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पाठकीय

by
Feb 10, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Feb 2005 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 4 सितम्बर, 2005विधायिका और न्यायपालिकापञ्चांगसंवत् 2062 वि., वार ई. सन् 2005आश्विन कृष्ण 14 रवि 2 अक्तूबर, 05(गांधी एवं शास्त्री जयन्ती)आश्विन अमावस्या सोम 3 ,,(सोमवती अमावस्या, सूर्य ग्रहण)आश्विन शुक्ल 1 मंगल 4 ,,(शारदीय नवरात्रारम्भ),, ,, 2 बुध 5 ,,,, ,, 3 गुरु 6 ,,,, ,, 4 शुक्र 7 ,,,, ,, 5 शनि 8 ,,देखा जाता है कि न्यायपालिका के कुछ निर्णय विधायिका को बिल्कुल पसन्द नहीं आते हैं। इस कारण इन दोनों में टकराव की स्थिति पैदा होती है। विधायिका को जब भी लगा कि सर्वोच्च न्यायालय का अमुक निर्णय उसके हिसाब से ठीक नहीं है, तो वह उसे कानून बना कर पलट देती है। जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चुनाव में भ्रष्टाचार के आरोप के बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी का निर्वाचन निरस्त किया था, उस समय देश में आपातकाल की घोषणा की गई और चुनाव कानून में संशोधन कर उन्हें बचा लिया गया।दूसरी बार जब इंदौर की एक महिला शाहबानो के प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त कर सकती है, तो श्री राजीव गांधी की सरकार ने उस निर्णय को भी कानून बनाकर निरस्त कर दिया। देश में समान नागरिक संहिता बनाने के लिए संविधान में विधायिका को निर्देश दिए गए हैं परन्तु विधायिका ने अभी तक उन निर्देशों का पालन नहीं किया है और देश में अलग-अलग निजी कानून चल रहे हैं। जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार कहा है कि विधायिका को समान नागरिक संहिता बनानी चाहिए। कहा जाता है कि विधायिका तथा न्यायपालिका के कार्य क्षेत्र अलग-अलग हैं, परन्तु विधायिका अपने वोट बैंक के अनुसार कानून बदलती रहती है और न्यायपालिका देशहित को सामने रखकर निर्णय देती है।- उत्तमचंद ईसराणी वरिष्ठ अधिवक्ता, 20,सिन्धी कालोनी, बैरसिया मार्ग, भोपाल (म.प्र.)राष्ट्रीय अस्मिता से खिलवाड़ करने वालेदेश के अपराधीमंथन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप का आलेख “न्यायमूर्ति लाहोटी की पीड़ा पूरे देश की पीड़ा” भारतवासियों के दिल की पुकार को व्यक्त करता है। लेख की अन्तिम पंक्तियां “क्या जनता एकजुट होकर न्यायपालिका के पीछे खड़ी होगी…?” विशेष महत्वपूर्ण हैं और इस सम्बंध में जनता अपेक्षित मार्गदर्शन चाहती है। आम आदमी का न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है, किन्तु उसकी जटिल प्रक्रिया एवं आर्थिक पक्ष विचारणीय हैं। ऐसे अनेक मुद्दे हैं, जिन पर आम जनता सोचती-विचारती है, पर उसे कार्यरूप में उतारने का कोई मार्ग नहीं दिखता।- ऋषिराज तिवारी, 2ए, 26, गुप्तेश्वर नगर,सेक्टर-7, हिरणमगरी, उदयपुर (राजस्थान)संप्रग सरकार संविधान की धज्जियां उड़ाने में लगी है। जब संविधान की रक्षा के लिए न्यायपालिका आगे आती है तो उसे कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव की संज्ञा दी जाती है। क्या अब तक जितने भी संविधान संशोधन हुए हैं, वे देश हित में हुए हैं? एक स्वतंत्र निकाय के जरिए इसकी जांच होनी चाहिए। न्यायपालिका के अधिकारों को कोई चुनौती नहीं दे सकता, क्योंकि ये अधिकार उसे संविधान से मिले हैं।- दिलीप शर्मा, 114/2205,एम.एच.वी. कालोनी, कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)न्यायमूर्ति लाहोटी की आवाज मानो तुच्छ राजनीति के तले दबा देने की कोशिश की गई है। कहा गया कि वे अपनी सीमा से बाहर जा रहे हैं। ऐसे लोगों को स्मरण रखना चाहिए कि समय-समय पर अनेक न्यायाधीशों ने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किए हैं और समाज ने उनके विचारों को माना भी है। किन्तु आश्चर्य है कि इनसे राजनीतिज्ञ कुछ सीख नहीं ले रहे हैं और उनकी दृष्टि जातिवाद एवं कट्टरवाद को बढ़ावा देने तक ही सीमित है।- प्रो. राजाराम, एच-8, सप्तवर्णी,सूर्य कालोनी, कोलार मार्ग, भोपाल (म.प्र.)पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने विश्व लोचन मदान नामक व्यक्ति की जनहित याचिका पर विचार करके आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड, दारूल उलूम, देवबंद और इस्लामिक सेमिनरी को नोटिस भेजा था। किन्तु इस नोटिस की परवाह न करते हुए दारूल उलूम ने एक फतवा जारी किया कि मुस्लिम महिलाएं किसी भी प्रकार का चुनाव नहीं लड़ सकती हैं और यदि उन्हें चुनाव लड़ना भी पड़े तो यह काम उन्हें बुर्के में रहकर करना चाहिए। क्या यह सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना नहीं है?- विनोद कुमार गुप्तापार्क रोड, लखनऊ (म.प्र.)धिक्कार हैश्री प्रदीप कुमार की रपट “तिरंगे का अपमान” पढ़ी। दु:ख होता है कि यह खबर 15 दिन बाद, वह भी सिर्फ पाञ्चजन्य में पढ़ने को मिली। इतनी बड़ी घटना घटी, पर किसी भी सेकुलर समाचार पत्र या चैनल में यह खबर न पढ़ने को मिली, न देखने को। धिक्कार है ऐसे समाचार पत्रों और चैनलों को, जो राष्ट्रीय अपमान से जुड़ी एक खबर को छापने या दिखाने की हिम्मत नहीं कर पाते।-वेद प्रकाश विभीषणस्वामी विवेकानन्द मार्ग, जी टांड़, गया (बिहार)राष्ट्रीय ध्वज का अपमान राष्ट्र का अपमान होता है। इसके बावजूद 15 अगस्त के दिन मुस्लिम लीग ने केरल में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया। इससे बड़ी अपमानजनक बात तो यह है कि प्रशासन केवल देखता रहा। वह हिम्मत नहीं जुटा सका कि इसके दोषियों पर हाथ डाल सके। ऐसे राष्ट्रद्रोही तत्वों को वर्तमान केन्द्र सरकार भी प्रश्रय देती है। लोग सब कुछ देख रहे हैं, इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना ही पड़ेगा।-मनोज कुमार भारतीभागलपुर (बिहार)अमरीका का सत्यअमरीका की खुल गई, दुनियाभर में पोलबाहर चाहे जो दिखे, भीतर से है ढोल।भीतर से है ढोल, कैटरीना जब आयाऊपर से नीचे तक सारा तंत्र हिलाया।कह “प्रशांत” सब तरफ लूट औ मार-पिटाईअमरीका का सत्य यही है मेरे भाई।।- प्रशांतसूक्ष्मिकानेक सलाहउनकीदिली तमन्ना हैमुसलमान मुख्यमंत्री ही चाहिए,नेक सलाहपाकिस्तान पहुंचिएसन्तरी से लेकर प्रधानमंत्री तकमुसलमान ही पाइए।- कुमुद कुमार, ए-5,आदर्श नगर, नजीबाबाद, बिजनौर (उ.प्र.)28 अगस्त क्यों?श्री रामप्रकाश मिश्र के आलेख “वीरांगना अमृता देवी” से पता चला कि भारतीय मजदूर संघ ने 28 अगस्त को पर्यावरण दिवस घोषित किया है। मेरी जानकारी के अनुसार वह घटना 5 सितम्बर, 1730 (भाद्र शु.90, वि.सं. 1787) को हुई थी। यदि अंग्रेजी तिथि अपनाने की इच्छा है, तो 5 सितम्बर को अपनाएं। वैसे भाद्र शु. 10 को पर्यावरण दिवस मनाने में उन्हें क्या आपत्ति है, समझ नहीं आया। साथ ही, जहां तक मुझे जानकारी है, उस अमर बलिदानी का नाम इमरती देवी था, अमृता देवी नहीं। हमारी शहरी मानसिकता है कि हम ग्रामीण नामों से घृणा करते हैं। भाद्र शु. 10 को वीरांगना इमरती देवी के क्षेत्र में प्रतिवर्ष मेला लगता है। यदि पर्यावरण संरक्षण की चाह है तो तथाकथित शहरी और शिक्षित मानसिकता का छद्म आवरण त्यागना होगा।- विजय कुमार, राष्ट्रधर्म,राजेन्द्र नगर, लखनऊ (उ.प्र.)एकजुटता दिखाएंपाकिस्तानी जेल में बंद निर्दोष सरबजीत सिंह की रिहाई के लिए भारतीयों ने एकजुटता का प्रदर्शन किया। परन्तु 30 वर्षों से भी ज्यादा समय से बंद हमारे वीर सैनिकों की पाकिस्तानी जेलों से रिहाई के लिए जन सामान्य की ओर से ऐसे विशेष प्रयत्न नहीं किए गए। मेरा मानना है कि सरबजीत की रिहाई के लिए जो एकजुटता हमने दिखाई है वैसी ही एकजुटता उन बहादुर सैनिकों की रिहाई के लिए भी दिखानी होगी।- आनन्द कुमार भारतीयहोमियोपैथिक मेडिकल कालेज, मोतिहारी (बिहार)सुखद अनुभूतिप्रकृति भारती संस्था से संबंधित श्री विजय कुमार का आलेख पढ़कर सुखद आनंद की अनुभूति हुई। पूरे विश्व में, विशेषकर पश्चिम में विगत 300 वर्षों से प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर दोहन हो रहा है। अमरीका के एक पूर्व उपराष्ट्रपति ने एक बार कहा था- “हम विगत 300 वर्षों से गलत राह पर हैं। यह समय पुनर्विचार का है और नेतृत्व के लिए पूरब की ओर लौटने का।” प्रकृति भारती जैसी संस्थाओं के कारण ही पश्चिम के लोग ऐसे विचार व्यक्त करते हैं।मोहित कुमार मंगलम्, कुशी (स्टेशन टोला),पो. कांटी, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार)जनमनपाञ्चजन्य के अंतरताना संस्करण पर अब नियमित रूप से जनमत सर्वेक्षण भी किया जाता है। पाठकों से आग्रह है कि वे अधिक से अधिक मित्रों तक पाञ्चजन्य के अंतरताना संस्करण का पता भेजें और साथ ही पाञ्चजन्य के अंत:क्षेत्र को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए हमें इस पते पर अपने सुझाव लिख भेजें -पाञ्चजन्य अंतरताना संस्करणद्वारा सम्पादक पाञ्चजन्यसंस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, नई दिल्ली-110055अणु डाक – editor@panchjanya.comअंतरताना – www.panchjanya.comपिछले सप्ताह हमने अंतरताना संस्करण में प्रश्न किया था कि क्या विज्ञापनों में खिलाड़ियों की बढ़ती रुचि उनके खेल-प्रदर्शन पर विपरीत असर डालती है? इस प्रश्न के भारी संख्या में उत्तर प्राप्त हुए हैं।हां – – – – – – – – – – – – 72.22 प्रतिशतनहीं – – – – – – – – – 16.67 प्रतिशतकह नहीं सकते – – – – – – – 11.11 प्रतिशतइस सप्ताह का प्रश्न है -क्या किसी सरकारी विश्वविद्यालय में मजहब के आधार पर आरक्षण जायज है?अपना मत www.panchjanya.com पर जनमन के बक्से में डालें।NEWS

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