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संसद सिर्फ “तू तू-मैं मैं” नहींहालांकि मीडिया के एक वर्ग ने केन्द्रीय गृहमंत्री श्री शिवराज पाटिल के खिलाफ एक मुहिम जैसी छेड़ी हुई है। लेकिन जब वे बोलते हैं तो अपनी गहनता और अध्ययन का बोध कराकर विरोधियों को भी चुप करा देते हैं।गत 18 दिसम्बर को नई दिल्ली में प्रसिद्ध संविधानविद् और लोकसभा के पूर्व महासचिव डा. सुभाष कश्यप व श्री विश्व प्रकाश गुप्त की पुस्तक “संसद का इतिहास” के लोकार्पण समारोह में उन्होंने बड़ी साफ-साफ बातें कहीं। लालू प्रसाद यादव के बारे में बोले कि उन्हें लालू जी की बयान देने की शैली अच्छी नहीं लगती, पर वह उनका अंदाज है। क्या कर सकते हैं? संसद में “तू तू-मैं मैं” की ज्यादा चर्चा होती है लेकिन उसकी अंतर्निहित आत्मा के बारे में बहुत कम छपता है। संसद की यही आत्मा उसे बल प्रदान करती है।श्री पाटिल ने कहा कि वर्तमान और भविष्य की बात करते समय हमें इतिहास को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए। आज हमारी संसद का स्वरूप वैस्टमिंस्टर प्रणाली के जैसा हो सकता है पर आत्मा भारतीय ही है जो सहिष्णुता, समन्वय और दूसरे के प्रति सम्मान जैसे मूल्यों पर आधारित है।संसद में आज जो “तू तू-मैं मैं” का नजारा दिखता है, उसकी ओर श्री पाटिल ने इशारा करते हुए कहा कि दरअसल, हमें आजादी के तुरन्त बाद के हालातों को देखना होगा। पं. नेहरू के समय नवनिर्माण का, विचार का बीज रोपा गया था। अत: संसद में ज्यादातर बहस नई संस्थाएं, नए कानून गढ़ने के संदर्भ में हुई। इसके बाद के दौर में संसद का समय बोए गए विचार या बीज पर अमल करने में बीता। और अब यह तीसरा दौर विचारों के, कार्यों के मीन-मेख निकालने का समय है। यह टीका-टिप्पणियों का दौर है। इसीलिए लगता है कि संसद में केवल “तू तू-मैं मैं” ही होती है। और यही गलती हम करते हैं कि संसद की अंतर्निहित आत्मा को नहीं देखते। श्री पाटिल ने इस अवसर पर संसद में अपने लम्बे अनुभव की चर्चा की और बताया कि संसद चुने हुए जनप्रतिनिधियों का सदन होता है अत: उसमें एक आम आदमी का प्रतिबिम्ब झलकना चाहिए।कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभाष जोशी ने कहा कि संसद के प्रति उत्तरदायित्व निभाना मंत्रियों का पहला कर्तव्य होता है और जो उसको न निभाए ऐसे मंत्री को सदन में बैठने का हक नहीं होना चाहिए।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेती श्री वसंत साठे ने कहा कि “संसद का इतिहास” पुस्तक वास्तव में संसदीय मर्यादाओं और अनुभवों का झरोखा है। उन्होंने संसद की पूरी कार्यवाही टेलीविजन पर दिखाए जाने के निर्णय का स्वागत किया।पुस्तक की जानकारी देते हुए श्री विश्व प्रकाश गुप्त ने बताया कि “संसद का इतिहास” पुस्तक दरअसल डा. सुभाष कश्यप की अंग्रेजी की सुप्रसिद्ध पुस्तक “हिस्ट्री आफ पार्लियामेंट” (कुल-6 खंड) का हिन्दी रूपान्तर है। यह दो खंडों में है, जिसका पहला खंड (कुल पृष्ठ-450) वैदिक काल से 1979 तक की संसद का चित्र प्रस्तुत करता है तो दूसरा खंड (कुल पृष्ठ-524) 1980 से सन् 2004 तक की संसद के बारे में बताता है। 1250 रुपए मूल्य की यह पुस्तक विशेषज्ञों द्वारा खूब सराहना प्राप्त कर रही है। इसका प्रकाशन किया है राधा पब्लिकेशन्स (4378/4 बी, अंसारी रोड, नई दिल्ली-2) ने।-प्रतिनिधिNEWS
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