता हुई उत्तरांचल के टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में स्थित जरधर गांव के निवासी विजय जरधारी को।श्री जरधारी चिपको आंदोलन में भी भाग ले चुके हैं। जब स्थानीय कृषकों ने खेती के पारंपरिक तरीकों को ठुकराना शुरू किया तो उन्हें लगा कि यह प्रवृत्ति देश की समृद्धि को तबाह कर देगी। फिर उन्होंने 1983 में बीज बचाओ आंदोलन की शुरुआत की। उनके अनुसार अब तक देश में उगाए जाने वाले धान की प्रजातियों में केवल 50 प्रजातियां ही शेष बची थीं। पारंपरिक खेती को संरक्षित करने के लिए जरधारी ने चिपको कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बीज इकट्ठा करना, उनका ब्यौरा रखना व स्थानीय फसल प्रजातियों का प्रचार करना शुरू किया। अभी तक बीज बचाओ आंदोलन ने धान की 300, सेम की 180, गेहूं की 40 और बाजरे की 40 प्रजातियों का पता लगाया है। माना जा रहा है कि इनमें से कई प्रजातियां विलुप्त हो गई थीं।बिना किसी सरकारी सहायता के चलाए जा रहे इस आंदोलन ने नायाब प्रजातियों के बीजों का ऐसा खजाना ढूंढ निकाला है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी उगाए जा सकते हैं। जरधारी के अनुसार इससे केवल बीज ही संरक्षित नहीं हो रहे हैं बल्कि पारंपरिक कृषि व्यवस्था भी पुनर्जीवित हो रही है। एक साथ 12 फसलों को उगाया जा सकता है। हर महीने एक फसल भी काटी जा सकती है। जरधारी के विश्वास को उस वक्त बल मिला जब 1998 में “नेशनल ब्यूरो आफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज” ने उनका बीज संग्रह मांगा। हालांकि उन्होंने इसे देने से इंकार कर दिया। उनके अनुसार, “बीज किसानों के पास ही रहने चाहिए, नहीं तो हम अपनी परंपरा को भुला बैठेंगे।”(स्रोत : इंडिया टुडे,21 फरवरी, 05)NEWS
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