ध्येय साधक शेषाद्रि जी की स्मृति में श्रद्धाञ्जलि
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ध्येय साधक शेषाद्रि जी की स्मृति में श्रद्धाञ्जलि

by
Apr 9, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Apr 2005 00:00:00

सच में विदेह थेप्रतिनिधिहो.वे. शेषाद्रि”सच में विदेह थे तुम, कहने को देहधारी।” स्व. शेषाद्रि जी की श्रद्धांजलि सभा में जब यह गीत गाया गया तो लोग बरबस ही उनकी पवित्र स्मृति में खो गए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रान्त द्वारा स्व. शेषाद्रि जी की स्मृति में श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन गत 22 अगस्त को मावलंकर सभागार में किया गया था। कार्यक्रम के प्रारम्भ में रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन, उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह शेखावत, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सरदार तरलोचन सिंह, रा.स्व.संघ के क्षेत्र संघचालक डा. बजरंग लाल गुप्त तथा प्रान्त संघचालक श्री सत्यनारायण बंसल द्वारा स्व. शेषाद्रि जी के अस्थिकलश पर पुष्पार्पण किया गया।इस अवसर पर अपने उद्बोधन में श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने कहा, “शेषाद्रि जी ने अपने जीवन से हमें बताया कि नींव का पत्थर कैसे बना जाता है।” श्री सुदर्शन ने कहा, “रज्जू भैया उन्हीें को सरसंघचालक का दायित्व सौंपना चाहते थे लेकिन वह टालते रहे और यह क्रम एक वर्ष तक लगातार चला। बाद में उन्होंने मेरा नाम रज्जू भैया को सुझाया। मैंने उनसे कहा कि आप योग्य हैं, आप ही इस गुरुतर दायित्व को संभालें, लेकिन उनका उत्तर था कि अब इस अवस्था में इस पद के साथ मैं न्याय नहीं कर सकूंगा, आप चार-पांच वर्ष छोटे हैं, आगे लम्बे समय तक आप ही इस दायित्व को बखूबी संभाल सकते हैं। इस तरह उन्होंने सरसंघचालक जैसे गुरुतर दायित्व को मेरे कंधों पर डाल दिया।” उन्होंने कहा कि संघ स्थापना के समय संघ कार्य में जिस तत्वनिष्ठा पर डा. हेडगेवार ने बल दिया, वह हमेशा उसी तत्वनिष्ठा के प्रतिबिम्ब बने रहे और इस तत्वनिष्ठा से यदि कोई किंचित हटता तो शेषाद्रि जी ने उसे टोकने में कभी गुरेज नहीं किया। इसी प्रकार प्रत्येक कार्य को करने या किसी निर्णय के पूर्व चार अन्य वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श करने की संघ की कार्यपद्धति के प्रति भी उनका दृढ़तापूर्वक आग्रह रहता था। बिना परामर्श के यदि निर्णय सही भी लिया गया है, तो वह उन्हें जंचता न था। (देखें सुदर्शन जी का विस्तृत वक्तव्य)शेषाद्रि जी को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने वक्तव्य में शेषाद्रि जी के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने शेषाद्रि जी द्वारा संघ के विकास में दिए गए योगदान की चर्चा करते हुए उनकी साहित्यिक कृतियों का विशेष रूप से उल्लेख किया। (देखिए अटल जी का वक्तव्य)इस अवसर पर अपने संक्षिप्त उद्बोधन में उपराष्ट्रपति श्री भैरों सिंह शेखावत ने कहा कि उन्होंने सादगी के साथ एक तपस्वी के रूप में जीवन बिताया। वे व्यक्तिगत चर्चा में सदा देश की समस्याओं के समाधान के उपायों पर मुझसे पूछा करते थे। अपने स्वास्थ्य के बारे में उन्होंने कभी चिन्ता नहीं की। मुझे उनके जीवन, लेखन और वाणी से सदा प्रेरणा मिलती रही है।राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सरदार तरलोचन सिंह ने भी इस अवसर पर स्व. शेषाद्रि जी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि उनकी पुस्तकें पढ़कर मेरे मन में संघ के प्रति अनेक भ्रान्त धारणाओं का समाधान हुआ। वह भारत की विविधतायुक्त संस्कृति पर विश्वास करते थे और सामाजिक भेद मिटाने के लिए उन्होंने जीवनभर प्रयास किए। देश के विभिन्न सम्प्रदायों में परस्पर बातचीत और संवाद बने रहना चाहिए, इस पर उन्होंने मुझसे बातचीत में सदा बल दिया। श्रद्धांजलि सभा के अंत में दिल्ली प्रान्त संघचालक श्री सत्यनारायण बंसल ने शेषाद्रि जी के निधन को अपूरणीय क्षति बताया।स्वामी राघवानन्द, स्वामी गुरुचरण दास, स्वामी विद्यानन्द, स्वामी विवेक शाह, सन्त श्री चक्रपाणी सहित श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित अनेक संत-महात्माओं ने भी शेषाद्रि जी के अस्थिकलश पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इस अवसर पर रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी, रा.स्व.संघ के उत्तर क्षेत्र प्रचारक श्री दिनेश कुमार, प्रान्त प्रचारक श्री प्रेम कुमार, प्रख्यात इतिहासविद् श्री देवेन्द्र स्वरूप, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री श्री मदन लाल खुराना, वरिष्ठ भाजपा नेता प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा, श्रीमती सुषमा स्वराज सहित संघ व भाजपा के अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने स्व. शेषाद्रि जी के अस्थिकलश पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। प्रतिनिधिNEWS

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