टी.वी.आर. शेनाय
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

टी.वी.आर. शेनाय

by
Feb 1, 2005, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 01 Feb 2005 00:00:00

यह बिहार है या लालू की बपौतीबात 1977 की है। इंदिरा सरकार ने आम चुनावों की घोषणा की और तभी विपक्षी दलों ने दिल्ली में एक संयुक्त रैली करने का निर्णय लिया। जेल से ताजा-ताजा छूटे नेताओं द्वारा सम्बोधित की गई वह रैली बेहद सफल रही थी। यह तो तब हुआ जब कांग्रेस के लाख जतन के बावजूद लोग अपने-अपने घरों से निकलकर रैली में पहुंचे थे। उस समय के सूचना व प्रसारण मंत्री ने तो दूरदर्शन को रैली के ही समय में चर्चित फिल्म “बाबी” दिखाने तक के आदेश दिए थे ताकि लोग अपने घरों में ही जमे रहें। उस समय तो मुझे भी अंदाजा नहीं हुआ था लेकिन लगता है कि वही एक ऐसी लोकप्रिय रैली थी जिसमें शामिल होने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था, उसके बाद जितनी भी रैलियों में मुझे जाने का मौका मिला वे सब सरकारी तंत्र के दुरुपयोग के बूते सफल होती दिखीं। (यहां तक कि वी.पी. सिंह को भी इस बात से फायदा ही पहुंचा था कि हरियाणा- जो तीन तरफ से दिल्ली को घेरे है- में राजीव गांधी के विरुद्ध आंदोलन के उन दिनों में वी.पी.सिंह के मित्र देवीलाल का शासन था।)क्या हमारे नेताओं की चहेती “विशाल” रैलियां सरकारी तंत्र के बिना असल में सफल हो सकती हैं? यह मानना थोड़ा मुश्किल है कि आम नागरिक अपनी जिंदगी को अस्तव्यस्त करके किसी राजनीतिक सभा के लिए निकल पड़ते हैं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण उस तरह की जनभावना पैदा करने वाले शायद अंतिम व्यक्ति थे। इसलिए यह बड़ा त्रासद है कि लोकनायक का ही एक शिष्य मेरे सवाल का जवाब दे। जैसे ही चुनाव आयोग ने पटना में राजद रैली के लिए सभी विशेष प्रबंध रोक देने का रेलवे को निर्देश जारी किया, लालू यादव ने अपना प्रस्तावित महारैला रद्द कर दिया।मुझे नहीं लगता कि चुनाव आयोग द्वारा चुनावी घूसखोरी के आरोप में रेलमंत्री के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज करने से वे कोई खास विचलित हुए होंगे। उन्होंने पहले भी इससे ज्यादा गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप झेले हैं। (हालांकि पहले कभी भी ऐसा मामला नहीं आया था जिसमें सबूत टेलीविजन पर दिखाए गए थे!) लेकिन जब चुनाव आयोग ने ठान लिया तो महारैला रद्द हो गया। (पटना की दीवारें भी अब ज्यादा साफ दिख रही हैं, क्योंकि चुनाव आयोग के अधिकारियों के पहंुचने से पहले ही दीवारों से, सरकारी इमारतों से रातोंरात राजद के पोस्टर हटाने का लालू ने आदेश जारी कर दिया था।)यह कोई पहली बार नहीं है जब लालू यादव और चुनाव आयोग सीधे टकराव की मुद्रा में हैं। उनके संघर्ष की कहानी 1995 में शुरू हुई थी। उन दिनों बेबाक टी.एन.शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे और आयोग ने कह दिया था कि बोगस मतदान रोकने का रामबाण तरीका मतदाता पहचान पत्र ही है। चुनाव आयोग ने बड़ा सख्त रुख अपनाया कि अगर किसी राज्य में पहचान पत्र नहीं बांटे गए तो वहां कोई चुनाव नहीं कराया जाएगा।आज की तरह उस समय भी बिहार कुशासन और चुनावी धांधलियों का पर्याय बना हुआ था। चुनाव आयोग के इस आदेश से हाशिए पर पहुंचे लालू यादव को मजबूरन मानना पड़ा कि यह काम समय रहते पूरा नहीं किया जा सकता। शेषन ठहरे शेषन, नहीं माने। 1996 की गर्मियों में आम चुनाव होने तय थे, इस स्थिति में देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य- यह झारखण्ड बनने से पहले की बात है-के अलग पड़ जाने की परिस्थिति पैदा होने लगी। तब मामला सर्वोच्च न्यायालय में भेजा गया।सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार को शंका का लाभ देने का फैसला लिया और चुनाव आयोग को बिहार को भी शामिल करके तय चुनाव कार्यक्रम पर अमल किए जाने का निर्देश दे दिया। यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन इस कार्रवाई में सर्वोच्च न्यायालय से थोड़ी सी चूक हो गई- वह बिहार सरकार से फोटो पहचान पत्र बांटने की अंतिम तिथि के बारे में कोई वादा नहीं ले पाया। इस खींचतान के बाद 9 साल गुजर गए, क्या किसी को यह जानकर आश्चर्य होगा कि आज भी बिहार में वह काम पूरा नहीं हुआ है? न ही इस बात का कोई संकेत है कि राजद रत्तीभर भी इसकी चिंता कर रहा है। मुझे लगता है कि इसी “सफलता” के कारण लालू यादव इतने बेफिक्र हैं कि वे जब चाहें चुनाव आयोग के काम में रोड़े अटकाने के लिए कानूनी प्रक्रिया को घुमा सकते हैं।कई बार लगता है कि यह ताजा संघर्ष भी उसी रास्ते पर बढ़ रहा है। चुनाव आयोग चाहे जितना हाथ-पैर पटक ले, पर लगता नहीं कि वे लालू यादव को पटरी पर ठहरा पाएगा। यह विश्वास ही शायद राजद के हौंसले बढ़ाता है और राजद के लोग अपने बचाव में कहते हैं- “ऊ तो एक रुपैया भी नहीं न लिए थे, देबे ही तो किए थे। अब इसे घूसवा तो न कहिएगा।” मैं इसे सर्वोच्च न्यायालय- तय है कि यह मामला वहीं पहुंचेगा- पर ही छोड़ता हूं, वही इसे सुलझाए। इस बात का संकेत साफ है कि लालू यादव एंड कम्पनी एक और कार्यकाल जीतेगी। लेकिन यह प्रकरण एक तथ्य तो रेखांकित करता ही है कि भारतीय राजनीति का यह हंसोड़ व्यक्ति मतदाताओं में अपने प्रभाव को लेकर थोड़ा असुरक्षित महसूस कर रहा है। क्या अपनी सभाओं में “भारी भीड़” के लिए उन्हें वास्तव में पैसा बांटने और रेलवे को विशेष रेलगाड़ियां चलाने का निर्देश देने की जरूरत आन पड़ी है? अगर हां, तो उनके द्वारा खुद को “बिहार के कर्ता-धर्ता” कहने के बारे में क्या संकेत जाता है?” लोकनायक की सभाएं उस समय की सरकार के लाख षड्यंत्रों के बाद भी बहुत सफल रहती थीं। उनके शिष्य, लगता है, उसी सरकारी तंत्र की मदद के बिना अपनी सफलता दर्ज नहीं करा सकते। (22.12.2004)NEWS

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

RSS का शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा में 5 जनसंपर्क अभियानों की गाथा

Donald Trump

Tariff war: अमेरिका पर ही भारी पड़ सकता है टैरिफ युद्ध

कपिल शर्मा को आतंकी पन्नू की धमकी, कहा- ‘अपना पैसा वापस ले जाओ’

देश और समाज के खिलाफ गहरी साजिश है कन्वर्जन : सीएम योगी

जिन्होंने बसाया उन्हीं के लिए नासूर बने अप्रवासी मुस्लिम : अमेरिका में समलैंगिक काउंसिल वुमन का छलका दर्द

कार्यक्रम में अतिथियों के साथ कहानीकार

‘पारिवारिक संगठन एवं विघटन के परिणाम का दर्शन करवाने वाला ग्रंथ है महाभारत’

नहीं हुआ कोई बलात्कार : IIM जोका पीड़िता के पिता ने किया रेप के आरोपों से इनकार, कहा- ‘बेटी ठीक, वह आराम कर रही है’

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies