|
व्यवस्था परिवर्तन के लिए उठी आवाज-सुमीत कुमारगत 20 नवम्बर को भारत विकास के एक नए सपने को लेकर देश के कोने-कोने से लोग वाराणसी आए। आयोजन था भारत विकास संगम का और निमंत्रण था विख्यात चिंतक गोविन्दाचार्य का।सर्वेभवन्तु सुखिन: ट्रस्ट, दिल्ली और सुरभि शोध संस्थान, वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में 20 से 22 नवम्बर तक चले “भारत विकास संगम” में देशभर के 116 जिलों से 64 बहुविध रचनात्मक एवं आन्दोलनात्मक प्रकल्पों से जुड़े 372 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।संगम के उद्घाटन सत्र में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक श्री कुट्टी मेनन मुख्य अतिथि, श्री आनन्द सुब्रामण्यण शास्त्री अध्यक्ष एवं श्री शरद कुमार साधक मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे। वाराणसी से लगभग 15 कि.मी. दूर हरहुआ के पास चक्का नामक गांव में यह संगम वाराणसी शहर के साथ-साथ पूरे देश के लोगों के लिए चर्चा का एक विषय बना हुआ था। एक ओर जहां लोग यह जानने के उत्सुक थे कि राजनीतिक जीवन का त्याग करने के बाद गोविन्दाचार्य क्या कर रहे हैं, वहीं यह भी आशा थी कि वह देश के सामने विकास की एक नई दिशा प्रस्तुत करेंगे। सत्र के प्रारम्भ में श्री गोविन्दाचार्य ने भारत विकास संगम की प्रस्तावना रखी। उन्होंने कहा कि भारत अब पुनर्रचना की बाट जोह रहा है क्योंकि भारत की तासीर समझे बिना देश में स्थापित की गई व्यवस्थाएं असफल सिद्ध हो चुकी हैं।सत्र के मुख्य वक्ता श्री शरद कुमार का कहना था कि “सबको भोजन, सबको काम” का लक्ष्य सरलता से प्राप्त किया जा सकता है, बशर्ते कार्य करने का जज्बा हो। उन्होंने कहा कि देश की तीन प्रमुख समस्याएं हैं, बेकार आदमी, बेकार भूमि और बेकार साधन। इन तीनों का समुचित उपयोग कर विकास की नई गाथा लिखी जा सकती है जिसके चार स्तम्भ होंगे-संवेदनशील भारत, तेजस्वी भारत, स्वाभिमानी भारत, समृद्ध भारत।श्री कुट्टी मेनन ने जैविक कृषि के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ न करते हुए भी कृषि से अधिकाधिक एवं बेहतर गुणवत्ता का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।अध्यक्षीय भाषण में श्री शास्त्री ने कहा कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण के द्वारा देश के अभ्यांतर को प्रखर बनाना अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना देश के विकास के सभी प्रयास एकांगी ही होंगे। वरिष्ठ पत्रकार श्री राम बहादुर राय ने प्रतिनिधियों के विचारार्थ एक प्रारूप प्रस्तुत किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि परिस्थितियां इतनी विपरीत हो गई हैं कि व्यवस्था परिवर्तन के बिना देश का कल्याण संभव नहीं है। समारोह स्थल पर लगी “सेन्टर फार पालिसी स्टडीज” की प्रदर्शनी “सनातन भारत-जाग्रत भारत” को भी काफी पसंद किया गया।संगम के दूसरे दिन सभी प्रतिनिधियों को वाराणसी से 70 कि.मी. दूर डगमगपुर स्थित “सुरभि ग्राम” ले जाया गया, जहां उन्होंने गो आधारित जैविक कृषि का प्रत्यक्ष अनुभव किया।संगम के समापन सत्र में प्रतिनिधियों ने चर्चा के लिए रखे गए प्रारूप को कुछ संशोधनों के साथ “दिशा-सूत्र” के रूप में स्वीकार किया तथा सांस्कृतिक पुनर्जागरण और व्यवस्था परिवर्तन का संकल्प लिया। इस संकल्प को पूरा करने के लक्ष्य को “समग्र आमनाय” के नाम से परिभाषित किया गया। समाज को बदलने की अदम्य इच्छा व स्पष्ट चिंतन के साथ-साथ अपने प्रयोगों की सफलता से प्राप्त उत्साह और आत्मविश्वास से परिपूर्ण ये प्रतिनिधि भारत के जन-जन के अंदर छिपी अक्षय ऊर्जा के प्रतीक थे।संगम में प्रख्यात गांधीवादी विचारक श्री धर्मपाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह-सेवा प्रमुख श्री ओमप्रकाश, लोकस्वराज्य मंच के श्री बजरंगलाल अग्रवाल, स्वदेशी जागरण मंच के श्री अरुण ओझा, श्री वीरेन्द्र सिंह, “सेन्टर फार पालिसी स्टडीज” के श्री जितेन्द्र बजाज, दीनदयाल शोध संस्थान के श्री भरत पाठक, आजादी बचाओ आंदोलन के श्री रूपेश, जीवन विद्या प्रतिष्ठान के श्री रणसिंह आर्य तथा किसान क्लब के संस्थापक श्री रमेश डागर जैसे कई प्रमुख लोगों ने सक्रिय भाग लिया।(“भारतीय पक्ष” से)NEWS
टिप्पणियाँ