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कैप्टन और मान?-के.एल. कमलेशकैप्टन अमरिन्दर सिंहसिमरनजीत सिंह मान”यादगारी गेट”जब से पंजाब में कैप्टन अमरिन्दर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी है, तबसे यहां के पूर्व आतंकवादियों के हौसले बुलन्द हैं। 14 वर्ष तक अकाली दल में रहने के बाद जब कैप्टन ने देखा कि प्रकाश सिंह बादल जैसे वरिष्ठ नेता के होते अकाली दल में उनकी दाल गलने वाली नहीं है तो वह अकाली दल से पल्ला झाड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। पंजाब कांग्रेस को एक ऐसे ही नेता की जरूरत थी, जो प्रकाश सिंह बादल के कथित भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाए और लोगों को उस पर विश्वास भी हो जाए। अत: एक रणनीति के तहत कैप्टन ने पिछले विधानसभा चुनाव के समय बादल, उनके परिवार एवं साथियों के कथित भ्रष्टाचार को खूब उछाला और इसका अच्छा-खासा असर पंजाब के मतदाताओं पर पड़ा। परिणामस्वरूप, जो कांग्रेस लोकसभा चुनाव में पंजाब में बुरी तरह से पिट चुकी थी, विधानसभा में बाजी मार ले गई। अकाली दल से ज्यादा नुकसान उसकी सहयोगी भाजपा को हुआ था। अकाली दल ने अपने वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में कांग्रेस के विरुद्ध लड़ाई जारी रखी और अब राज्य सरकार की चूलें हिलने लगी हैं।एक समय तो ऐसा भी आया कि लोगों को लगा कि कैप्टन की कुर्सी अब गई कि तब गई। बादल ने अमरिन्दर पर पलटवार करते हुए उनके बेटे के कथित हवाला काण्ड को उजागर किया। इस कारण राजेन्द्र कौर भट्ठल को मुख्यमंत्री बनाए जाने की तैयारी भी हो गई थी। किन्तु कैप्टन किसी तरह बच गए।इसके बाद कैप्टन ने कांग्रेस के पुराने फार्मूले को अपनाया। सूत्रों के अनुसार उन्होंने अपने साढ़ू सिमरनजीत सिंह मान की परोक्ष एवं अपरोक्ष सहायता कर सिखों के बीच पुराने कट्टरवादी और अलगाववादी तत्वों को उभारना शुरू किया।आतंकवादी नेता जरनैल सिंह भिण्डरांवाला की समर्थक “दमदमी टकसाल” गुरुद्वारा की ओर से 1984 के “आपरेशन ब्लू स्टार” के समय सेना-प्रमुख रहे जनरल वैद्य के हत्यारों हरजिन्दर सिंह जिंदा तथा सुखदेव सिंह सुक्खा को “शहीद” करार देकर उनकी स्मृति में गांव गदली में एक शानदार “यादगारी गेट” बनाया गया, मगर कैप्टन अमरिन्दर सिंह की सरकार बिल्कुल खामोश रही। इस गेट का 4 मार्च, 2005 को बड़ी धूम-धाम से उद्घाटन किया गया। इसमें भाग लेने वाले पूर्व आतंकवादी तथा उनके समर्थक भी थे। इस अवसर पर जनरल वैद्य के दोनों हत्यारों के परिवारों को भी सम्मानित किया गया। कथित यादगारी गेट के ऊपर पांथिक ध्वज लहराए गए और गेट के दोनों ओर कथित शहीदों हरजिन्दर सिंह जिंदा तथा सुखदेव सिंह सुक्खा के चित्र अंकित कराए गए हैं। दूसरी ओर सिमरनजीत सिंह मान का हौसला खूब बढ़ा हुआ है। वे खुल्लम-खुल्ला चरमपंथियों की हिमायत कर रहे हैं। 12 जून को आतंकवादी नेता जरनैल सिंह भिण्डरावाला की बरसी के अवसर पर दमदमी टकसाल में उन्होंने उत्तेजक भाषण दिए और स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि उन्होंने भिण्डरांवाला को उसके मन चाहे स्वचालित हथियार दिए थे। भिण्डरांवाला की हत्या के लिए उन्होंने इंदिरा गांधी के साथ-साथ प्रकाश सिंह बादल, सुरजीत सिंह बरनाला तथा संत हरचंद सिंह लोंगोवाल को भी जिम्मेदार ठहराया। वहां चूंकि अधिकांशत: चरमपंथी ही उपस्थित थे इसलिए उन्होंने इसका लाभ उठाते हुए “सिख कौम दी की है मंग-आजादी, आजादी” (सिख कौम की क्या है मांग -आजादी-आजादी) के नारे खूब जोर-जोर से लगवाए।गिरफ्तार हुआ हवाराउल्लेखनीय है कि फरीदकोट में पुलिस प्रमुख के पद पर होते हुए भी सिमरनजीत सिंह मान आतंकवादियों की मदद कर रहे थे। जब केन्द्र सरकार को इसकी जानकारी हुई तो तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें सजा देने के बजाए औद्योगिक सुरक्षा बल का निदेशक बना कर मुम्बई भेज दिया था। बाद में जब मान नेपाल के रास्ते अमरीका भाग रहे थे तो उन्हें भारत-नेपाल सीमा पर गिरफ्तार करके बिहार के एक डाक बंगले को जेल बनाकर रखा गया था।लगभग डेढ़ वर्ष पहले पूर्व मुख्यमंत्री बेअन्त सिंह का हत्यारा जगवार सिंह हवारा चण्डीगढ़ की बुडैल जेल से अपने साथियों के साथ एक सुरंग खोद कर भाग निकला था। इतना समय बीत जाने के बाद भी पंजाब पुलिस उसे पकड़ने में नाकाम रही। पुलिस ने घोषणा कर दी थी कि हवारा पाकिस्तान भाग गया है। मगर जब दिल्ली के सिनेमा घरों में बम-फटे तो दिल्ली पुलिस हवारा को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह के गृह-नगर पटियाला से पकड़ लाई। भले ही दिल्ली पुलिस ने हवारा की गिरफ्तारी नरेला (दिल्ली) के निकट से दिखाई है। मगर समाचारपत्रों ने एक दिन पहले ही जगवार सिंह हवारा की गिरफ्तारी पंजाबी विश्वविद्यालय के गेट के निकट से होने के बारे में समाचार प्रकाशित कर दिया था।NEWS
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