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सांसद मर्यादा से हटें तो जनशक्ति एकजुट हो-डा. लक्ष्मी मल्ल सिंघवीवरिष्ठ संविधानविद् एवं पूर्व सांसद (राज्यसभा)सर्वोच्च न्यायालय की व्यथा में वास्तव में संविधान की व्यथा झलकती है। यह एक जनतांत्रिक वेदना है और इस बात की सूचना है कि जो संतुलन हमारे संविधान में अभीष्ट था उसको नकारा जा रहा है। लगता यह है कि जैसे अकारण ही कार्यपालिका और विधायिका शक्तियों ने सर्वोच्च न्यायालय पर एक निन्दनीय आक्रमण का षड्यंत्र किया है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति लाहोटी सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में सुप्रतिष्ठित हैं। मंगलवार 23 अगस्त को उन्होंने जो कहा, वह वास्तव में एक चेतावनी और राष्ट्र के नाम एक संदेश के रूप में देखा जाना चाहिए। मुझे कष्ट इस बात का है कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन जैसे प्रबुद्ध और संतुलित नेता के नेतृत्व में जो राजनीतिक खिचड़ी पकाई जा रही है, उससे राष्ट्र का भयंकर अहित हो सकता है।सर्वोच्च न्यायालय की विश्वसनीयता आज भी जनता के मानस में अकाट्य है और निरपवाद है। मैं समझता हूं कि जो सांसद संसद के सर्वोच्च होने की बात करते हैं उन्होंने न संविधान का इतिहास पढ़ा है, न संविधान का पारायण किया है और न दुनिया की विभिन्न संवैधानिक व राजनीतिक व्यवस्थाओं को जानने की कोशिश की है। समझ में नहीं आता कि क्यों संसद में गलतबयानी से गलतफहमियां उत्पन्न की जा रही हैं? क्यों भारतीय संविधान के सबसे समर्थ, सक्षम और विवेकसम्मत स्तम्भ को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है?जब-जब संसद और कार्यपालिका ने हमारे संविधान और संविधान की व्यास पीठ अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय पर आक्रमण किया है तब-तब जनता को यह आभास हुअा है कि राजनीतिक शक्तियां मदोन्मत्त होकर निरंकुश स्वेच्छाचार को प्रतिष्ठित करना चाहती हैं। अगर हमारी व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय नहीं होगा तो संविधान का संतुलन नहीं रह पाएगा और यह भी स्पष्ट है कि तब नागरिकों के अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे।संविधान के अंतर्गत जो दायित्व सर्वोच्च न्यायालय को सौंपा गया है वह अधिकांशत: पूरी निष्ठा के साथ, ईमानदारी के साथ निभाया गया है। सांसद अपनी मर्यादाओं से हटकर अगर किसी प्रकार के आक्रमण की तैैयारी में हैं तो पूरी जनशक्ति को, संचारतंत्र को एकजुट होकर निरंकुशता का, संविधान की उपेक्षा का सामना करना होगा। अगर समय रहते संसद और कार्यपालिका ने संविधान के इस मूल तथ्य को नहीं समझा तो हमारी राजनीतिक व्यवस्था बद से बदतर होने के खतरे में पड़ जाएगी। संविधान नारों से नहीं चलता है बल्कि वह चलता है संतुलन और विवेक से। लोकशाही चलती है न केवल उद्धत उन्माद से बल्कि मर्यादा के पालन से। मैं मानता हूं कि प्रधानमंत्री इस निरर्थक विवाद को कोई सहारा नहीं देना चाहते। सब पार्टियों को समझना चाहिए कि सवाल सत्ता का नहीं, संविधान का है।NEWS
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