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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भमेरा दर्द उन्होंने जानाश्रीमती रानी सहरावत अपनी सास के साथमेरी सास, मेरी मां, मेरी बहू, मेरी बेटीजब भी सास बहू की चर्चा होती है तो लगता है इन सम्बंधों में सिर्फ 36 का आंकड़ा है। सास द्वारा बहू को सताने, उसे दहेज के लिए जला डालने के प्रसंग एक टीस पैदा करते हैं। लेकिन सास-बहू सम्बंधों का एक यही पहलू नहीं है। हमारे बीच में ही ऐसी सासें भी हैं, जिन्होंने अपनी बहू को मां से भी बढ़कर स्नेह दिया, उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। और फिर पराये घर से आयी बेटी ने भी उनके लाड़-दुलार को आंचल में समेट सास को अपनी मां से बढ़कर मान दिया। क्या आपकी सास ऐसी ही ममतामयी हैं? क्या आपकी बहू सचमुच आपकी आंख का तारा है? पारिवारिक जीवन मूल्यों के ऐसे अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करने वाले प्रसंग हमें 250 शब्दों में लिख भेजिए। अपना नाम और पता स्पष्ट शब्दों में लिखें। साथ में चित्र भी भेजें। प्रकाशनार्थ चुने गए श्रेष्ठ प्रसंग के लिए 200 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।शादी के बाद नया माहौल, नया परिवार, सब कुछ नया-नया ही होता है, और ऐसा ही मुझे भी मिला। अपने मायके में तो मैं सदा हंसती-खेलती और नाचती-गाती रहती थी लेकिन ससुराल में आते ही सारी मस्ती काफूर हो गई। काम, काम और काम, इसी में दिन बीत जाता और कब रात हो जाती, पता ही न चलता था। ससुराल में हर कोई मेरे काम से खुश रहे, मैंने हमेशा यही प्रयास किया। एक दिन मेरे पति ने मुझसे कहा, “मेरे चार-पांच मित्र आने वाले हैं, सब साथ में भोजन करेंगे, इसलिए कुछ ऐसा बनाओ कि सब प्रसन्न हो जाएं।” मैं रसोई में भोजन की तैयारी में जुट गई। लेकिन अचानक चूल्हे पर रखे उबलते पानी का भगौना संडसी से उठाते समय फिसल गया और खौलता पानी गिरने से मेरे पैर बुरी तरह जल गए। मैं चीख पड़ती लेकिन मैंने अपना मुंह अपने हाथों से दबा लिया और दर्द से कराहने लगी। तभी अचानक सासू मां रसोई में आ गयीं। एक बार तो लगा कि डांट सुननी पड़ेगी, लेकिन उन्होंने रसोई में घुसते हुए ही समझ लिया कि माजरा क्या है। मुझे ले जाकर उन्होंने अपने कमरे में बैठाया, ठण्डे पानी से पैरों को खूब धोया और मुझे कमरे में ही रहने को कहकर स्वयं रसोई में जुट गईं। जब पतिदेव के दोस्त भोजन पर आए तो सभी को प्रेमपूर्वक भोजन भी कराया। भोजन करते समय जब आगन्तुकों ने भोजन की प्रशंसा की तो मां जी कहने से नहीं चूकीं, “अरे, मेरी बहू ने जो बनाया है।” सब मेरी प्रशंसा करने लगे। मैं दरवाजे के पीछे खड़ी-खड़ी सब सुन रही थी। तब मुझे पहली बार अहसास हुआ कि कितनी अच्छी हैं मेरी सासू मां। आज मेरे विवाह को 15 साल होने को हैं, उनकी स्नेहछाया हमेशा मेरे ऊपर बनी रहती है। बस भगवान इसे हमेशा बनाए रखे, यही मेरी मनोकामना है।रानी सहरावतहोली चौकी, बक्करवाला, नई दिल्ली-41NEWS
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